प्रादेशिक
छत्तीसगढ़ के नक्सली क्षेत्रों में हर 2 दिन पर 1 हत्या
शंकर पांडे
रायपुर। नक्सलियों की हिंसा और हत्या के मामले में छत्तीसगढ़ प्रदेश ‘सिरमौर’ बनता जा रहा है। 11 वर्षों की तुलनात्मक आंकड़ों से यह बात सामने आई है। वर्ष 2005 से इस वर्ष 5 अप्रैल तक राज्य में 2232 लोगों की जान जा चुकी है, जिनमें 846 सुरक्षाकर्मी, 677 आम नागरिक तथा 709 नक्सली शामिल बताए जाते हैं। आंकड़ों की मानें तो हर दो दिन पर नक्सली हिंसा में एक व्यक्ति की मौत (हत्या) होती है।
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद यूं तो अविभाजित मध्यप्रदेश में अलग छत्तीसगढ़ राज्य बनने पर विरासत में मिला था, पर सलवा जुडूम जैसे सरकारी संरक्षण में चलाए गए आंदोलन के चलते नक्सली हिंसा में और वृद्धि दर्ज की गई। नक्सलवाद से निपटने के लिए हालांकि पंजाब के वरिष्ठ पुलिस अफसर केपीएस गिल की भी सेवाएं ली गईं, लेकिन वांछित सफलता उन्हें भी नहीं मिल सकी।
सलवा जुडूम के चलते नक्सली और ग्रामीणों के बीच तकरार बढ़ी और 644 से अधिक गांव खाली हो गए तथा ग्रामीण रहवासियों को सलवा जुडूम कैम्प में शरण लेनी पड़ी थी। 2005 से सलवा जुडूम आंदोलन की स्थापना के बाद 300 सुरक्षा कर्मी सहित 800 से अधिक लोगों की हत्या का आरोप नक्सलियों पर लगा है। 23 राहत शिविरों में हजारों लोग रहते थे। धीरे-धीरे सलवा जुडूम आंदोलन ने दम तोड़ दिया। शिविर से कुछ लोग अपने गांव लौट गए तो कुछ पड़ोसी राज्यों में पलायन कर गए कुछ लोग अब पड़ोसी राज्यों से भी लौट रहे हैं।
सलवा जुडूम आंदोलन के चलते ही राज्य सरकार ने स्पेशल पुलिस ऑफिसर (एसपीओ) की भी नियुक्ति की थी। मासिक मानदेय 3000 रुपये पर करीब 4000 युवाओं की भर्ती की गई थी। फरवरी 2009 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर एसपीओ की नियुक्ति, हथियार नहीं देने का आदेश पारित करने के बाद यह व्यवस्था समाप्त हो गई है। वर्ष 2010 में छत्तीसगढ़ के ताड़मेटला में 76 सीआरपीएफ के जवानों को घेरकर नक्सलियों द्वारा हत्या किए जाने की घटना देश के इतिहास में नक्सलियों द्वारा की गई सबसे बड़ी वारदात के रूप में देखा गया था। वहीं राजनांदगांव के तत्कालीन पुलिस कप्तान विनोद कुमार चौबे की मदनवाड़ा (राजनांदगांव) में कुछ सुरक्षाकर्मियों सहित की गई हत्या भी बड़ी घटना थी। यानी हालात जस के तस हैं।
जिस क्षेत्र में सीआरपीएफ के प्रशिक्षण 76 जवानों की नक्सलियों ने घेरकर हत्या कर दी थी, उसी के पास नक्सलियों के सुरक्षित क्षेत्र में एसटीएफ के 69 जवानों की टुकड़ी भी शनिवार को नक्सलियों से घिर गई और सात जवान शहीद हो गए। सवाल यही उठ रहा है कि बिना तैयारी के नक्सलियों के सुरक्षित क्षेत्र में एसटीएफ की छोटी टुकड़ी खोजी अभियान में किसके आदेश पर गई थी?
