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उप्र : विधानसभा सत्र शुक्रवार से, सत्तापक्ष-विपक्ष में दिखेगा टकराव

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लखनऊ| उत्तर प्रदेश विधानमंडल का मानसून सत्र शुक्रवार से शुरू हो रहा है। विपक्ष ने सत्र की शुरुआत से ही आक्रामक रुख अख्तियार करने की रणनीति बनाई है। विपक्ष के पास इस बार कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें लेकर वह सदन में सरकार को घेरेगी। विपक्ष को जवाब देने के लिए सरकार ने भी अपनी तरफ से पुरजोर तैयारी की है।

नोएडा प्राधिकरण के निलंबित चीफ इंजीनियर यादव सिंह, एमएलसी मनोयन, नए लोकायुक्त की नियुक्ति, किसानों की बदहाली, बिजली, भ्रष्टाचार के साथ ही लचर कानून व्यवस्था को लेकर सरकार विपक्ष के निशाने पर होगी।

उल्लेखनीय है कि यादव सिंह की अकूत संपत्ति से जुड़े मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) कर रहा है। सीबीआई जांच को रुकवाने के लिए राज्य सरकार की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने इसे खारिज कर दिया।

राज्य में नए लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर भी सरकार की मंशा पर सवाल खड़े हो रहे हैं। सरकार न्यायमूर्ति रवींद्र सिंह यादव को नया लोकायुक्त बनाने पर अड़ी हुई है, लेकिन विपक्ष लगातार यह आरोप लगा रहा है कि नए लोकायुक्त की नियुक्ति के मामले में सरकार सही प्रक्रिया का पालन नहीं कर रही है।

सरकार के रवैये से नाराज राजभवन ने नए लोकायुक्त की नियुक्ति संबंधी फाइल राज्य सरकार को लौटा दी थी। इसके बाद सरकार इस मामले को हल करने के लिए विधिक सलाह लेने में जुटी हुई है।

विपक्ष का तर्क है कि एक भ्रष्टाचारी को बचाने के लिए सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा क्यों खटखटाया? इस मामले में सरकार क्या छुपाना चाहती है?

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने आईएएनएस से कहा कि सरकार यादव सिंह मामले में क्या छुपाना चाहती है? आखिरकार वह यादव सिंह को बचाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय क्यों गई? इससे राज्य की बदनामी हुई है।

उन्होंने कहा कि राज्य में नए लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर भी सरकार ने सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया है। सरकार को इस मामले में भी जवाब देना होगा।

दूसरी ओर विधानसभा में विपक्षी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी सरकार की मुश्किलें बढ़ाने का काम करेगी। दलितों की जमीन को गैर दलितों को बेचे जाने संबंधी रोक सरकार ने पिछले सप्ताह ही हटा ली थी। बसपा सदन के भीतर इसका कड़ा विरोध करेगी।

ज्ञात हो कि राज्य में पहले दलितों की जमीन को गैर दलितों को बेचने पर रोक लगी हुई थी, लेकिन उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने यह रोक हटा दी। अब बसपा यह कहकर इसका विरोध कर रही है कि राज्य सरकार सूबे के दलितों को भूमिहीन बनाना चाहती है।

बसपा के रुख को स्पष्ट करते हुए मायावती ने कहा, “बसपा सदन के भीतर इस फैसले का कड़ा विरोध करेगी। यह समाजवादी पार्टी (सपा) की दलित विरोधी मानसिकता का परिचायक है। सपा सरकार दलितों को आजीवन भूमिहीन बनाए रखना चाहती है। बसपा सदन के भीतर इसका विरोध करेगी और इस कानून को पारित होने से रोकने के लिए हरसंभव कदम उठाएगी।”

वहीं, कांग्रेस के प्रवक्ता वीरेंद्र मदान ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान कहा कि राज्य में कई ज्वलंत मुद्दे हैं, जिन्हें लेकर कांग्रेस सदन के भीतर और बाहर सरकार को घेरने का काम करेगी।

मदान ने कहा, “भ्रष्टाचार, गिरती हुई कानून व्यवस्था, किसानों की बदहाली, बिजली जैसे मुद्दों को लेकर कांग्रेस सदन के भीतर सरकार के खिलाफ आवाज उठाने का काम करेगी।”

इधर, सपा नेता डा. चंद्र प्रकाश राय ने कहा कि सरकार ने बहुत सारे अच्छे काम किए हैं। विपक्ष जो भी आरोप लगा रहा है, उसमें दम नहीं है। सरकार मजबूती से सदन के भीतर विपक्ष के सारे आरोपों का जवाब देगी।

 

प्रादेशिक

IPS अधिकारी संजय वर्मा बने महाराष्ट्र के नए डीजीपी, रश्मि शुक्ला के ट्रांसफर के बाद मिली जिम्मेदारी

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महाराष्ट्र। महाराष्ट्र के नए डीजीपी का कार्यभार IPS संजय वर्मा को सौंपा गया है। आईपीएस संजय वर्मा को केंद्रीय चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के नए पुलिस महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया है। कुछ ही दिनों में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव है। उससे पहले चुनाव आयोग ने राज्य कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले की शिकायत मिलने के बाद डीजीपी रश्मि शुक्ला के तबादले का आदेश दिया था।

कौन हैं IPS संजय वर्मा?

IPS संजय वर्मा 1990 बैच के पुलिस अधिकारी हैं। वह महाराष्ट्र में वर्तमान में कानून और तकनीकी के डीजी के रूप में कार्यरत रहे। वह अप्रैल 2028 में सेवानिवृत्त पुलिस सेवा से रिटायर होंगे। दरअसल, डीजीपी रश्मि शुक्ला को लेकर सियासी दलों के बीच पिछले कुछ समय से माहौल गर्म था। कांग्रेस के बाद उद्धव गुट की शिवसेना ने भी चुनाव आयोग को पत्र लिखकर उन्हें हटाने की मांग की थी।

कांग्रेस ने रश्मि शुक्ला की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से उन्हें महानिदेशक पद से हटाने की मांग की थी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने उन पर आरोप लगाया था कि वह बीजेपी के आदेश पर सरकार के लिए काम कर रही हैं।

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