हेल्थ
बदला मौसम, बढ़ रहा ब्रेनस्ट्रोक, दिल के रोगों का खतरा
कानपुर । सर्दी के मौसम में सर्दी, जुकाम, खांसी तो आम बात है, लेकिन इनके अलावा ब्रेनस्ट्रोक, डाइबिटीज, हाईब्लड प्रेशर और दमा के मरीजों के लिए सर्दी और भी बड़ी मुसीबत बन सकती है। चिकित्सकों का कहना है कि सर्दी के मौसम में विशेष सावधानी की जरूरत है। सर्दी शुरू होते ही ही शहर के अस्पतालों में ब्रेन स्ट्रोक, दमा, हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों की भीड़ लग रही है। वहीं दिल के मरीजों में 25 फीसदी इजाफा हुआ है।
चिकित्सकों की मानें तो सर्दी में स्वस्थ बने रहने के लिए विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि सर्दी में होने वाली बीमारियों के लगातार बढ़ने और पनपने का खतरा बना रहता है। ऐसे में जरूरी है सही समय पर सही इलाज। सर्दी के मौसम में शरीर को जितना ढककर चलेंगे, उतना ही आप बिमारियों से दूर रहेंगे।
सर्दी में होने वाली बीमारियां :
इस मौसम में लकवे की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि सर्दी में खून की नलियां सिकुड़ जाती हैं, जिससे खून का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है। इससे हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों में लकवे का खतरा बढ़ जाता है।
इससे बचने के लिए समय-समय ब्लड प्रेशर की जांच कराते रहना जरूरी है । दमा के मरीजों को भी विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। ठंड के चलते दमा के मरीजों में दौरे पड़ने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे मरीज अपनी दवाएं और इन्हेलर हमेशा अपने साथ रखें। ठंड के चलते धमनी सिकुड़ने से हार्ट अटैक का भी खतरा बना रहता है।
रखे विशेष ध्यान :
हृदय रोग विशेषज्ञ सर्जन डॉ. राकेश वर्मा ने बताया दिल और रक्तचाप के मरीज सुबह एकदम से ठंड में बाहर न जाएं। बिस्तर से उठने से पहले गर्म कपड़े पहनें और थोड़ा व्यायाम करते हुए उठें। सर्दी के मौसम में सिर, हाथ पैर को पूरी तरह से ढक कर चलें, ताकि सर्द हवाएं आपके शरीर के भीतर न जा सकें।
लाइफ स्टाइल
साइलेंट किलर है हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी, इन लक्षणों से होती है पहचान
नई दिल्ली। हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी एक ऐसी समस्या है, जो धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है इसीलिए इसे एक साइलेंट किलर कहा जाता है। ये बीमारी शरीर पर कुछ संकेत देती है, जिसे अगर नजरअंदाज किया गया, तो स्थिति हाथ से निकल भी सकती है।
हालांकि, पिछले कुछ सालों में कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी है और सावधानियां भी बरती जाने लगी हैं। ऐसा नहीं है कि कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए पूरी तरह से नुकसानदायक है। अगर यह सही मात्रा में हो, तो शरीर को फंक्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चलिए जानते हैं इसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।
कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो क्या होगा?
जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dL से अधिक हो जाती है, तो इसे हाई कोलेस्ट्रॉल की श्रेणी में गिना जाता है और डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए डाइट से लेकर जीवन शैली तक में कई बदलाव करने की सलाह देते हैं। अगर लंबे समय तक खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बनी रहे, तो यह हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।
हाई कोलेस्ट्रॉल को “साइलेंट किलर” क्यों कहते हैं?
हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेंट किलर इसलिए कहते हैं क्योंकि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर इसका काफी खतरनाक असर पड़ता है, जिसकी पहचान काफी देर से होती है। इसके शुरुआती लक्षण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर जाते हैं और यहीं से यह बढ़ना शुरू हो जाते हैं। आखिर में इसकी पहचान तब होती है जब शरीर में इसके उलटे परिणाम नजर आने लगते हैं या फिर कोई डैमेज होने लगता है।
शरीर पर दिखने वाले कोलेस्ट्रॉल के लक्षणों को कैसे पहचानें?
हाई कोलेस्ट्रॉल के दौरान पैरों में कुछ महत्वपूर्ण लक्षण नजर आने लगते हैं, जिसे क्लाउडिकेशन कहते हैं। इस दौरान पैरों की मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन और थकान महसूस होता है। ऐसा अक्सर कुछ दूर चलने के बाद होता है और आराम करने के साथ ही ठीक हो जाता है।
क्लाउडिकेशन का दर्द ज्यादातर पिंडिलियों, जांघों, कूल्हे और पैरों में महसूस होता है। वहीं समय के साथ यह दर्द गंभीर होता चला जाता है। इसके अलावा पैरों का ठंडा पड़ना भी इसके लक्षणों में से एक है।
गर्मी के मौसम में जब तापमान काफी ज्यादा हो, ऐसे समय में ठंड लगना एक संकेत है कि व्यक्ति पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से जूझ रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि यह स्थिति शुरुआत में परेशान न करे, लेकिन अगर लंबे समय तक यह स्थिती बनी रहती है तो इलाज में देरी न करें और समय रहते डॉक्टर से इसकी जांच करवाएं।
हाई कोलेस्ट्रॉल के अन्य लक्षणों में से एक पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बदलाव आना भी शामिल है। इस दौरान ब्लड वेसेल्स में प्लाक जमा होने लगते हैं, जिसके कारण ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है।
ऐसे में जब शरीर के कुछ हिस्सों में कम मात्रा में खून का दौड़ा होता है, तो वहां कि त्वचा की रंगत और बनावट के अलावा शरीर के उस हिस्से का फंक्शन भी प्रभावित होता है।
इसलिए, अगर आपको अपने पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बिना कारण कोई बदलाव नजर आए, तो हाई कोलेस्ट्रॉल इसका कारण हो सकता है।
डिस्क्लेमर: उक्त लेख सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।
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