मुख्य समाचार
कब खत्म होगी नकारात्मकता की राजनीति?
संसद के दोनों सदनों में हद पार करती नकारात्मकता का कोई हल निकलता नहीं दिख रहा है। देश में प्रबल बहुमत वाली सरकार है, लेकिन इसे लेकर संशय कायम है कि संसद के मौजूदा सत्र में जीएसटी समेत अन्य महत्वपूर्ण विधेयक पारित होंगे या नहीं? राज्यसभा में अपने बहुमत के चलते कई विपक्षी दल ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे जनता ने शासन चलाने के अधिकार मोदी सरकार से छीनकर उन्हें सौंप दिए हैं। मोदी सरकार को अहंकारी बताने वाले कई विपक्षी दल यह प्रकट करते भी दिख रहे हैं कि मई 2014 में नासमझ जनता ने गलती कर दी थी और उसे ठीक करने की महती जिम्मेदारी उनके सिर पर आ गई है और वे उसी पूरी करके ही रहेंगे।
यह सही है कि अच्छे दिनों की आस अभी तक पूरी नहीं हुई और मोदी सरकार के कुछ फैसलों ने आलोचकों को यह कहने का मौका दिया कि वह विपक्ष को कोई अहमियत नहीं दे रही, लेकिन ऐसा कहते-कहते अब कई विपक्षी दल भी सत्तापक्ष को अहमियत देने को तैयार नहीं दिखते। कांग्रेस का रुख-रवैया तो ऐसा है मानो सत्तापक्ष की संवैधानिक जिम्मेदारी यह है कि वह हर काम उससे पूछकर करे नहीं तो हाथ पर हाथ रखकर बैठी रहे।
क्या यह अजीब नहीं कि कांग्रेस नेत्री सैलजा करीब 33 महीने अपने कथित अपमान के आंसू थामे रहीं? इन आंसुओं के चलते राज्यसभा के कई घंटे बर्बाद हुए। इसके बाद मंत्री वीके सिंह को सदन में बैठा देखकर बसपा सांसद सतीश चंद्र मिश्र को यह याद आ जाता है कि उन्होंने तो दलितों के बारे में एक बेजा टिप्पणी की थी। वकील होते हुए भी बसपा सांसद इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि उन्हें राज्यसभा में दाखिल होने का अधिकार ही नहीं। वह उन्हें सदन से बाहर निकालने की जिद पकड़ लेते हैं और कई अन्य सांसद उनका साथ देते हैं। नकारात्मकता की हद देखिए कि राज्यसभा में कांग्रेसी सांसद प्रमोद तिवारी कहते हैं कि ‘डॉलर के मुकाबले रुपया 67 पर पहुंच गया है।
रही सही कसर नेशलन हैराल्ड मामले ने पूरी कर दी है। कांग्रेस को यह आरोप लगाने का मौका मिल गया कि यह भाजपा द्वारा राजनैतिक बदला लेने की साजिश है। पूरी तरह से अदालती कार्यवाही को राजनैतिक साजिश करार देना कहां की सहिष्णुता है? इसका मतलब तो यह है कि भारत की अदालतें सत्तारूढ़ राजनैतिक दलों की मनमर्जी पर चलती हैं। यह तो एक तरह से भारत की निष्पक्ष अदालतों का अपमान है। अच्छा हो भारत के राजनैतिक दल बेवजह का आपसी विरोध छोड़कर जनहित के मामलों पर सार्थक बहस करें जिससे संसद की सर्वोच्चता व निष्पक्षता पर सवालिय निशान न लगाया जा सके।
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बदल गई उपचुनावों की तारीख! यूपी, केरल और पंजाब में बदलाव पर ये बोला चुनाव आयोग
नई दिल्ली। विभिन्न उत्सवों के कारण केरल, पंजाब और उत्तर प्रदेश में विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव 13 नवंबर की जगह 20 नवंबर को होंगे। कांग्रेस, भाजपा, बसपा, रालोद और अन्य राष्ट्रीय और राज्य दलों के अनुरोध पर चुनाव आयोग ने ये फैसला लिया है।
विभिन्न उत्सवों की वजह से कम मतदान की किसी भी संभावना को खारिज करने के लिए, चुनाव आयोग ने ये फैसला लिया है। ऐसे में ये साफ है कि अब यूपी, पंजाब और केरल में उपचुनाव 13 नवंबर की जगह 20 नवंबर को होंगे।
चुनाव आयोग के मुताबिक राष्ट्रीय और राज्य स्तर की पार्टियों की ओर से उनसे मांग की गई थी कि 13 नवंबर को होने वाले विधानसभा उपचुनाव की तारीख में बदलाव किया जाए, क्योंकि उस दिन धार्मिक, सामाजिक कार्यक्रम हैं। जिसके चलते चुनाव संपन्न करवाने में दिक्कत आएगी और उसका असर मतदान प्रतिशत पर भी पड़ेगा।
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