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बिजनेस

‘बीमा क्षेत्र में एफडीआई नियम अधिक आसान हो सकते हैं’

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चेन्नई| केंद्र सरकार ने बीमा मध्यस्थों के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा बढ़ाने को लेकर अपनी सीमा से बाहर जाकर कदम उठाए हैं। उद्योग विशेषज्ञों ने ऐसा अनुमान जाहिर किया है। केंद्र सरकार द्वारा शुक्रवार को बीमा क्षेत्र में एफडीआई से संबंधित नियमों की अधिसूचना जारी किए जाने का स्वागत करते हुए अधिकारियों ने कहा कि उन्हें लगता है कि मंजूरी प्रक्रियाएं अधिक आसान हो सकती थी।

अधिसूचित नियमों के मुताबिक, बीमा क्षेत्र में 26 प्रतिशत तक एफडीआई के लिए किसी तरह की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी, जबकि इससे अधिक या 49 फीसदी तक की एफडीआई के लिए विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) से मंजूरी आवश्यक होगी।

नियमानुसार, बीमा कंपनियों पर 49 प्रतिशत की एफडीआई सीमा बीमा ब्रोकरों, थर्ड पार्टी प्रशासकों, सर्वेक्षणकर्ताओं, घाटा निर्धारकों जैसे मध्यस्थों पर भी लागू होगी।

उच्चतम न्यायालय के वकील और बीमा/कंपनी/निष्पत्ति कानूनों के विशेषज्ञ डी. वरदराजन ने मधस्यथों के लिए एफडीआई सीमा बढ़ाने का उल्लेख करते हुए आईएएनएस को बताया, “ऐसा लगता है कि सरकार ने बीमा अधिनियम की धारा 114 के तहत संशोधित बीमा अध्यादेश 2014 के रूप में नियमों का उल्लंघन किया है।”

उन्होंने कहा, “मेरे विचार में इस तरह का एक उदाहरण है जिसमें सरकार की अति नजरअंदाज के लायक है।”

उद्योग जगत के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया, “हमें पूंजी बढ़ाने के लिए पहले ही बीमा नियामक से मंजूरी लेनी होती है और अब सरकार ने एफआईपीबी मंजूरी के रूप में नौकरशाही की एक और प्रक्रिया जोड़ दी है।”

अधिसूचना के मुताबिक, किसी भारतीय बीमा कंपनी में विदेशी निवेश में बढ़ोतरी विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के तहत भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित किए गए मूल्य निर्धारण दिशानिर्देशों के अनुसार होगी।

वरदराजन के मुताबिक, नियमों के तहत 49 प्रतिशत विदेशी निवेश का निर्धारण एक जटिल प्रस्ताव है।

बैंकों को बीमा मध्यस्थों के रूप में कार्य करने की मंजूरी दिए जाने के बावजूद उन पर बैंकिंग क्षेत्र में लागू विदेशी शेयर निवेश सीमा ही लागू रहेगी। किसी भी वित्तीय वर्ष में ऐसी इकाइयों के प्राथमिक कारोबार से अर्जित आमदनी उनकी कुल आमदनी के 50 प्रतिशत से अधिक रहना जरूरी है।

इन नियमों के मुताबिक, भारतीय बीमा कंपनियों के भारतीय नियंत्रण से मतलब भारत में रह रहे भारतीय नागरिकों या भारतीय कंपनियों के नियंत्रण से है, जिनका स्वामित्व और नियंत्रण भारत में रह रहे नागरिकों के हाथों में हो।

बिजनेस

जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई

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नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।

बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।

बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।

ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।

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