वर्ष 2005 से 12 अप्रैल 2015 तक छत्तीसगढ़ में 2232 लोगों की हत्या नक्सलियों के हमले में हुई है। इस हिसाब से औसतन दो दिनों में एक मौत होती है। 11 सालों में 896 सुरक्षा बल के जवान, 667 आम नागरिकों की मौत हुई है तो पुलिस द्वारा 709 नक्सलियों को मार गिराने का दावा किया गया है। सर्वाधिक मौत का आंकड़ा 2006 में दर्ज है। इस साल 361 की मौत हुई थी, 2007 में 350, 2009 में 345 तथा 2010 में 327 लोगों की मौत हुई थी। इस वर्ष आज तक 30 लोगों की मौत हुई है, जिनमें 17 सुरक्षा बल के जवान नौ नागरिक तथा दो नक्सली बताए जाते हैं। इस तरह नक्सलवाद प्रभावित राज्यों में छत्तीसगढ़ अभी सिरमौर बना हुआ है। 11 सालों में नक्सली हमले में 2232 झारखंड में 1344, आंध्र प्रदेश में 712 तथा ओडिशा में 612 एवं महाराष्ट्र में 424 लोगों की मौत हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश
विशेष ट्रैक सूट में श्रद्धालुओं की मदद को तत्पर रहेंगे ड्राइवर, नाविक और गाइड
प्रयागराज। प्रयागराज में महाकुंभ 2025 की तैयारी जोरों पर है। इसके अंतर्गत आने वाले लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों की सुविधा को देखते हुए प्रशासन ने कुछ नई पहल की हैं। खासतौर से कुंभ मेले में कार्यरत ड्राइवर, नाविक, गाइड और ठेला संचालकों को विशेष तरह के ट्रैक सूट पहनाने की योजना बनाई गई है। इससे ना केवल इन्हें पहचानना आसान होगा, बल्कि पर्यटकों को भी इनसे सहायता प्राप्त करने में भी सुविधा होगी।
विशेष पहचान के लिए विभिन्न रंग
चारों श्रेणियों के लिए विशेष ट्रैक सूट तैयार किए जा रहे हैं। प्रशासन ने यह निर्णय इस बात को ध्यान में रखते हुए लिया है कि मेले में भीड़भाड़ के दौरान यात्रियों को आवश्यक सेवाएं सहजता से मिल सकें। ड्राइवरों, नाविकों, गाइडों और ठेला संचालकों के लिए अलग अलग प्रकार के ट्रैक सूट निर्धारित किए गए हैं। इस प्रकार, हर श्रेणी की अपनी एक विशिष्ट पहचान होगी, जिससे यात्री आसानी से इन सेवाओं का लाभ उठा सकेंगे।
प्रतीक चिन्ह से होगी पहचान
प्रत्येक ट्रैक सूट पर कुंभ और पर्यटन विभाग का प्रतीक चिन्ह अंकित होगा। यह संबंधित व्यक्ति की पहचान को दर्शाएगा, जिससे किसी भी प्रकार की जानकारी या सहायता में पारदर्शिता बनी रहेगी। प्रशासन का मानना है कि इस नई व्यवस्था से मेले में किसी भी प्रकार की अव्यवस्था और यात्री समस्याओं को नियंत्रित किया जा सकेगा।
सुविधा और सुरक्षा की दिशा में एक कदम
महाकुंभ जैसे विशाल आयोजन में प्रतिवर्ष करोड़ों की संख्या में लोग आते हैं। ऐसे में व्यवस्थाओं को सुव्यवस्थित रखना एक चुनौती होती है। ट्रैक सूट योजना का उद्देश्य यात्रियों को सहजता और सुविधा प्रदान करना है। पर्यटन विभाग का मानना है कि इस पहल से न केवल पर्यटकों की सहूलियत में इजाफा होगा, बल्कि उनकी सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सकेगी।
महाकुंभ 2025 में ड्राइवर, नाविक, गाइड और ठेला संचालकों को ट्रैक सूट प्रदान किए जाएंगे। इन ट्रैक सूट पर पर्यटन और कुंभ का लोगो भी अंकित होगा। ये बदलाव विशेष आकर्षण होंगे, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों को एक बेहतर अनुभव प्रदान करेंगे।
अपराजिता सिंह, क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी
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