Connect with us
https://aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

IANS News

कूड़े के ढेर में ‘सशक्तिकरण’ ढूंढती महिलाएं

Published

on

Loading

नई दिल्ली, 24 अप्रैल (आईएएनएस)| भारत में ‘महिला सशक्तिकरण’ और ‘समानता’ का ढिंढोरा पीटने वाली राजनीतिक पार्टियों की जमीनी हकीकत उनके घोषणा पत्रों से कतई इत्तेफाक नहीं रखती। देश में करीब 15 लाख से 40 लाख के बीच सड़कों पर कूड़े बीनने वाले लोग हैं, जिसमें से 40 फीसदी महिलाएं और 30 फीसदी कम उम्र की लड़कियां कूड़े के ढेर में सशक्तिकरण तलाश रही हैं। अकेले दिल्ली में ही पांच लाख लोग सड़कों पर कूड़ा बीनते हैं।

नई दिल्ली में पूर्व पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 2015 में कचरा प्रबंधन पर एक सम्मेलन में कहा था, इस अनौपाचारिक क्षेत्र ने देश को बचाया लिया। यह लोग अच्छा काम कर रहे हैं और मैंने इनके प्रयासों को मान्यता देने का फैसला किया है। हमें इन्हें राष्ट्रीय सम्मान देंगे।
नए तरीके से कचरा प्रबंधन करने के लिए तीन संगठनों और तीन कूड़ा बीनने वाले लोगों को डेढ़ लाख रुपये इनाम देने की घोषणा की गई थी, लेकिन वक्त बीतने के साथ यह योजना भी ठंडे बस्ते में चली गई।
सड़कों पर कूड़ा बीनने वाली महिलाओं व बच्चियों पर दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. प्रीति सोनी ने एक अध्ययन किया, जिसमें कई चौंका देने वाले तथ्य सामने आए।
डॉ. प्रीति ने आईएएनएस के साथ अपना अध्ययन साझा करते हुए बताया, यह शोध कूड़ा बीनने वाली महिलाओं और लड़कियों की स्थिति पर बारीकी से अध्ययन करने का एक प्रयास था। साथ ही इस अध्ययन का मकसद इनकी कार्य परिस्थितियों और इनके द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं के वर्तमान प्रभाव को समझना था।
उन्होंने कहा, अध्ययन में हमने इन लड़कियों को रोजमर्रा की जिंदगी में सामना करने वाली परिस्थितियों को देखा और समझा। हमने अध्ययन में इनके हर रोज के संघर्ष और अपने व अपने परिवारों की आजीविका के लिए प्रतिकूल वातावरण में कार्य करने की मजबूरी को पाया।
डॉ. प्रीति ने कहा, यह अध्ययन केंद्रीय दिल्ली में किया गया था। दिल्ली के मध्य क्षेत्र में उद्योगों और बाजारों की संख्या ज्यादा होने के कारण कूड़ा बीनने वाले लोगों की संख्या अधिक है। अध्ययन में चांदनी चौक, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन, लाजपत राय बाजार, आईएसबीटी, लाल किला और पेटी बाजार इलाकों को शामिल किया गया।
उन्होंने बताया कि अध्यय में जो निष्कर्ष निकलकर आए वह चौंकाने वाले थे। अध्ययन में पाया गया कि अधिकांश कूड़ा बीनने वाली लड़कियां 10 से 12 साल के आयु वर्ग की हैं। 98 प्रतिशत बच्चे ‘सड़क पर’ श्रेणी वाले पाए गए, जिसमें सात फीसदी लड़कियां की या तो मां नहीं है या फिर पिता।
दिल्ली के विभिन्न इलाकों में कूड़ा बीनने वाले 100 लड़िकयों पर अध्ययन किया गया, जिसमें चौंका देने वाली जानकारी सामने आई। अध्ययन में कूड़ा बीनने वाले 41 लड़िकयां10 से 12 साल की , 34 लड़कियां 13 से 15 साल की और 25 लड़कियां 16 से 18 साल के उम्र के बीच पाई गईं।
डॉ. प्रीति ने बताया, महिलाएं और बच्चियां घरों, दुकानों, कार्यशालाओं, या अन्य प्रतिष्ठानों द्वारा सड़कों, बाजारों, कचरा डिब्बों, और अपशिष्ट स्थलों पर फेंक दिए जाने वाले कूड़े को इकट्ठा करती हैं, जिसमें कागज, कार्डबोर्ड, प्लास्टिक, लोहा, टिन जैसी सामग्री शामिल होती हैं। जिसके बाद वह इन्हें खरीदने वाले डीलर को बेच देती हैं, जहां से कचरे को रीसाइक्लिंग उद्योग के लिए भेजा जाता है।
उन्होंने कहा, महिलाएं और पुरुष देर रात अपना काम शुरू करते हैं तो वहीं बच्चे और लड़कियां तड़के अपने कमजोर कंधों पर भारी बोरे लादकर सड़कों पर कूड़ा बीनने के लिए जगह जगह घूमती हैं। यह एक लोग एक दिन में आठ से 10 किलोमीटर तक की यात्रा करते हैं। बहुत कम उम्र के बच्चे आम तौर पर समूहों में जाते है तो वहीं लड़कियां कभी-कभी वयस्क महिला के साथ कूड़ा बीनती हैं।
अध्ययन के मुताबिक, कूड़ा बीनने वाले कुछ बच्चे करीब छह साल की आयु के आसपास होते हैं, वह बड़े बच्चों के साथ आगे बढ़ते हुए कूड़े और वस्तुओं को इकट्ठा करना सीखते हैं। यह बच्चे बहुत ही गरीब सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हैं। इनमें से कुछ का परिवार भी नहीं होता है।
इन महिलाओं और बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर डॉय प्रीति ने अपने अध्ययन में कहा, इन महिलाओं और लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न और शारीरिक शोषण का जोखिम भी रहता है जो उनके भविष्य के विकास को प्रभावित करता है। लड़कियों का समूह सबसे कमजोर समूह हैं, क्योंकि समाज की आंखों में उनके प्रति कोई स्थिति और आवाज नहीं है, इसलिए उनका शोषण सबसे अधिक किया जाता है।
उन्होंने कहा, लड़कियों ने भी इसका उल्लेख किया कि उन्हें छोटी गलतियों के लिए विशेष रूप से नगर निगम द्वारा दंडित, पीटा और उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है।
डॉ. प्रीति ने कहा, एक 10 साल की लड़की ने कहा कि लोग सोचते हैं कि हम चोर और उपद्रवी हैं, इसलिए नियमित रूप से हमें सड़क से दूर के कोनों में ले जाकर हमारे पैसे छीन लिए जाते हैं।
डॉ. प्रीति ने इसे एक बेहद खतरनाक व्यवसाय करार देते हुए कहा, नंगे हाथों और नंगे पैरों के कारण बच्चें तेजी से सामग्री और जहरीले पदार्थों के संपक में आकर दुर्घटनाओं, चोटों और बीमारी के खतरे की चपेट में आ जाते हैं। उनका न केवल कामकाजी माहौल बहुत ही गंदा और बीमारी पैदा करने वाला है, बल्कि उनका रिहायशी वातावरण भी उतना ही खराब है।

