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हेल्थ

गर्भावस्था में एनआईपीटी से पता चलेगी जेनेटिक गड़बड़ी

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बेंगलुरु, 2 अप्रैल (आईएएनएस)| शोध कंपनी मेडजेनोम ने गर्भावस्था में सटीक जांच के लिए नॉन-इनवैसिव प्रीनैटल टेस्टिंग (एनआईपीटी) पेश किया है जो गर्भस्थ शिशु के जन्म से काफी पहले डाउंस सिंड्रोम जैसी असामान्य क्रोमोसोम संबंधी गड़बड़ियों का पता लगाने का प्रभावी, सटीक और सुरक्षित तरीका साबित होगा।

मेडजेनोम में एनआईपीटी की कार्यक्रम निदेशक प्रिया कदम ने नुकसानरहित जांच प्रक्रिया के महत्व के बारे में बताया, एनआईपीटी किसी खास उम्र के लोगों के लिए नहीं है और इसे बच्चे की सेहत सुनिश्चित करने के लिए सभी गर्भवती महिलाओं को मुहैया कराया जा सकता है। इसके अलावा अधिक सटीक होने, सुरक्षा और गड़बड़ी की कमी की कम दर के कारण एनआईपीटी किसी भी गर्भवती महिला के लिए उपयुक्त विकल्प है और इसे गर्भावस्था के 9वें सप्ताह में ही कराया जा सकता है।

उन्होंने कहा, एनआईपीटी एक क्रांतिकारी जांच है और बेहतर जागरूकता और स्वीकृति के साथ यह टेस्ट हमारे देश की जेनेटिक गड़बड़ी के बोझ को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

कंपनी ने एक बयान में कहा कि मां की बांह से लिए गए खून के मामूली नमूने से एनआईपीटी स्क्रीनिंग टेस्ट में भ्रूण के कोशिकामुक्त डीएनए का विश्लेषण और क्रोमोसोम संबंधी दिक्कतों की जांच की जाती है। यह परीक्षण पूरी तरह सुरक्षित है और इसमें कोई नुकसान नहीं होता है। 99 फीसदी से अधिक स्तर तक बीमारी का पता लगाने की दर और 0.03 फीसदी से भी कम गलती के साथ यह जांच काफी हद तक सटीक है। जिन परिस्थितियों में एनआईपीटी को लागू किया गया वहां नुकसानदायक प्रक्रियाओं में 50-70 फीसदी तक की महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गई।

इस अध्ययन में एनआईपीटी स्क्रीनिंग 516 गर्भवतियों पर किया गया जिनमें पहली और दूसरी तिमाही में पारंपरिक स्क्रीनिंग टेस्ट (डबल मार्कर, क्वॉड्रपल मार्कर टेस्ट) में अत्यधिक जोखिम की जांच की गई। इन परीक्षणों की पुश्टि नुकसानदायक परीक्षण या जन्म के बाद क्लिनिकल परीक्षण के माध्यम से हुई। जांच के परीक्षणों के लिए 98 फीसदी से अधिक मामलों में कम जोखिम और 2 फीसदी में अधिक जोखिम की जानकारी मिली।

इस बात पर गौर करना चाहिए कि पारंपरिक जांच के माध्यम से अधिक जोखिम वाली गर्भावस्थाओं को एनआईपीटी के साथ कम जोखिम वाला पाया गया। इसका मतलब है कि बड़ी तादाद में महिलाएं (98.2 फीसदी) एमिनोसेंटेसिस जैसी नुकसानदायक प्रक्रियाओं से बच सकती हैं जिससे भावनात्मक परेशानी होती है और इनमें गर्भपात का भी मामूली जोखिम होता है।

मेडजेनोम फिलहाल बेंगलुरू स्थित अपनी सीएपी प्रमाणित प्रयोगशाला में विभिन्न प्रमुख बीमारियों के लिए विभिन्न प्रकार के परीक्षणों की पेशकश कर रही है जिनमें एक्जोम सीक्वेंसिंग, लिक्विड बायोप्सी और करियर स्क्रीनिंग शामिल है।

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लाइफ स्टाइल

साइलेंट किलर है हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी, इन लक्षणों से होती है पहचान  

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नई दिल्ली। हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी एक ऐसी समस्या है, जो धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है इसीलिए इसे एक साइलेंट किलर कहा जाता है। ये बीमारी शरीर पर कुछ संकेत देती है, जिसे अगर नजरअंदाज किया गया, तो स्थिति हाथ से निकल भी सकती है।

हालांकि, पिछले कुछ सालों में कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी है और सावधानियां भी बरती जाने लगी हैं। ऐसा नहीं है कि कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए पूरी तरह से नुकसानदायक है। अगर यह सही मात्रा में हो, तो शरीर को फंक्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चलिए जानते हैं इसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।

कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो क्या होगा?

जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dL से अधिक हो जाती है, तो इसे हाई कोलेस्ट्रॉल की श्रेणी में गिना जाता है और डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए डाइट से लेकर जीवन शैली तक में कई बदलाव करने की सलाह देते हैं। अगर लंबे समय तक खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बनी रहे, तो यह हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।

हाई कोलेस्ट्रॉल को “साइलेंट किलर” क्यों कहते हैं?

हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेंट किलर इसलिए कहते हैं क्योंकि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर इसका काफी खतरनाक असर पड़ता है, जिसकी पहचान काफी देर से होती है। इसके शुरुआती लक्षण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर जाते हैं और यहीं से यह बढ़ना शुरू हो जाते हैं। आखिर में इसकी पहचान तब होती है जब शरीर में इसके उलटे परिणाम नजर आने लगते हैं या फिर कोई डैमेज होने लगता है।

शरीर पर दिखने वाले कोलेस्ट्रॉल के लक्षणों को कैसे पहचानें?

हाई कोलेस्ट्रॉल के दौरान पैरों में कुछ महत्वपूर्ण लक्षण नजर आने लगते हैं, जिसे क्लाउडिकेशन कहते हैं। इस दौरान पैरों की मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन और थकान महसूस होता है। ऐसा अक्सर कुछ दूर चलने के बाद होता है और आराम करने के साथ ही ठीक हो जाता है।

क्लाउडिकेशन का दर्द ज्यादातर पिंडिलियों, जांघों, कूल्हे और पैरों में महसूस होता है। वहीं समय के साथ यह दर्द गंभीर होता चला जाता है। इसके अलावा पैरों का ठंडा पड़ना भी इसके लक्षणों में से एक है।

गर्मी के मौसम में जब तापमान काफी ज्यादा हो, ऐसे समय में ठंड लगना एक संकेत है कि व्यक्ति पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से जूझ रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि यह स्थिति शुरुआत में परेशान न करे, लेकिन अगर लंबे समय तक यह स्थिती बनी रहती है तो इलाज में देरी न करें और समय रहते डॉक्टर से इसकी जांच करवाएं।

हाई कोलेस्ट्रॉल के अन्य लक्षणों में से एक पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बदलाव आना भी शामिल है। इस दौरान ब्लड वेसेल्स में प्लाक जमा होने लगते हैं, जिसके कारण ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है।

ऐसे में जब शरीर के कुछ हिस्सों में कम मात्रा में खून का दौड़ा होता है, तो वहां कि त्वचा की रंगत और बनावट के अलावा शरीर के उस हिस्से का फंक्शन भी प्रभावित होता है।

इसलिए, अगर आपको अपने पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बिना कारण कोई बदलाव नजर आए, तो हाई कोलेस्ट्रॉल इसका कारण हो सकता है।

डिस्क्लेमर: उक्त लेख सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।

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