हेल्थ
बच्चों में सांस संबंधी संक्रमण में तुरंत एंटीबायोटिक देना असरदार
न्यूयॉर्क| बच्चों में सर्दी-जुकाम के प्रारंभिक लक्षणों के सामने आते ही उन्हें एंटीबायोटिक देना लाभकारी होता है, क्योंकि इससे बच्चों की श्वसन नली के निचले हिस्से में होनेवाले गंभीर संक्रमण को काफी हद तक कम किया जा सकता है। एक नए अध्ययन में यह खुलासा हुआ। जिन बच्चों में सर्दी-जुकाम के बढ़ने पर गले में बेहद घरघराहट और सांल लेने में तकलीफ होती है, उन्हें बचाव के तौर पर कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स दवा दी जा सकती है।
वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के पीडियाट्रिक्स विभाग के प्रोफेसर लियोनाडरे बकेरियर के मुकाबिक, “ओरल कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स जैसे प्रेडनिसोन ऐसी परिस्थितियों को ठीक करने के लिए एक मानक दवा मानी जाती है।”
बकेरियर ने कहा, “कुछ अध्ययनों से साबित हुआ है कि यह उपचार बड़े बच्चों में कारगर नहीं होता है। इसलिए हमें एक ऐसे इलाज की जरूरत है, जो श्वसन नली के ऊपरी हिस्से में संक्रमण से लड़े, ताकि संक्रमण नीचे तक नहीं फैले।”
अमेरिका के नौ अकादमी चिकित्सा केंद्रों में शोधकर्ताओं ने 607 बच्चों पर प्लेसिबो के बदले एजीथ्रोमाइसिन जैसे एंटीबायोटिक का परीक्षण किया।
बच्चों की उम्र एक साल से लेकर 6 साल तक थी, जिनकी सांस नली के निचले हिस्से में संक्रमण का इतिहास रहा था। हालांकि वे स्वस्थ थे।
इस अध्ययन में प्लेसिबो दवा लेने वाले 57 बच्चों की तुलना एजिथ्रोमाइसिन लेने वाले 35 बच्चों से की गई।
इसके बाद उन्होंने 92 बच्चों की बीमारी को गंभीर पाया, क्योंकि इन्हें ओरल कॉर्टिकोस्टीरॉइड्स की जरूरत थी। प्लेसबो की तुलना में एजिथ्रोमाइसिन दवा ज्यादा असरदार साबित हुई।
इस शोध में वैज्ञानिकों ने कुछ परिवारों के साथ मिलकर उनके बच्चों में सर्दी-जुकाम के प्रारंभिक लक्षण दिखाई देने पर ही उपचार शुरू कर दिया, जिसके बाद सामने आया कि श्वसन संबंधी बीमारियों के शुरुआती चरण में एजिथ्रोमाइसिन दवा बीमारी को काफी हद तक नियंत्रित कर सकती है।
यह अध्ययन ऑनलाइन पत्रिका ‘जेएएमए’ में प्रकाशित हुआ है।
लाइफ स्टाइल
साइलेंट किलर है हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी, इन लक्षणों से होती है पहचान
नई दिल्ली। हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी एक ऐसी समस्या है, जो धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है इसीलिए इसे एक साइलेंट किलर कहा जाता है। ये बीमारी शरीर पर कुछ संकेत देती है, जिसे अगर नजरअंदाज किया गया, तो स्थिति हाथ से निकल भी सकती है।
हालांकि, पिछले कुछ सालों में कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी है और सावधानियां भी बरती जाने लगी हैं। ऐसा नहीं है कि कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए पूरी तरह से नुकसानदायक है। अगर यह सही मात्रा में हो, तो शरीर को फंक्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चलिए जानते हैं इसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।
कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो क्या होगा?
जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dL से अधिक हो जाती है, तो इसे हाई कोलेस्ट्रॉल की श्रेणी में गिना जाता है और डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए डाइट से लेकर जीवन शैली तक में कई बदलाव करने की सलाह देते हैं। अगर लंबे समय तक खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बनी रहे, तो यह हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।
हाई कोलेस्ट्रॉल को “साइलेंट किलर” क्यों कहते हैं?
हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेंट किलर इसलिए कहते हैं क्योंकि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर इसका काफी खतरनाक असर पड़ता है, जिसकी पहचान काफी देर से होती है। इसके शुरुआती लक्षण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर जाते हैं और यहीं से यह बढ़ना शुरू हो जाते हैं। आखिर में इसकी पहचान तब होती है जब शरीर में इसके उलटे परिणाम नजर आने लगते हैं या फिर कोई डैमेज होने लगता है।
शरीर पर दिखने वाले कोलेस्ट्रॉल के लक्षणों को कैसे पहचानें?
हाई कोलेस्ट्रॉल के दौरान पैरों में कुछ महत्वपूर्ण लक्षण नजर आने लगते हैं, जिसे क्लाउडिकेशन कहते हैं। इस दौरान पैरों की मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन और थकान महसूस होता है। ऐसा अक्सर कुछ दूर चलने के बाद होता है और आराम करने के साथ ही ठीक हो जाता है।
क्लाउडिकेशन का दर्द ज्यादातर पिंडिलियों, जांघों, कूल्हे और पैरों में महसूस होता है। वहीं समय के साथ यह दर्द गंभीर होता चला जाता है। इसके अलावा पैरों का ठंडा पड़ना भी इसके लक्षणों में से एक है।
गर्मी के मौसम में जब तापमान काफी ज्यादा हो, ऐसे समय में ठंड लगना एक संकेत है कि व्यक्ति पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से जूझ रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि यह स्थिति शुरुआत में परेशान न करे, लेकिन अगर लंबे समय तक यह स्थिती बनी रहती है तो इलाज में देरी न करें और समय रहते डॉक्टर से इसकी जांच करवाएं।
हाई कोलेस्ट्रॉल के अन्य लक्षणों में से एक पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बदलाव आना भी शामिल है। इस दौरान ब्लड वेसेल्स में प्लाक जमा होने लगते हैं, जिसके कारण ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है।
ऐसे में जब शरीर के कुछ हिस्सों में कम मात्रा में खून का दौड़ा होता है, तो वहां कि त्वचा की रंगत और बनावट के अलावा शरीर के उस हिस्से का फंक्शन भी प्रभावित होता है।
इसलिए, अगर आपको अपने पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बिना कारण कोई बदलाव नजर आए, तो हाई कोलेस्ट्रॉल इसका कारण हो सकता है।
डिस्क्लेमर: उक्त लेख सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।
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