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देश में 20 लाख चिकित्सकों, 40 लाख नर्सो की कमी

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नई दिल्ली| प्रशिक्षित और कुशल मानव संसाधन एक प्रभावी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की बुनियादी जरूरत होते हैं, हालांकि भारत में प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की कमी बड़ी चुनौती बनी हुई है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में नवीन अनुसंधानों से जुड़ी संस्था ‘नेटहेल्थ’ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, भारत में इस समय तकरीबन 20 लाख चिकित्सकों और 40 लाख नर्सो की कमी है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या सीमित है और सुविधाओं का हाल भी बुरा है।

नेटहेल्थ की रिपोर्ट में कहा गया है, “देश के आठ प्रतिशत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में कोई चिकित्सक या स्वास्थ्यकर्मी ही नहीं है, जबकि 39 प्रतिशत केंद्रों में लैब तकनीशियन नदारद हैं। यहां तक कि 18 प्रतिशत प्राथमिक केंद्रों पर एक भी फार्मासिस्ट नहीं है।”

सबसे बड़ी विडंबना यह है कि लगभग 50 प्रतिशत स्वास्थ्यकर्मी औपचारिक स्वास्थ्य प्रणाली के अनुसार प्रैक्टिस नहीं करते। वहीं, योजना आयोग का कहना है कि नर्स और चिकित्सकों का अनुपात कम से कम 1 : 3 होना चाहिए, जबकि देश में इस समय यह अनुपात 1 : 16 का है।

नेटहेल्थ के महासचिव अंजन बोस ने बताया, “स्वास्थ्यकर्मियों की आपूर्ति को बढ़ाना एक प्राथमिकता है। मेडिकल की सीटों में भौगोलिक वितरण के अनुरूप आपूर्ति के लिए एक योजना विकसित करने की जरूरत है। हमें चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में निजी भागीदारी को प्रभावी बनाने वाले नियमों की जरूरत है। प्रौद्योगिकी को कम लागत में कौशल विकास में तेजी लाने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।”

उन्होंने आगे कहा, “किसी भी स्वास्थ्य प्रणाली में स्वास्थ्यकर्मी सेवाओं की प्रकृति और गुणवत्ता निर्धारित करते हैं। भारत में एमबीबीएस छात्र नौकरी पाने में असमर्थ हैं, परिणास्वरूप मजबूरीवश उन्हें एक विशेष क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करनी पड़ती है। एमबीबीएस ग्रेजुएट छात्रों के लिए विकल्पों में सुधार की जरूरत है और पीएचसी/सीएचसी या निजी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर ग्रेजुएट छात्रों के लिए एक से दो साल का सेवा अनुबंध अनिवार्य करने पर विचार करना चाहिए।”

नेटहेल्थ की रिपोर्ट कहती है कि भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में मांग को देखते हुए वर्ष 2025 तक चिकित्सकों, नर्सो और सहायक स्वास्थ्यकर्मियों के लिए 1.5 से दो करोड़ नौकरियां सृजित होने की उम्मीद है।

 

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उपमा ने धूमधाम से मनाया अपना 7वां वार्षिक अधिवेशन

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लखनऊ। माइक्रो फाइनैन्स एसोसिएशन ऑफ उत्तर प्रदेश (उपमा ) द्वारा लखनऊ के स्थानीय होटल ताज महल मे माइक्रो फाइनैन्स संस्थाओं का भव्य 7वां वार्षिक अधिवेशन आयोजित किया गया। देश के कोने कोने से पधारे वित्तीय विशेषज्ञों ने प्रदेश की अर्थ व्यस्था को बढ़ावा देने हेतु परिचर्चा में भाग लिया । अधिवेशन का मुख्य उद्देश्य था *एक ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी को बढ़ावा देने हेतु माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के योगदान पर आधारित अध्ययन रिपोर्ट जारी करना और एक सतत एवं विश्वसनीय माइक्रो फाइनेंस मॉडल विकसित करना।*

आज के अधिवेशन के मुख्य अतिथि श्री असीम अरुण माननीय राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार समाज कल्याण, उत्तर प्रदेश सरकार तथा मुख्य वक्ता के रूप में श्री दिनेश खारा पूर्व चेयरमैन स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया और माइक्रोफाइनेंस के भीष्मपितामह कहे जाने वाले श्री विजय महाजन थे ।

