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हेल्थ

देहरादून में टीकाकरण अभियान पर चली मीडिया कार्यशाला

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देहरादून, (उत्तराखंड), 26 अक्टूबर (आईएएनएस)| स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने यूनिसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा टीकाकरण तकनीकी इकाई के प्रमुख विकास साझेदारों के सहयोग से गुरुवार को देहरादून में खसरा-रूबेला टीकाकरण अभियान पर पत्रकारों के साथ एक मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया।

कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के उपायुक्त डॉ. प्रदीप हल्दर ने कहा, ‘टीकाकरण बच्चों के जीवन एवं भविष्य को सुरक्षित रखने का सबसे प्रभावी और किफायती तरीका है। संपूर्ण टीकाकरण द्वारा हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि हर बच्चे को जीवन रक्षक टीकों के फायदे मिले।

डॉ. हल्दर की कार्यशाला की अध्यक्षता में हुई इस कार्यशाला में शिरकत करने वाले अन्य दिग्गजों में शामिल थे- डॉ. अर्चना श्रीवास्तव (उत्तराखंड सरकार की स्वास्थ्य निदेशक), नेशनल हेल्थ मिशन के मिशन निदेशक चंद्रेश कुमार, डॉ. भारती राणा और राज्य टीकाकरण अधिकारी, जिन्होंने राज्य में लॉन्च किए जाने वाले खसरा रूबेला अभियान का विवरण दिया। यह अभियान 13 जिलों के 28,35,658 बच्चों को कवर करेगा।

दुनिया भर में अब तक का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान 9 महीने से लेकर 15 साल की उम्र तक के तकरीबन 41 करोड़ बच्चों को कवर करेगा। अभियान के दौरान बच्चों को मीजल्स रूबेला (एमआर) टीकाकरण की एक खुराक दी जाएगी। अभियान के बाद एमआर टीका नियमित टीकाकरण का एक भाग बन जाएगा, जो खसरे यानि मीजल्स के टीके को प्रतिस्थापित कर देगा। वर्तमान में 9-12 माह तथा 16-24 माह की उम्र में बच्चों को दिया जाता है।

यूनिसेफ इंडिया की सोनिया सरकार ने कहा, पोलियो के खिलाफ लड़ाई में मीडिया हमारा पुराना साझेदार रहा है। हम एक बार फिर से आपसे सहयोग की अपेक्षा रखते हैं, ताकि हर बच्चा, चाहे वह कहीं पर भी होए उसे संपूर्ण टीकाकरण मिल सके। टीकाकरण न केवल एक बच्चे की जिंदगी बचाता है, बल्कि हमारे स्वस्थ एवं उत्पादक भविष्य को भी सुनिश्चित करता है। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप का सबसे लागत-प्रभावी तरीका है।

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लाइफ स्टाइल

साइलेंट किलर है हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी, इन लक्षणों से होती है पहचान  

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नई दिल्ली। हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी एक ऐसी समस्या है, जो धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है इसीलिए इसे एक साइलेंट किलर कहा जाता है। ये बीमारी शरीर पर कुछ संकेत देती है, जिसे अगर नजरअंदाज किया गया, तो स्थिति हाथ से निकल भी सकती है।

हालांकि, पिछले कुछ सालों में कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी है और सावधानियां भी बरती जाने लगी हैं। ऐसा नहीं है कि कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए पूरी तरह से नुकसानदायक है। अगर यह सही मात्रा में हो, तो शरीर को फंक्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चलिए जानते हैं इसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।

कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो क्या होगा?

जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dL से अधिक हो जाती है, तो इसे हाई कोलेस्ट्रॉल की श्रेणी में गिना जाता है और डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए डाइट से लेकर जीवन शैली तक में कई बदलाव करने की सलाह देते हैं। अगर लंबे समय तक खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बनी रहे, तो यह हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।

हाई कोलेस्ट्रॉल को “साइलेंट किलर” क्यों कहते हैं?

हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेंट किलर इसलिए कहते हैं क्योंकि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर इसका काफी खतरनाक असर पड़ता है, जिसकी पहचान काफी देर से होती है। इसके शुरुआती लक्षण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर जाते हैं और यहीं से यह बढ़ना शुरू हो जाते हैं। आखिर में इसकी पहचान तब होती है जब शरीर में इसके उलटे परिणाम नजर आने लगते हैं या फिर कोई डैमेज होने लगता है।

शरीर पर दिखने वाले कोलेस्ट्रॉल के लक्षणों को कैसे पहचानें?

हाई कोलेस्ट्रॉल के दौरान पैरों में कुछ महत्वपूर्ण लक्षण नजर आने लगते हैं, जिसे क्लाउडिकेशन कहते हैं। इस दौरान पैरों की मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन और थकान महसूस होता है। ऐसा अक्सर कुछ दूर चलने के बाद होता है और आराम करने के साथ ही ठीक हो जाता है।

क्लाउडिकेशन का दर्द ज्यादातर पिंडिलियों, जांघों, कूल्हे और पैरों में महसूस होता है। वहीं समय के साथ यह दर्द गंभीर होता चला जाता है। इसके अलावा पैरों का ठंडा पड़ना भी इसके लक्षणों में से एक है।

गर्मी के मौसम में जब तापमान काफी ज्यादा हो, ऐसे समय में ठंड लगना एक संकेत है कि व्यक्ति पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से जूझ रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि यह स्थिति शुरुआत में परेशान न करे, लेकिन अगर लंबे समय तक यह स्थिती बनी रहती है तो इलाज में देरी न करें और समय रहते डॉक्टर से इसकी जांच करवाएं।

हाई कोलेस्ट्रॉल के अन्य लक्षणों में से एक पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बदलाव आना भी शामिल है। इस दौरान ब्लड वेसेल्स में प्लाक जमा होने लगते हैं, जिसके कारण ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है।

ऐसे में जब शरीर के कुछ हिस्सों में कम मात्रा में खून का दौड़ा होता है, तो वहां कि त्वचा की रंगत और बनावट के अलावा शरीर के उस हिस्से का फंक्शन भी प्रभावित होता है।

इसलिए, अगर आपको अपने पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बिना कारण कोई बदलाव नजर आए, तो हाई कोलेस्ट्रॉल इसका कारण हो सकता है।

डिस्क्लेमर: उक्त लेख सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।

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