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अब गुड़ से बनेंगे चॉकलेट

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नई दिल्ली। गुड़ से बने स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरे चॉकलेट, जल्द ही बाजार में मिलने लगेंगे और आपके घरों के रेफ्रिजरेटर में भी मौजूद होंगे। शोधकर्ताओं का एक समूह इस दिशा में काम कर रहा है। ये चॉकलेट मधुमेह से ग्रस्त लोग भी खा सकते हैं।

आम तौर पर चॉकलेट में काफी मात्रा में कोका, दुग्ध पाउडर, मक्खन, परिष्कृत शक्कर और अधिक कैलोरी वाले स्वादिष्ट बनाने वाले पदार्थ होते हैं। हालांकि ये बहुत अधिक कैलोरी के होते हैं लेकिन इनमें काबोहाइड्रेड एवं प्रोटीन नगण्य होते हैं। चॉकलेट में बहुत कम पौष्टिकता होती है क्योंकि इनमें घटक के रूप में परिष्कृत शक्कर मिलाया जाता है। चॉकलेट के कारण दांत खराब होने, दांत में कैविटी होने तथा मधुमेह होने जैसी समस्याएं एवं बीमारियां होने के खतरे होते हैं।

राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के लक्ष्मीनारायण प्रौद्योगिकी संस्थान के खाद्य प्रोद्योगिकी विभाग की श्वेता एम. देवताले ने कहा, “परिष्कृत शक्कर के स्थान पर हम विभिन्न तरह के गुड का उपयोग करते हैं। पिघले हुए गुड़ में हम स्वादिष्ट बनाने वाले पदार्थ के तौर पर कॉफी/कोको पाउडर का इस्तेमाल करते हैं, ताकि इसे स्वादिष्ट बनाया जा सके। इसके अलावा स्वास्थ्य लाभ के लिए इसमें पोषक तत्व भी मिलाए जाते हैं।”

आईआईटी दिल्ली में पांच दिवसीय विज्ञान मेले में शोधकर्ताओं के एक दल का नेतृत्व कर रही देवताले ने एक शोध पत्र प्रस्तुत किया, ‘जैगरी डिलाइट : ए हेल्दी सबस्टीच्यूट फॉर चॉकलेट।’ उन्होंने कहा कि चॉकलेट महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त विभिन्न प्रकार के गुड़ का उपयोग करके तैयार किए गए हैं। कोल्हापुरी गुड़ अपनी गुणवत्ता के लिए राज्य में सबसे लोकप्रिय है। भारत में दुनिया के कुल गुड़ उत्पादन का 70 प्रतिशत उत्पादन होता है।

उन्होंने कहा, “हमने तरल गुड़, जैविक ठोस गुड़, नारियल पौधों के रस से बनाये गए गुड़, खजूर और ताड़ के पौधों के रस से बनाए गए गुड़ और पाउडर गुड़ जैसे विभिन्न प्रकार के गुड़ का इस्तेमाल करके चॉकलेट बनाया है। गुड़ से बनाए जाने वाले स्वादिष्ट चॉकलेट में कच्चे माल के रूप में मक्खन/कोको बटर सबस्टीट्यूट, इमल्सीफायर के रूप में सोया लेसितिण, कोको पाउडर, वसायुक्त दुग्ध पाउडर और कॉफी पाउडर मिलाए जाते हैं।”

विश्लेषण और प्रयोगात्मक कार्य खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग, लक्ष्मीनारायण प्रौद्योगिकी संस्थान, नागपुर; केंद्रीय एगमार्क प्रयोगशाला, नागपुर; और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, नागपुर के द्वारा एक साथ मिलकर किया गया था।

उन्होंने कहा, “गुड़ के इस्तेमाल से बनाए गए चॉकलेट को पोषण की दृष्टि से अत्यधिक स्वीकार्य पाया गया था। इसे कम पोषण और कुपोषण से निपटने के लिए हेल्थ सप्लिमेंट के रूप में लिया जा सकता है। आयुर्वेद में गुड़ तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने, एनीमिया को रोकने और हड्डियों के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। यह पर्यावरण के विषाक्त पदार्थो से शरीर की रक्षा भी कर सकता है और कैल्शियम, फॉस्फोरस और लोहे जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत होने के कारण यह फेफड़ों के कैंसर की आशंका को भी कम कर सकता है।”

देवताले ने कहा कि इस चॉकलेट के बाजार में उपलब्ध सामान्य चॉकलेट की तुलना में लगभग 20-30 प्रतिशत सस्ता होने की उम्मीद है। टीम ने इस उत्पाद के पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया है। उन्होंने कहा, “चॉकलेट को पोषण की दृष्टि से अधिक स्वस्थ बनाने की अनिवार्य आवश्यकता है। हम इसके स्वाद से कोई समझौता किए बिना ही एक सर्वश्रेष्ठ चॉकलेट विकसित करने की कोशिश की है।”

शोध टीम में डॉ. एम. जी. भोटमांगे, खाद्य प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख, एलआईटी नागपुर; प्रबोध एस. हाल्दे, प्रमुख, तकनीकी रेगुलेटरी अफेयर्स, मैरिको लिमिटेड; और एम. एम. चितले, निदेशक, एफबीओ तकनीकी सेवा, ठाणे शामिल हैं। आईआईएसएफ 2015 नोडल एजेंसी के रूप में प्रौद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान और आकलन परिषद (टीआईएफएसी) के साथ, देश का सबसे बड़ा विज्ञान आंदोलन चलाने वाले विज्ञान भारती के सहयोग से विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालयों की ओर से आयोजित की जा रही है।

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फेमस न्यूक्लियर फिजिस्ट होमी जहांगीर भाभा का आज जन्मदिन, जानें कुछ उनके बारे में

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नई दिल्ली। इंडियन न्यूक्लियर प्रोग्राम के जनक और फेमस न्यूक्लियर फिजिस्ट होमी जहांगीर भाभा का आज जन्मदिन है। जे. भाभा, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) के फाउंडिंग डायरेक्टर और फिजिक्स के प्रोफेसर भी थे। होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 में एक अमीर पारसी परिवार में हुआ था। होमी जहांगीर भाभा के पिता का नाम जहांगीर होर्मुस्जी भाभा और माता का नाम मेहरबाई भाभा था, इनके पिता एक जाने-माने वकील थे जबकि माँ एक गृहिणी थीं।

होमी भाभा ने 16 साल की आयु में ही सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षा पास कर ली थी। फिर वे गोनविले और कैयस कॉलेज में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के लिए कैम्ब्रिज गए। इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज में कैवेंडिश लैब में रिसर्च करना शुरू किया और उनका पहला रिसर्च पेपर 1933 में प्रकाशित हुआ। दो साल बाद, उन्होंने अपनी पीएचडी हासिल की और 1939 तक कैम्ब्रिज में रहे।होमी भाभा ने छात्र के रूप में कोपेनहेगन में नोबेल पुरस्कार विजेता नील्स बोहर के साथ काम किया और क्वांटम सिद्धांत के विकास में प्रमुख भूमिका निभाई।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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