Continue Reading

IANS News

टेनिस : दुबई चैम्पियनशिप में सितसिपास ने मोनफिल्स को हराया

Published

on

Loading

 दुबई, 1 मार्च (आईएएनएस)| ग्रीस के युवा टेनिस खिलाड़ी स्टेफानोस सितसिपास ने शुक्रवार को दुबई ड्यूटी फ्री चैम्पियनशिप के पुरुष एकल वर्ग के सेमीफाइनल में फ्रांस के गेल मोनफिल्स को कड़े मुकाबले में मात देकर फाइनल में प्रवेश कर लिया।

  वर्ल्ड नंबर-11 सितसिपास ने वर्ल्ड नंबर-23 मोनफिल्स को कड़े मुकाबले में 4-6, 7-6 (7-4), 7-6 (7-4) से मात देकर फाइनल में प्रवेश किया।

यह इन दोनों के बीच दूसरा मुकाबला था। इससे पहले दोनों सोफिया में एक-दूसरे के सामने हुए थे, जहां फ्रांस के खिलाड़ी ने सीधे सेटों में सितसिपास को हराया था। इस बार ग्रीस के खिलाड़ी ने दो घंटे 59 मिनट तक चले मुकाबले को जीत कर मोनफिल्स से हिसाब बराबर कर लिया।

फाइनल में सितसिपास का सामना स्विट्जरलैंड के रोजर फेडरर और क्रोएशिया के बोर्ना कोरिक के बीच होने वाले दूसरे सेमीफाइनल के विजेता से होगा। सितसिपास ने साल के पहले ग्रैंड स्लैम आस्ट्रेलियन ओपन में फेडरर को मात दी थी।

Continue Reading

Trending