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क्या सोशल मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बनेगा?

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मीडिया के तेजी से हो रहे ध्रुवीकरण ने भारत और शायद पूरे विश्व में दिनोदिन खबरों पर समाज के भरोसे को कम किया है। अखबारों व टेलीविजन चैनलों के रूप में पत्रकारिता (मीडिया) को कभी लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में माना जाता था, वह आज हर रोज स्वार्थ साधने वाली खबरों के प्रकाशित होने से लोगों की छानबीन व पुष्टि का मोहताज बन गया है।

आज जिस समय में हम रह रहे हैं, वह मीडिया के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है। मीडिया का राजनीतिक पार्टियों व नेताओं के साथ कितना करीबी संबंध बन गया है, यह किसी से छिपी हुई बात नहीं है। पत्रकार का अब समाज में उतना सम्मान नहीं रह गया है, जितना एक दशक पहले तक था। अन्य सम्मोहक कारकों ने मिलकर एक उदार लोकतंत्र में मीडिया के स्तर को अत्यधिक नीचे गिराने का काम किया है। लोग अब जो कुछ पढ़ते या देखते हैं, उस पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं करते, बल्कि संदेह की नजर से देखते हैं। मीडिया अब ज्यादातर उन दर्शकों के लिए नहीं रह गया है, जो ईमानदार खबरें पसंद करते हैं, क्योंकि ऐसी खबरें सच तो होती हैं, मगर उसे पचाना मुश्किल होता है।

मीडिया के अस्तित्व का सबसे जरूरी उद्देश्य संकट में है..यह वह संकट है, जो सोशल मीडिया को ‘लोकतंत्र के चौथे स्तंभ’ के रूप में अच्छी तरह फिट कर सकता है और यह अनुमान से बहुत पहले हो सकता है।

यह विभिन्न कारकों से हो सकता है, जिसमें मुख्यधारा के मीडिया से ऊब चुके लोगों के लिए सोशल मीडिया का आकर्षण और कम सुविधा संपन्न लोगों के बीच इंटरनेट की बढ़ती क्षमता प्रारंभिक कारण हो सकते हैं।

भारत में टेलीविजन चैनलों से लेकर प्रमुख समाचारपत्रों तक गैर-सनसनीखेज खबरों, फिर चाहे वह सांस्कृतिक हों या सामाजिक, जिन्हें ‘सॉफ्ट न्यूज’ कहा जाता है, उनका स्थान तेजी से कम हो रहा है।

पहले जो अखबार के पन्ने थियेटर, संगीत और पुस्तकों को समर्पित थे, वे अब ‘हार्ड’ पॉलिटिक्स या केवल नकारात्मक और संघर्ष-संबंधी समाचारों के बनकर रह गए हैं, यह उस समय की गंभीर तस्वीर को इंगित करते हैं, जिसमें हम रह रहे हैं।

पाठकों के एक विशेष वर्ग, जो बौद्धिक खबरों के इच्छुक रहते हैं, उनके लिए अब अखबार में वैसा कुछ नहीं मिलता। ऐसे में सोशल मीडिया इस तरह के पाठकों के लिए एक राहत बनकर आता है। वे कीबोर्ड पर अपनी उंगलियों के सहारे दुनियाभर की मन-मुताबिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

भारत में इंटरनेट की बढ़ती उपलब्धता मीडिया के लिए इस चुनौती को बढ़ाने वाली है। दूरसंचार सेवा प्रदाताओं ने जो असीमित मासिक इंटरनेट योजनाएं शुरू की हैं, वे ज्यादातर अखबारों की मासिक सदस्यता की तुलना में आश्चर्यजनक रूप से काफी कम हैं।

आखिरकार मीडिया लोगों की भरोसेमंद आवाज है, जैसा कि अफ्रीकी-अमेरिकी मानवाधिकार कार्यकर्ता मैल्कॉम एक्स ने कहा है, मीडिया धरती की सबसे शक्तिशाली वस्तु है। उसके पास निर्दोष को दोषी और दोषी को निर्दोष बनाने की शक्ति है, क्योंकि वह जनता के दिमाग को नियंत्रित करती है।

सोशल मीडिया और इंटरनेट अब भी भारत में नई चीज हैं, जिसे आज के कॉलेज छात्रों ने अपनी आंखों के सामने उभरते देखा है। दूसरी तरफ परंपरागत मीडिया सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा है। यह सबसे सही समय है, जब मीडिया उद्यमियों और मीडिया बिरादरी को पारंपरिक मीडिया का सोशल मीडिया के साथ पुन: मूल्यांकन करना चाहिए।

अगर वह ऐसा नहीं करते हैं तो सोशल मीडिया लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में पारंपरिक मीडिया की जगह ले सकता है। स्थान के रूप में बदल दिया जाता है और यह एक अधिक भय है।

(साकेत सुमन आईएएनएस के प्रमुख संवाददाता हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं)

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टेनिस : दुबई चैम्पियनशिप में सितसिपास ने मोनफिल्स को हराया

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 दुबई, 1 मार्च (आईएएनएस)| ग्रीस के युवा टेनिस खिलाड़ी स्टेफानोस सितसिपास ने शुक्रवार को दुबई ड्यूटी फ्री चैम्पियनशिप के पुरुष एकल वर्ग के सेमीफाइनल में फ्रांस के गेल मोनफिल्स को कड़े मुकाबले में मात देकर फाइनल में प्रवेश कर लिया।

  वर्ल्ड नंबर-11 सितसिपास ने वर्ल्ड नंबर-23 मोनफिल्स को कड़े मुकाबले में 4-6, 7-6 (7-4), 7-6 (7-4) से मात देकर फाइनल में प्रवेश किया।

यह इन दोनों के बीच दूसरा मुकाबला था। इससे पहले दोनों सोफिया में एक-दूसरे के सामने हुए थे, जहां फ्रांस के खिलाड़ी ने सीधे सेटों में सितसिपास को हराया था। इस बार ग्रीस के खिलाड़ी ने दो घंटे 59 मिनट तक चले मुकाबले को जीत कर मोनफिल्स से हिसाब बराबर कर लिया।

फाइनल में सितसिपास का सामना स्विट्जरलैंड के रोजर फेडरर और क्रोएशिया के बोर्ना कोरिक के बीच होने वाले दूसरे सेमीफाइनल के विजेता से होगा। सितसिपास ने साल के पहले ग्रैंड स्लैम आस्ट्रेलियन ओपन में फेडरर को मात दी थी।

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