मुख्य अतिथि श्री असीम अरुण ने अधिवेशन का उद्घाटन किया तथा माइक्रो फाइनैन्स संस्थाओं द्वारा अर्थ व्यवस्था को बढ़ावा देने हेतु दिए जा रहे सहयोग और उनके योगदान द्वारा महिलाओं के जीवन स्तर मे हो रहे सुधार पर प्रसन्नता जताते हुए कहा कि उपमा संस्था ने एक ऐसे महत्वपूर्ण विषय पर सम्मलेन आयोजित किया है जो कि राज्य सरकार की पहली प्राथमिकता है।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री दिनेश खारा पूर्व चेयरमैन स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने उपमा के 11 वें स्थापना दिवस पर बधाई देते हुए कहा कि सम्मलेन में परिचर्चा के उपरांत एक ऐसी कार्य योजना बनेगी जो राज्य के विकास मे सहयोगी होगी तथा एक खरब डॉलर अर्थ व्यवस्था के लक्ष्य को पूर्ण करने में एक अहम् भूमिका निभायेगी।

समारोह के दूसरे मुख्य वक्ता तथा माइक्रो फाइनेंस के विशेषज्ञ श्री विजय महाजन ने बताया कि माइक्रो फाइनैन्स के जरिये समाज के कमजोर वर्ग विशेषकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने हेतु उन्हें रोज़गार परक ऋण उपलब्ध कराया जाता है
उन्होंने आगे कहा कि किस तरह से माइक्रोफाइनांस राज्य की अर्थ व्यवस्था में तथा ग्रामीण क्षेत्र मे रोजगार सृजन कर बेरोजगारी की समस्या को दूर करने मे सहयोग प्रदान कर सकता है।

उत्कर्ष बैंक के एमडी श्री गोविंद सिंह ने माइक्रो फाइनेंस द्वारा रोजगार सृजन और कमजोर वर्ग की आय में वृद्धि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उत्कर्ष स्मॉल फाइनेंस बैंक भारत का लघु वित्तीय बैंक है हमारे ऋण ग्रामीण या अविकसित इलाकों की महिलाओं या छोटे कारोबारियों के लिए होते हैं. वहां हम अपनी विभिन्न वित्तीय सेवाओं द्वारा इस वर्ग को वित्तीय समृद्धि से आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं ।

इस अवसर पर माइक्रो फाइनेंस के स्वतः नियामक संस्था साधन के प्रमुख श्री जी जी मेमन सहित इस कॉन्फ्रेंस में शैक्षिक संस्थाओं के रिसर्च स्कॉलर, अनेक वित्तीय विशेषज्ञ, माइक्रो फाइनांस कंपनी के सीईओ के साथ साथ नाबार्ड, आरबीआई तथा सिडबी के वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने अपने विचार रखे । सिड़बी के तहत नाबार्ड माइक्रो फाइनैन्स संस्थाओं को समाज के कमजोर वर्ग के लिए रोज़गार परक ऋण उपलब्ध करने मे आर्थिक मदद करता है।

उपमा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुधीर सिन्हा ने बताया कि माइक्रोफाइनेंस जिसे माइक्रो क्रेडिट भी कहा जाता है, एक प्रकार की बैंकिंग सेवा है जो कम आय वाले व्यक्तियों या समूहों को प्रदान की जाती है माइक्रो फाइनैन्स एसोसिएशन ऑफ उत्तर प्रदेश (उपमा) प्रदेश मे माइक्रो फाइनेंस के क्षेत्र में कार्यरत लगभग 30 संस्थाओं का एक संगठन है जो माइक्रो फाइनैन्स संस्थाओं को क्षमता संवर्धन प्रशिक्षण तथा पॉलिसी एडवोकेसी मे मदद करता है। संस्था प्रति वर्ष अपना वार्षिक सम्मेलन आयोजित करती है संस्था इस वर्ष अपनी स्थापना के 11 वर्ष पूरे कर रही है जब कि यह इसका 7वां अधिवेशन है।

समारोह में पांच सत्रों के दौरान विभिन्न विषयों जैसे व्यक्तिगत डाटा प्रोटेक्शन ऐक्ट के तहत माइक्रो फाइनैन्स संस्थाओं की तैयारी तथा माइक्रो फाइनैन्स एक सामाजिक उपयोगिता पर परिचर्चा हुई। परिचर्चा मे मुंबई से आए जना बैंक के सलाहकार, प्रख्यात लेखक श्री तमाल बंद्योपाध्याय, उत्कर्ष बैंक के एमडी श्री गोविंद सिंह, क्रेडिट एक्सेस के एमडी श्री उदय कुमार, वीएफएस कैपिटल के एमडी श्री कुलदीप मैती, कैशपोर के एमडी मुकुल जयसवाल, सोनाटा फाइनैन्स के एमडी श्री अनूप सिंह, सत्या माइक्रोकैपिटल के एमडी श्री विवेक तिवारी, तथा पहल फाइनैन्स की एमडी सुश्री पूर्वी भवसार ने भाग लिया। इस अवसर पर विभिन्न कंपनियों से आए हुए लगभग 250 प्रतिनिधि मौजूद रहे।

मीडिया से सम्बंधित जानकारी हेतु कृपया संपर्क करें :
प्रमिल द्विवेदी मो 9839172462

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