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हेल्थ

डायबिटीज पीड़ित महिलाओं के लिए व्यक्तिगत देखभाल फायदेमंद

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लंदन। यह बात बेहद हैरान करने वाली है कि व्यक्तिगत रूप से की गई देखभाल मधुमेह पीड़ित महिलाओं में मृत्यु दर को कम करता है। एक नए अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ। महिलाओं पर किए गए 13 साल के सर्वेक्षण में सामने आया कि जिन महिलाओं की व्यक्तिगत तौर पर देखभाल की गई, उनमें अन्य कारणों को लेकर मृत्यु दर में 26 फीसदी की कमी और मधुमेह संबंधी रोग में 30 फीसदी की कमी दर्ज की गई।

इसके अलावा, व्यक्तिगत देखभाल के तहत महिलाओं में हृदयाघात की संभावना 41 प्रतिशत कम हुई और मधुमेह के साथ ही दूसरा रोग होने के खतरे में 35 प्रतिशत की कमी देखी गई। डेनमार्क के कोपनहेगेन यूनिवर्सिटी के मुख्य शोधार्थी मारलिनी क्रैग के अनुसार, “व्यक्तिगत ढंग से देखभाल, समुचित ध्यान और समर्थन महिलाओं को बीमारी से लड़ने के लिए प्रोत्साहित करता है।”

महिलाओं को बीमारी आसानी से हो जाती है और उससे निपटने के लिए वे जल्द ही तैयार हो जाती हैं। यही प्रवृत्ति लंबे समय तक परिणामों को प्रभावित करती है। वहीं दूसरी ओर पुरुषों में उनका पुरुषत्व ग्रसित धारणा और जीवनशैली में परिवर्तन की मांग मधुमेह को चुनौती देती रहती है। यह संरचित व्यक्तिगत देखभाल पुरुषों पर कोई खास असर नहीं करती है।

वर्ष 1989 से 1995 के बीच डेनमार्क में मधुमेह के मूल इलाज के सामान्य परीक्षण के दौरान इलाज में हस्तक्षेप कर मरीजों (पुरुषों और महिलाओं) को संरचित व्यक्तिगत देखभाल दी गई। जिसके बाद एक नई टाइप 2 डायबिटीज (मधुमेह) सामने आया। इस हस्तक्षेप करने वाले समहू ने रोगियों में खानपान और शारीरिक गतिविधियों पर जोर देने, समय पर दवाओं का सेवन करने और प्रत्येक रोगी को अलग कार्यो के लक्ष्य दिए। इसकी हर तीन महीनों में समीक्षा की गई।

13 सालों तक हुए इस अध्ययन से सामने आया कि व्यक्तिगत देखभाल मरीजों पर सकारात्मक प्रभाव डालती है। लेकिन इससे पुरुष नहीं केवल महिलाएं ही प्रभावित होती हैं। यह अध्ययन ‘डायबेटोलॉजिया’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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लाइफ स्टाइल

साइलेंट किलर है हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी, इन लक्षणों से होती है पहचान  

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नई दिल्ली। हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी एक ऐसी समस्या है, जो धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है इसीलिए इसे एक साइलेंट किलर कहा जाता है। ये बीमारी शरीर पर कुछ संकेत देती है, जिसे अगर नजरअंदाज किया गया, तो स्थिति हाथ से निकल भी सकती है।

हालांकि, पिछले कुछ सालों में कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी है और सावधानियां भी बरती जाने लगी हैं। ऐसा नहीं है कि कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए पूरी तरह से नुकसानदायक है। अगर यह सही मात्रा में हो, तो शरीर को फंक्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चलिए जानते हैं इसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।

कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो क्या होगा?

जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dL से अधिक हो जाती है, तो इसे हाई कोलेस्ट्रॉल की श्रेणी में गिना जाता है और डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए डाइट से लेकर जीवन शैली तक में कई बदलाव करने की सलाह देते हैं। अगर लंबे समय तक खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बनी रहे, तो यह हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।

हाई कोलेस्ट्रॉल को “साइलेंट किलर” क्यों कहते हैं?

हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेंट किलर इसलिए कहते हैं क्योंकि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर इसका काफी खतरनाक असर पड़ता है, जिसकी पहचान काफी देर से होती है। इसके शुरुआती लक्षण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर जाते हैं और यहीं से यह बढ़ना शुरू हो जाते हैं। आखिर में इसकी पहचान तब होती है जब शरीर में इसके उलटे परिणाम नजर आने लगते हैं या फिर कोई डैमेज होने लगता है।

शरीर पर दिखने वाले कोलेस्ट्रॉल के लक्षणों को कैसे पहचानें?

हाई कोलेस्ट्रॉल के दौरान पैरों में कुछ महत्वपूर्ण लक्षण नजर आने लगते हैं, जिसे क्लाउडिकेशन कहते हैं। इस दौरान पैरों की मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन और थकान महसूस होता है। ऐसा अक्सर कुछ दूर चलने के बाद होता है और आराम करने के साथ ही ठीक हो जाता है।

क्लाउडिकेशन का दर्द ज्यादातर पिंडिलियों, जांघों, कूल्हे और पैरों में महसूस होता है। वहीं समय के साथ यह दर्द गंभीर होता चला जाता है। इसके अलावा पैरों का ठंडा पड़ना भी इसके लक्षणों में से एक है।

गर्मी के मौसम में जब तापमान काफी ज्यादा हो, ऐसे समय में ठंड लगना एक संकेत है कि व्यक्ति पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से जूझ रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि यह स्थिति शुरुआत में परेशान न करे, लेकिन अगर लंबे समय तक यह स्थिती बनी रहती है तो इलाज में देरी न करें और समय रहते डॉक्टर से इसकी जांच करवाएं।

हाई कोलेस्ट्रॉल के अन्य लक्षणों में से एक पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बदलाव आना भी शामिल है। इस दौरान ब्लड वेसेल्स में प्लाक जमा होने लगते हैं, जिसके कारण ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है।

ऐसे में जब शरीर के कुछ हिस्सों में कम मात्रा में खून का दौड़ा होता है, तो वहां कि त्वचा की रंगत और बनावट के अलावा शरीर के उस हिस्से का फंक्शन भी प्रभावित होता है।

इसलिए, अगर आपको अपने पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बिना कारण कोई बदलाव नजर आए, तो हाई कोलेस्ट्रॉल इसका कारण हो सकता है।

डिस्क्लेमर: उक्त लेख सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।

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