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प्रादेशिक

नि:शक्त बच्चियों की शिक्षा को समर्पित सिस्टर रोज

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राजगीर (बिहार)| बिहार के नालंदा जिले के राजगीर की तलहटी में कुछ वर्षो पूर्व तक नक्सलियों के कदमताल गूंजते थे, लेकिन आज इस इलाके में ककहरा याद कर रहे बच्चों की आवाजें गूंजती हैं। यह केरल से आई सिस्टर रोज के प्रयासों का परिणाम है।

सिस्टर रोज राजगीर के जंगल में रह कर दलितों, महादलितों और विकलांग बच्चियों की किस्मत संवार रही हैं।

राजगीर मुख्य मार्ग से करीब तीन किलोमीटर दूर घने जंगल में पहाड़ की तलहटी में वर्ष 2001 में सिस्टर रोज ने ‘चेतनालय’ नामक संस्था की नींव रखी थी। तब यह जंगल नक्सलियों का पनाहगाह था, परंतु आज यहां 150 बच्चियां शिक्षा ग्रहण कर रही हैं।

रोज इस क्षेत्र में केरल से एक पर्यटक बन कर आई थीं, परंतु यहां की वादियां उन्हें इतनी पसंद आईं कि वह यहीं की होकर रह गईं। उन्होंने लड़कियों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया और इसकी शुरुआत हसनपुर गांव से की, जहां पांच बच्चियों को उन्होंने अपने साथ रखा था। आज उनके पास 150 से भी अधिक बच्चियां शिक्षा ग्रहण कर रही हैं, जिनमें 105 बच्चियां मुसहर समाज की हैं। इन बच्चियों में 26 विकलांग भी हैं।

रोज ने आईएएनएस को बताया, “इन बच्चियों की रहने-खाने से लेकर पढ़ाई, किताब, कॉपी और कपड़े जैसी सारी आवश्यक जरूरतें पूरी की जाती हैं। विकलांग बच्चियों के लिए इलाज से लेकर कृत्रिम अंग और उपकरण तक की व्यवस्था की जाती है।”

रोज कहती हैं कि यहां पढ़ाई करने वाली 57 बच्चियां मैट्रिक पास कर चुकी हैं। यहां की पढ़ाई पूरी करने के बाद 24 विकलांग बच्चियों ने आगे की पढ़ाई जारी रखने की इच्छा व्यक्त की थी, जिनका खर्च भी सिस्टर रोज उठा रही हैं।

सिस्टर रोज ने बताया कि उन्हें सरकारी सहायता तो नहीं मिलती, परंतु लोगों से सहयोग जरूर मिलता है। लेकिन रोज के आश्रम तक जाने के लिए सड़क नहीं है। वह कहती हैं कि प्रारंभ में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। कई बार अपराधियों ने उनके संस्थान पर धावा भी बोला।

रोज जब वर्ष 2000 में इस क्षेत्र में आई थीं तो उन्होंने विकलांग और वंचित बच्चियों की परेशानी को महसूस किया और तभी से उन्होंने इन बच्चियों के लिए कुछ करने की ठानी थी। उस समय इस क्षेत्र में न सड़क थी, न बिजली। तीन-चार साल तक लालटेन की रोशनी से ही काम चला। इस दौरान उन पर जानलेवा हमला भी हुआ।

वह बताती हैं कि उनकी इच्छा कम से कम 500 बच्चियों को पढ़ाकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने की है। वह कहती हैं कि इसके लिए वह बच्च्यिों को स्वरोजगार से संबंधित प्रशिक्षण भी दिलवा रही हैं। प्रिया मांझी नामक लड़की ने यहीं से शिक्षा अर्जित की है और आज वह रोज का बच्चियों की शिक्षा में सहयोग कर रही है।

रोज ने कहा, “समाज कल्याण के लिए मैंने यह बीड़ा उठाया है। मेरी पहल से लड़कियां अपने जीवन में कामयाब बनें, यही मेरे जीवन का लक्ष्य है। इसके लिए मरते दम तक प्रयास करूंगी।”

स्थानीय लोग रोज के इस प्रयास की सराहना करते नहीं थकते। राजगीर के समाजसेवी अखिलानंद कहते हैं कि समाज में अगर कुछ लोग ऐसे हो जाएं तो समाज में व्याप्त बुराइयां मिटाई जा सकती हैं। वह कहते हैं कि आज रोज के इस प्रयास से इस क्षेत्र की बच्चियों में पढ़ाई के प्रति ललक बढ़ी है।

नेशनल

दिल्ली में सांस लेना हुआ मुश्किल, कई इलाकों में AQI 4OO पार

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नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति एक बार फिर खराब हो गई है। वायु गुणवत्ता बहुत खराब श्रेणी में पहुंच गई है। दो दिन से हल्की हवा चलने की वजह से दिल्ली में वायु की गुणवत्ता में थोड़ा सुधार देख जा रहा था, लेकिन राजधानी गैस चैंबर बन गई है। दिल्ली के कई इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 400 से भी ज्यादा दर्ज किया जा रहा है।

दिल्ली में सुबह 7:00 बजे AQI

अलीपुर- 373
आनंद विहार- 427
अशोक विहार- 402
आया नगर- 371
बवाना- 383
बुराड़ी- 385
मथुरा रोड- 356
द्वारिका- 385
आईटीओ- 358
एयरपोर्ट- 349
जहांगीरपुरी- 394
जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम- 317
लोधी रोड- 330
मंदिर मार्ग- 371
मंडका- 392
नजफगढ़- 372
नरेला- 359
नेहरू नगर- 431
मोती बाग- 352
नॉर्थ कैंपस- 377
ओखला- 364
पटपड़गंज- 384
पंजाबी बाग- 398
आर के पुरम- 380
रोहिणी- 404
शादीपुर- 370
विवेक विहार- 388
वजीरपुर- 395

 

 

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