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कश्मीर में वापसी को लेकर बंटा पंडित समुदाय

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शेख कयूम

जम्मू। कश्मीर घाटी में निर्वासित पंडितों की वापसी को लेकर राजनेता संभावित रास्तों पर चर्चा कर रहे हैं, जबकि इस मुद्दे पर समुदाय दो गुटों में बंट गया है।

ऑल इंडिया कश्मीरी पंडित कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष एच.एन. जत्तू (81) को लगता है कि 1989 में अलगाववादी हिंसा के बाद हजारों की संख्या में पंडितों के घाटी छोड़ने के बाद यहां वापस लौटने का सही समय नहीं है। जत्तू ने बताया कि कश्मीर में मौजूदा राजनीतिक परिवेश पंडित समुदाय की वापसी के खिलाफ है। उन्होंने कहा, “25 सालों के बाद हमारा लौटना मजाक नहीं है। यह समुदाय के लिए एक बार फिर पीड़ादायक होगा, क्योंकि आज हम जहां रह रहे हैं, वहां हमने अपनी कमाई की पाई-पाई लगाई है।”

जत्तू ने कहा कि जब तक कि भारतीय संविधान की धारा 370 को निरस्त नहीं किया जाता और संसद द्वारा पारित कानूनों के सीधे राज्य में लागू नहीं किया जाता, तब तक पंडितों की वापसी एक राजनीतिक हथकंडा रहेगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को यह सुनिश्चित करने दें कि कश्मीर वास्तव में भारत का अंग बन गया है और हम अपने पूर्वजों की भूमि पर लौटेंगे।

पंडितों की पुरानी और युवा पीढ़ियों के विचारों में गंभीर मतभेद हैं कि क्या घाटी में लौटा जाए या नहीं। एसबीआई के सेवानिवृत्त अधिकारी जी.एल. दफ्तरी (67) के मुताबिक, “मेरी पत्नी और मेरे लिए यह पुराने संस्मरण हैं। इसकी जड़ें, इसकी यादें, विश्वास और सबकुछ। दफ्तरी ने बताया, “लेकिन दिल्ली की एक निजी कंपनी में नौकरी कर रहे मेरे बेटे के लिए इस बारे में सोचने के लिए समय ही कहां हैं?” “मैं लौटना चाहता हूं, लेकिन मेरे बेटे और बेटी को सुरक्षा और राजनीतिक निश्चितता के अलावा आर्थिक गारंटी भी चाहिए।”

1990 दशक की शुरुआत में पंडितों की भलाई के लिए समूहों और मंचों की स्थापना करने वाले कश्मीरी समुदाय के सदस्यों के लिए राजनीतिक दावे भावनात्मक मुद्दों के ऊपर हावी हो गए हैं। पणुम कश्मीर के महासचिव कुलदीप रैना ने संयुक्त बस्ती और 1990 से पहले निर्वासित पंडितों के स्थानों पर उनके लौटने के विचार को खारिज कर दिया है। रैना ने बताया, “धारा 370 को निरस्त करना चाहिए। भारतीय संविधान में विश्वास करने वाले किसी भी व्यक्ति को केंद्र शासित प्रदेश में रहने की अनुमति मिलनी चाहिए।” हालांकि जत्तू, दफ्तरी और रैना जैसे बुजुर्ग कश्मीरी घाटी में लौटने की इच्छा लिए हुए हैं, जबकि युवा पंडित इससे इत्तेफाक नहीं रखते।

बेंगलुरू की एक आईटी कंपनी में कार्यरत युवा आईटी कश्मीरी पंडित पेशेवर के मुताबिक, “आप किस वापसी की बात कर रहे हो? मैं महीने में लगभग दो लाख रुपये कमाता हूं। आप मुझे अपना करियर छोड़कर इस संस्कृति से जोड़ना चाहते हैं।” कश्मीरी अलगाववादियों का कहना है कि वे कश्मीर घाटी में पंडितों के लौटने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उनके लिए अलग से बस्ती नहीं बननी चाहिए।

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पीएम मोदी पर लिखी किताब के प्रचार के लिए स्मृति ईरानी चार देशों की यात्रा पर

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नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी एक नवीनतम पुस्तक ‘मोडायलॉग – कन्वर्सेशन्स फॉर ए विकसित भारत’ के प्रचार के लिए चार देशों की यात्रा पर रवाना हो गई हैं। यह दौरा 20 नवंबर को शुरू हुआ और इसका उद्देश्य ईरानी को मध्य पूर्व, ओमान और ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों से जोड़ना है।

स्मृति ईरानी ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा कि,

एक बार फिर से आगे बढ़ते हुए, 4 देशों की रोमांचक पुस्तक यात्रा पर निकल पड़े हैं! 🇮🇳 जीवंत भारतीय प्रवासियों से जुड़ने, भारत की अपार संभावनाओं का जश्न मनाने और सार्थक बातचीत में शामिल होने के लिए उत्सुक हूँ। यह यात्रा सिर्फ़ एक किताब के बारे में नहीं है; यह कहानी कहने, विरासत और आकांक्षाओं के बारे में है जो हमें एकजुट करती हैं। बने रहिए क्योंकि मैं आप सभी के साथ इस अविश्वसनीय साहसिक यात्रा की झलकियाँ साझा करता हूँ

कुवैत, दुबई, ओमान और ब्रिटेन जाएंगी स्मृति ईरानी

डॉ. अश्विन फर्नांडिस द्वारा लिखित यह पुस्तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन दर्शन पर प्रकाश डालती है तथा विकसित भारत के लिए उनके दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करती है। कार्यक्रम के अनुसार ईरानी अपनी यात्रा के पहले चरण में कुवैत, दुबई, फिर ओमान और अंत में ब्रिटेन जाएंगी।

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