खेल-कूद
क्रिकेटरों को ‘कुबेर’ बनाने वाला अब हमारे बीच नहीं रहा
जयंत के. सिंह
नई दिल्ली। जगमोहन डालमिया अब हमारे बीच नहीं रहे। डालमिया की पहचान ऐसे क्रिकेट प्रशासक के रूप में है, जो भारत में नहीं बल्कि विश्व क्रिकेट में ‘धन’ लेकर आए और आज उन्हीं की देन है कि क्रिकेट खिलाड़ी ‘धन कुबेर’ बने हुए हैं।
भारत जब 1983 में पहली बार क्रिकेट विश्व चैम्पियन बना था, तब क्रिकेट की लोकप्रियता चरम पर थी लेकिन वित्तीय रूप से यह खेल अपने पैरों पर खड़ा नहीं था। डालमिया ने अपनी दूरदर्शिता से क्रिकेट को टेलीविजन प्रसारण से मिलने वाली लोकप्रियता से लेकर धन तक, हर चीज मुहैया कराई। डालमिया 1983 में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के कोषाध्यक्ष बने थे। यहीं से भारतीय क्रिकेट ने विकास का रुख किया और आज की तारीख में क्रिकेट की महाशक्ति बन चुका है। यह सब डालमिया की देन है।
डालमिया भारत के महानतम खेल प्रशासकों में से एक थे। ऐसे समय में जब क्रिकेट पर कई तरह के ग्रहण लगे थे, इस खेल को हद तक प्यार करने वाले डालमिया ईमानदारी और प्रशासकीय दूरदर्शिता के कारण अलग ही खड़े दिखाई देते थे। अगर कैरी पैकर ने आस्ट्रेलियाई क्रिकेट को एक संरचनात्मक रूप दिया तो डालमिया को भारत का कैरी पैकर कहा जा सकता है। अपने पूरे जीवनकाल में डालमिया ने सिर्फ क्रिकेट को जिया है और उनकी सफलता का आलम यह था कि शीर्ष पर रहते हुए उन्होंने अंतिम सांस ली।
डालमिया के 35 के क्रिकेट प्रशासन का सफर 1963 में शुरू होता है। वह कोलकाता में राजस्थान क्लब (एमच्योर क्लब) की कार्यकारिणी के सदस्य थे। इसके बाद डालमिया ने बंगाल क्रिकेट संघ (सीएबी) में स्थान बनाया। धीरे-धीरे डालमिया ने सीएबी में तरक्की की सीढ़ियां चढ़ीं और कोषाध्यक्ष तथा बाद में 1978 में सचिव बने। अपने इस कार्यकाल के दौरान डालमिया ने बंगाल क्रिकेट को एक संरचनात्मक विकास दिया, जिसकी बदौलत वह 1989-90 में घरेलू चैम्पियन बना।
डालमिया 1993 तक सीएबी के अध्यक्ष रहे। 1979 में डालमिया ने बीसीसीआई का रुख किया। वह कार्यकारी समिति के सदस्य बने। वित्तीय स्तर पर उनके सुझाव बोर्ड को काफी पसंद आए, जो उन दिनों अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी धमक बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा था। तीन साल के भीतर डालमिया बीसीसीआई कोषाध्यक्ष बने। डालमिया तत्कालीन अध्यक्ष एनकेपी साल्वे के करीबी और भरोसेमंद थे। साल्वे, डालमिया और आईएस बिंद्रा ने साथ मिलकर क्रिकेट विश्व कप को यूरोप से बाहर निकाला।
वर्ष 1987 में भारत ने पाकिस्तान और श्रीलंका के साथ मिलकर विश्व कप का आयोजन किया और इसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज एक बड़ा साझेदार बना। रियायंस का क्रिकेट में आना इस बात का प्रतीक था कि भारत में इस खेल को वित्तीय आधार मिल सकता था। इसके बाद कई कम्पनियों ने क्रिकेट में पैसा लगाना शुरू किया। 1987 विश्व कप के दौरान डालमिया ने मुख्य टूर्नामेंट प्रबंधक के तौर पर काम किया और डालमिया ने बंगाल में क्रिकेट को लोकप्रियता के शिखर तक पहुंचाने के लिए साल्वे को विश्व कप फाइनल को मुम्बई से कोलकाता में कराने के लिए राजी कर लिया।
1987 विश्व कप बेहद सफल रहा। 1990 में डालमिया और बिंद्रा को बीसीसीआई का संयुक्त अध्यक्ष नियुक्त किया गया। बिंद्रा इस पल को नहीं भूलते। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के प्रधान सलाहकार और पंजाब क्रिकेट संघ के अध्यक्ष बिंद्रा ने कहा, “1984 में साल्वे के नेतृत्व में हम दक्षिण एशिया के क्रिकेट प्रशंसकों के लिए विश्व कप इंग्लैंड से बाहर लाने में सफल रहे और 1987 में रिलांयस कप का बेहद सफल आयोजन किया।”
