बिजनेस
कचरा रहित स्मार्ट सिटी के लिए बायो माइनिंग की जरूरत
नई दिल्ली, 21 जनवरी (आईएएनएस)| कचरा प्रबंधन से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि भारत ठोस कचरा प्रबंधन में काफी कठिनाइयों का सामना कर रहा है। देश में लैंडफिल की संख्या बढ़ती जा रही है।
बहुत से लैंडफिल में जरूरत से ज्यादा कूड़ा भरा जाता है जिससे हादसे की आशंका भी बनी रहती है। उनका कहना है कि ऐसे में कचरे का बायो माइनिंग एक बेहतर उपाय हो सकता है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में स्थित गाजीपुर लैंडफिल 50 मीटर ऊंचा है और 70 एकड़ में फैला है। यहां करीब तीन हजार टन कूड़ा प्रतिदिन डाला जाता है। यहां पिछले साल कचरों का एक टीला ढह कर सड़क तक आ गया और दुर्घटना में दो लोगों की मौत हो गई। इसे 2002 में ही बंद कर दिया जाना चाहिए था लेकिन लैंडफिल की कमी की वजह से दिल्ली का एक चौथाई कूड़ा यहां प्रतिदिन पहुंचता रहा।
ठोस कचरा प्रबंधन कंपनी रिकार्ट के संस्थापक व निदेशक अनुराग तिवारी ने कहा, हालांकि सभी स्तरों पर कचरा प्रबंदन के मुद्दों से निपटने की आवश्यकता है, लेकिन हमें सबसे पहले इन लैंडफिल में पहले से इकट्ठा हुए कचरे पर ध्यान देने की जरूरत है। इसलिए हम बायो माइनिंग का सुझाव देते हैं। ये सूक्ष्म जीवों के प्रयोग से ठोस पदार्थ और कच्ची धातु से धातु निकालने की तकनीक है।
उन्होंने कहा, इसमें मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड, अमोनिया और लीशैट में जीरो उत्सर्जन होता है, जो इसे पर्यावरण के अनुकूल बनाते हैं। केवल यही नहीं, बायो माइनिंग काफी सस्ता और प्रभावी समाधान है। कन्नूर कस्बे की पंचायत में एक ऐसा अभियान चलाया गया है, जहां हम बायोग्रेडेबल वेस्ट को अलग कर उसे जैविक खाद में तब्दील करने में सक्षम हुए। हम गोराई गांव से भी संकेत ले सकते हैं, जहां एक हेक्टेयर में फैले 10 मीटर कूड़े के पहाड़ को केवल 3 महीने में बायो माइनिंग से क्लियर किया गया। केवल 10 लाख रुपये के बजट में यह उपलब्धि हासिल की गई।
उन्होंने कहा कि देश में कूड़ा फेंकने की जगहों की कमी होती जा रही है, लेकिन हमारे यहां काफी तेजी से कूड़ा पैदा होता है। अगर हम यह कहें कि भारत को बेंगलुरु के आकार का लैंडफिल चाहिए तो कोई हैरत नहीं होगी। इस भयानक स्थिति को बहुत जल्दी संभालने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि लैंडफिल या कूड़े के ढेर में मीथेन का उत्सर्जन होता है, जिससे काफी तेजी से ऊष्मा निकलती है। इससे ग्लोबल वार्मिग काफी तेजी से बढ़ती है। सालों से इकट्ठा हुए कूड़े ने भूमिगत जल को भी दूषित कर दिया है, जो बहुत से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जल का प्रमुख स्त्रोत है।
अनुराग ने कहा, शहरी निकाय की ओर से एकत्र किया गया कूड़ा लैंडफिल में डंप किए जाने से पहले मटीरियल रिकवर संयंत्र से गुजरना चाहिए, लेकिन हमारे पास कई जगहों पर एमआरएफ (मटेरियल रिकवरी फेसिलिटी) संयंत्र नहीं है। इसलिए इसे छोड़ ही देना चाहिए। सारे कूड़े को सीधे लैंडफिल में ही डंप किया जाना चाहिए। एनसीआर में मजबूत एमआरएफ होना बहुत जरूरी है, इसलिए हमने इससे शुरुआत की है।
उन्होंने कहा, पुराने कूड़े को वेस्ट ट्रकों के माध्यम से निपटाना चाहिए और भारी आइटम को आम तौर पर हाथ से उठाना चाहिए। एक बार यह कर लेने के बाद टैंकर से खाद बायो कंपोस्ट कूड़े पर बिखेरनी चाहिए। इसे विंड रो में सुव्यवस्थित कर निश्चित समय के अंतराल पर करना चाहिए। इस प्रक्रिया की समाप्ति तक पुराना कूड़ा 30 से 40 फीसदी तक कम हो जाएगा। यह प्रक्रिया काफी किफायती है।
अनुराग ने कहा, महंगी या आधुनिक टेक्नोलॉजी हर सवाल का जवाब नहीं हो सकती। यहां स्मार्ट ढंग से काम करने की जरूरत है और देश भर में बायो माइनिंग प्रोग्राम को अमल में लाने के लिए धन का निवेश करना चाहिए। यह तरीका पहले भी सफल साबित हो चुका है। इससे हमें वेस्ट फ्री स्मार्ट शहरों के निर्माण में सहयोग मिल सकता हैं।
उन्होंने कहा, बहादुरगढ़ में स्थानीय नगर निकाय ने मौजूदा डंपिंग साइट से कूड़े में कटौती करने के मसकद से हमसे संपर्क किया था। हम उस शहर में एमआरएफ फैसिलिटी विकसित करने पर ध्यान दे रहे हैं। हम इसी तरह के समाधान के लिए 10 से ज्यादा शहरी स्थानीय निकाय से बातचीत कर रहे हैं। मैं बहुत खुश हूं कि स्थानीय निकाय जरूरत से ज्यादा भरे हुए लैंडफिल्स की गंभीर चिंता का समाधान करने की महत्ता को समझने लगे हैं।
बिजनेस
जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई
नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।
बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।
बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।
ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।
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