प्रादेशिक
बिहार में शराब कारोबारियों ने बदला व्यापार, मिल रहा मान-सम्मान
पटना । बिहार के लोगों ने शराबबंदी के समर्थन में शनिवार को राज्य के 11 हजार किलोमीटर से ज्यादा लंबी बनी मानव श्रृंखला बनाकर भले ही इतिहास रच दिया हुआ हो, मगर शराबबंदी का सबसे ज्यादा लाभ (सामजिक तौर पर) इस धंधे से जुड़े लोगों को हुआ है। शराब जैसे कथित तौर पर गलत धंधे से जुड़े होने के कारण जो लोग कल तक अपने रिश्तेदरों से भी अपने व्यवसाय के विषय में नहीं बता पाते थे, आज वे शान से अपने व्यवसाय के विषय में बता पाते हैं। यह दीगर बात है कि कुछ दिन इन कारोबरियों को नई राह तलाशने में जरूर परेशानियों का सामना करना पड़ा।
राज्य में अप्रैल, 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद इस धंधे में लगे कारोबारियों के जीवन में बड़ा बदलाव आया है। कारोबारी अब इस धंधे को छोड़ कर दूसरे कारोबार में जुट गए हैं।
बिहार की राजधानी पटना में जहां नौ महीने पहले शराब की दुकानें नजर आती थी वहां अब शराब की दुकान नहीं बल्कि जूते, आइसक्रीम पार्लर, दवा दुकान और होटल नजर आते हैं। पटना के आर ब्लॉक चौराहा पर सजने वाली शराब की दुकान की जगह अब लोग आइसक्रीम का मजा ले रहे हैं। यहां की शराब की दुकान में आइसक्रीम पार्लर खुल गया है। यहां लोग आकर आसइसक्रीम और कोल्ड ड्रिंक का मजा ले रहे हैं, तो चिरैयाटांड़ चौराहे के पास की शराब दुकान में अब दवा दुकान, मीठापुर बस स्टैंड के एक नंबर मोड के पास शराब की दुकान में होटल तथा बोरिंग रोड चौराहे के पास अब शराब बोतल की जगह कोल्ड ड्रिंक की बोतलें बेची जा रही हैं।
राज्य के भागलपुर जिले में शराब की दुकान से पहचान स्थापित कर चुके अरुण साहा शराबबंदी के बाद सुधा दूध, जूस, पतंजलि के उत्पाद और दवा की दुकान चला रहे हैं। साहा इस बात को लेकर खुश हैं कि उनकी छवि सुधर गई है। वे कहते हैं, “पहले लोग शराब दुकान के कारण दागी समझते थे, गलत नजर से देखते थे। यह बत मुझे तथा परिवारवालों को भी अच्छी नहीं लगती थी। वैसे उसमें कुछ गलत नहीं था।”
इधर, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में भी शराब के धंधे से जुड़े कारोबारियों ने अपना व्यवसाय बदलकर खुश हैं। जिले में देसी-विदेशी शराब की 219 दुकानें थी। इन दुकानों में से कई में अब भी ताले लगे हैं, तो कुछ दुकानों में मोटर बाइंडिंग, तो कुछ में टाइल्स की दुकानें खुल गई हैं।
राज्य के गोपालगंज में शराब के बड़े व्यापारी पुरुषोत्तम सिंह आज हार्डवेयर के बड़े दुकानदार बन गए हैं। वे कहते हैं कि शराब के व्यापार में आमदनी तो थी परंतु परिवार के लोग खफा रहते थे। आज स्थिति बदल गई है।
वैसे बिहार में शराबबंदी के पूर्व सरकार ने शराब की जगह दूध की दुकान खुलवाने की बात कही थी। इसके तहत राज्य सरकार ने शराब कारोबारियों को वैकल्पिक व्यवस्था के तहत दूध के व्यापार से जोड़ने की पहल भी की, मगर शराब बेचने वालों को दूध बेचने का धंधा नहीं भाया।
आंकड़ों के मुताबिक, शराबबंदी के बाद करीब 5,500 दुकानदारों में से करीब 50 दुकानदारों ने ही शराब की जगह दूध बेचने को राजी हुए।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में शराबबंदी लागू करने के प्रारंभ में कहा था कि शराब बंदी के बाद लोग बेरोजगार होंगे। ज्यादातर शराब की दुकानें मुख्य स्थानों पर हैं, ऐसे में यहां डेयरी केंद्र खोला जाएगा तथा शराब की दुकान चलाने वाले लोगों को रोजगार प्रदान करेगा।
सरकारी स्तर पर दूध का व्यवसाय करने वाली एजेंसी बिहार स्टेट मिल्क कोऑपरेटिव फेडरेशन (कन्फेड) के एक अधिकारी ने बताया कि ज्यादातर पटना के शराब बेचने वाले ही दूध बेचने को आगे आए। पांच अप्रैल को सरकार ने राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी थी। उस समय शराबबंदी के बाद खाली हुए शराब के दुकानों में सुधा दूध व अन्य दूध पर आधारित वस्तु बेचने का लाइसेंस देने का ऑफर दिया गया था।
कन्फेड के अनुसार, राज्य में करीब 50 शराब विक्रेताओं ने पूर्व की शराब दुकानों में दूध बेचने के लिए लाइसेंस लिया है। वैसे, कई शराब दुकानदारों ने कॉम्फेड से दूध बेचने के लाइसेंस के लिए संपर्क किया है।
उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग के अनुसार, पटना के शहरी क्षेत्र में 162 शराब तथा पटना जिला में 424 शराब की दुकानें थी। राज्य के सभी शहरी क्षेत्र में कुल 770 शराब की दुकान संचालित थे, जबकि राज्यभर में देशी और विदेशी शराब दुकानों की कुल संख्या 5467 थी।
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