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कश्मीर : उजड़े आशियानों के निशां अभी बाकी

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बारामूला। जम्मू एवं कश्मीर में एक साल बाद भी लोगों की आंखों में बाढ़ के कहर का भय दिख जाता है। प्रकृति के बरपाए इस कहर ने 300 लोगों की जान ले ली थी और चारों ओर बर्बादी ही बर्बादी फैलाई थी। हालांकि इन बर्बादियों के बीच हौसलों की कोंपले भी आईं। कुछ कश्मीरियों का कहना है कि इस आपदा के बाद उनमें आई एकजुटता पहले कभी देखने को नहीं मिली।

श्रीनगर से 40 किलोमीटर दूर बारामूला जिले में अभी भी अस्थायी घरों और बिना किसी उचित आजीविका के रह रहे लोगों से बात की गई। दुसलिपोरा गांव में पेशे से कालीन बुनकर अली मोहम्मद बट्ट ने अपनी बुनकरी इकाई को बाढ़ के कहर में समाते देखा। उन्हें इसे फिर से बसाने के लिए 50 से 60 हजार रुपये की जरूरत है। इस बाढ़ आपदा में बट्ट ने अपना घर भी खो दिया। दिन में उनका परिवार अर्धनिर्मित घर में रहता है, जबकि रात को वे लोग सामुदायिक भवन में चले जाते हैं, क्योंकि उनका अर्धनिर्मित घर महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। हाल ही में उन्हें सामुदायिक भवन से निकलने का आदेश मिला है।

बट्ट ने बताया, “नोटिस मिलने के बाद मैं काफी निराश था और मैं अपनी बेटी और पत्नी की सुरक्षा के लिए चिंतित था, लेकिन गांव वाले उनके बचाव के लिए आए, जिसके बाद नोटिस को रद्द किया गया।” एक अन्य बाढ़ पीड़ित गुलाम नबी को इस आपदा के बाद श्रीनगर में एक मजदूर के रूप में करना पड़ा लेकिन गैर सरकारी संगठन एक्शनएड इंडिया द्वारा गठित एक गांव स्तरीय समिति से मदद मिलने के बाद उन्होंने अपना काम फिर से शुरू किया। जम्मू एवं कश्मीर यतीम ट्रस्ट के एक सलाहकार नसरीन ने बताया, “कश्मीर में पहले से ही मनोवैज्ञानिक परेशानियों से जूझ रहे लोग इस बाढ़ के बाद और भी व्यथित हो गए। उनके मनोबल को बरकरार रखना एक चुनौती थी।”

यह ट्रस्ट भारत में 1972 से काम कर रहे गैर सरकारी संगठन एक्शनएड का एक स्थानीय साझेदार है। एक्शनएड इंडिया की ताबिया मुजफ्फर ने कहा, “बाढ़ का सबसे बड़ा प्रभाव आजीविका पर पड़ा। हम लोगों को परामर्श दे रहे हैं तथा पीड़ितों के व्यवसाय को पुन: शुरू करने के लिए उनकी मदद कर रहे हैं।” जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने अक्टूबर 2014 को तत्काल सहायता के लिए केंद्र सरकार को 44,000 करोड़ रुपये के घाटे का एक ज्ञापन भेजा और कार्यकर्ताओं ने कहा कि वह ज्ञापन अब नई दिल्ली में खाक छान रहा है।

राज्य में 6 सितंबर, 2014 की उस रात को कुछ लोग कभी नही भूल पाएंगे, जिसने घाटी पर कहर बरपाया और जम्मू क्षेत्र में 300 लोगों की जान ले ली तथा सैकड़ों घरों को नेस्तनाबूद कर दिया। हजारों लोग बेघर हो गए और उन्होंने लगभग सब कुछ खो दिया। हमेशा से राज्य के लिए आय का प्रमुख स्रोत पर्यटन रहा है, लेकिन इस साल उसका स्तर उम्मीद से कम रहा, क्योंकि आपदा के भय ने कई लोगों के दिमाग पर असर डाला। अब कश्मीर सिर्फ बेहतर वक्त के लिए प्रार्थना ही कर सकता है।

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नेशनल

हिंदू राष्ट्र बनाना है तो हर भेद को मिटाकर हर सनातनी को गले से लगाना होगा -“पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री”

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राजस्थान। राजस्थान के भीलवाड़ा में बुधवार (6 नवंबर) से पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की पांच दिवसीय हनुमंत कथा शुरू हुई. यहां बागेश्वर सरकार अपने मुखारविंद से भक्तों को धर्म और आध्यात्मिकता का संदेश देंगे. छोटी हरणी हनुमान टेकरी स्थित काठिया बाबा आश्रम के महंत बनवारीशरण काठियाबाबा के सानिध्य में तेरापंथनगर के पास कुमुद विहार विस्तार में आरसीएम ग्राउंड में यह कथा हो रही है.

इस दौरान बागेश्वर धाम सरकार ने भी मेवाड़ की पावन माटी को प्रणाम करते हुए सबका अभिवादन स्वीकार किया. हनुमंत कथा कहते हुए बागेश्वर धाम सरकार धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री महाराज ने हिंदू एकता और सनातन जागृति का संदेश दिया.

उन्होंने कहा, “हनुमानजी महाराज की तरह भेदभाव रहित होकर सबको श्रीरामजी से जोड़ने के कार्य से प्रेरणा लेते हुए सनातन संस्कृति से छुआछूत जातपात के भेदभाव को मिटाना है. अगर हिंदू राष्ट्र बनाना है तो हर भेद को मिटाकर हर सनातनी को गले से लगाना होगा. व्यास पीठ पर आरती करने का हक सभी को है. इसी के तहत भीलवाड़ा शहर के स्वच्छताकर्मी गुरुवार को व्यास पीठ की आरती करेंगे.”

हिंदू सोया हुआ है

बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कहा कि वर्तमान समय में हिंदू की बुरी दशा है। कुंभकर्ण के बाद कोई सोया है तो वह हिंदू सोया है। अब हिंदुओं को जागना होगा और घर से बाहर निकलना होगा। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कहा कि हमारे तन में जब तक प्राण रहेंगे तब तक हम हिंदुओं के लिए बोलेंगे, हिंदुओं के लिए लड़ेंगे। अब हमने विचार कर लिया है कि मंच से हिंदू राष्ट्र नहीं बनेगा। उन्होंने कहा कि हमें ना तो नेता बनना है ना किसी पार्टी को वोट दिलाना है। हम बजरंगबली की पार्टी में है, जिसका नारा भी है- जो राम का नहीं वह किसी काम का नहीं।

 

 

 

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