बिंद्रा ने कहा, “हम विश्व क्रिकेट में आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड का दबदबा खत्म करने में सफल रहे और आईसीसी को लोकतांत्रिक और एक वास्तविक खेल प्रतिनिधि के रूप में स्थापित किया।” बिंद्रा ने कहा कि उन्हें अच्छी तरह याद है जब डालमिया और उन्होंने राष्ट्रीय प्रसारणकर्ता दूरदर्शन से सीधे प्रसारण के अधिकार हासिल करने में अहम भूमिका निभाई। बाद में उनका यह कदम भारत में प्रसारण उद्योग के लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ।
पिछले वर्ष क्रिकेट को पूरी तरह अलविदा कह चुके बिंद्रा ने कहा कि 1996 में विश्व कप के सफल आयोजन के बाद भारत की स्थिति वैश्विक बाजार में काफी मजबूत हुई, जो सिर्फ डालमिया की ‘जुनून, ऊर्जा और प्रतिबद्धता’ से संभव हो सका। आज अगर इंडियन क्रिकेट लीग (आईपीएल) में अपार धन है तो इसमें कहीं न कहीं डालमिया का योगदान है। क्रिकेट को सबसे बड़ी वित्तीय जीत दिलाने के बाद डालमिया ने आईसीसी का रुख किया और 1997 में इसके अध्यक्ष बने। 2000 तक वह इस पद पर रहे। डालमिया ने आईसीसी को भी मुनाफा कमाने वाला संगठन बनाया।
वर्ष 2001 में डालमिया पहली बार बीसीसीआई अध्यक्ष बने। 2005 में डालमिया का खेमा बोर्ड चुनावों में शरद पवार के खेमे से हार गया। डालमिया पर 1996 विश्व कप के आयोजन में वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाकर बोर्ड की बैठकों में हिस्सा लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इससे आहत डालमिया ने सीएबी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। 2010 में बोर्ड ने डालमिया पर लगे सारे आरोप वापस ले लिए। डालमिया एक बार फिर सीएबी में लौटे और 2013 मार्च में डालमिया को एन. श्रीनिवासन के अंतरिम उत्तराधिकारी के तौर पर बोर्ड अध्यक्ष चुना गया लेकिन खराब स्वास्थ्य के कारण वह कामकाज नहीं देख सके। 2015 में डालमिया फिर बोर्ड के अध्यक्ष बने और इसी पद पर रहते हुए अंतिम सांस ली।
विश्व क्रिकेट में डालमिया के योगदान का कोई सानी नहीं। वह बेमेल थे। व्यक्तिगत जीवन में व्यवसायी होने का फायदा डालमिया ने क्रिकेट में हासिल किया और इस खेल की लोकप्रियता का भरपूर दोहन करते हुए खिलाड़ियों को धन कुबेर बना दिया और बोर्ड को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बनाया। डालमिया का प्रशासनिक जीवन एक ऐसा उदाहरण है, जिस पर चलते हुए उनके उत्तराधिकारी इस खेल की गरिमा और इसमें धन के प्रवाह को लगातार बनाए रख सकते हैं।
खेल-कूद
ऑस्ट्रेलिया ने पाकिस्तान को दो विकेट से रौंदा, पैट कमिंस ने खेली कप्तानी पारी
मेलबर्न। ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान के बीच वनडे सीरीज का आगाज हो चुका है। पहला वनडे मैच मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में खेला गया जिसमें मेजबान ऑस्ट्रेलिया ने रोमांचक अंदाज में जीत दर्ज की। ऑस्ट्रेलिया ने पाकिस्तान को 2 विकेट से हराकर 3 मैचों की वनडे सीरीज में 1-0 की बढ़त हासिल की।पहले बल्लेबाजी करते हुए पाकिस्तान की पूरी टीम 50 ओवर भी नहीं खेल सकी। पाकिस्तान की टीम 46.4 ओवरों में महज 203 रनों पर ढेर हो गई। पाकिस्तान की ओर से सबसे ज्यादा रनों की पारी मोहम्मद रिजवान ने खेली। रिजवान ने 71 गेंदों पर 2 चौके और 1 छक्के की मदद से 44 रनों की पारी खेली। इसके अलावा नसीम शाह ने 40 रनों का योगदान दिया।
दो विकट से जीता ऑस्ट्रेलिया
204 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए ऑस्ट्रेलिया की शुरुआत भी कुछ खास नहीं रही। ऑस्ट्रेलिया ने 28 रनों तक मैथ्यू शॉर्ट और जेक फ्रेजर मैकगर्क के विकेट गंवा दिए थे। इसके बाद स्टीव स्मिथ और जोश इंग्लिश ने मिलकर स्कोर 113 रनों तक पहुंचाया। स्मिथ 44 रन बनाकर जबकि जोश 49 रन बनाकर आउट हुए। इसके बाद एक के बाद एक विकेट गिरते चले गए और ऑस्ट्रेलिया का स्कोर 185 रनों पर आठ विकेट हो गया। कप्तान पैट कमिंस ने स्टार्क के साथ मिलकर टीम को दो विकेट से रोमांचक जीत दिलाई।
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