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हेल्थ

ब्रेन स्ट्रोक जागरूकता के लिए वाकथॉन

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नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)| लगातार बढ़ रही ब्रेन स्ट्रोक की समस्या के प्रति जागरूकता फैलाने के लिाए मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल पटपड़गंज व वैशाली ने रविवार को ‘ब्रेन स्ट्रोक वाकथॉन’ का आयोजन किया जिसमें करीब 500 लोगों ने भागीदारी की।

इसमें स्ट्रोक रोगी, डॉक्टर, अस्पताल स्टाफ और आरडब्ल्यूए के पदाधिकारी शामिल हुए। डॉक्टरों ने रोगियों, पटपड़गंज व वैशाली के निवासियों के साथ इंटरेक्टिव सत्र का आयोजन किया और बेहतर जीवनशैली के विकल्पों के बारे में जानकारी दी साथ ही साथ इस समस्या को कैसे कम कर सकते हैं, इसके बारे में लोगों को सुझाव भी दिए।

मैक्स स्पेशियलिटी हॉस्पिटल पटपड़गंज और वैशाली के सीनियर डायरेक्टर डॉ संजय कुमार सक्सेना ने कहा, ब्रेन स्ट्रोक की समस्या तब पैदा होती है जब आपके मस्तिष्क में रक्त प्रवाह सही रूप से नहीं होता। ज्यादातर लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है की स्ट्रोक आने पर 3 से 4.5 घंटों के भीतर ही डॉक्टर से सलाह ले लेनी चाहिए, किसी भी प्रकार की देरी के कारण मस्तिष्क संबंधी विकलांगता की संभावना ज्यादा तेजी से बढ़ती जाती है, सही समय पर स्ट्रोक को दवा के जरिए कम किया जा सकता है।

इंडियन कौंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के अनुसार भारत में ब्रेन स्ट्रोक मौत का दूसरा सबसे प्रमुख कारण है, देश में हर तीसरे सेकंड किसी को ब्रेन स्ट्रोक होता है और तीन मिनट में किसी की मृत्यु भी इसके कारण होती है। जन्म के समय जीवन की उम्मीद का बढ़ना, तेजी से बढ़ता शहरीकरण, जीवनशैली में बदलाव, बढ़ते तनाव का स्तर ब्रेन स्ट्रोक की सम्भावनाएं बढ़ाने के प्रमुख कारण हैं ।

स्ट्रोक की पहचान :

1 – चेहरे, बांह या पैर मे कमजोरी एवं सुन्न होना, झुका हुआ चेहरा, बोलने मे लड़खड़ाना, लकवा मारना इत्यादि, अक्सर ये सब शरीर में एक तरफ होता है

2 -समझने और बोलने में दिक्कत आना

3- एक या दोनों आँखों से कम दिखाई देना, उनका घूमना कम होना या पूर्णयता दृष्टिबाधित होना

4- चलने-फिरने में परेशानी, चक्कर आना और दोनों पैरों का आड़ा -तिरछा पड़ना

5- बहुत तेज सर में दर्द होना

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लाइफ स्टाइल

साइलेंट किलर है हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी, इन लक्षणों से होती है पहचान  

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नई दिल्ली। हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी एक ऐसी समस्या है, जो धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है इसीलिए इसे एक साइलेंट किलर कहा जाता है। ये बीमारी शरीर पर कुछ संकेत देती है, जिसे अगर नजरअंदाज किया गया, तो स्थिति हाथ से निकल भी सकती है।

हालांकि, पिछले कुछ सालों में कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी है और सावधानियां भी बरती जाने लगी हैं। ऐसा नहीं है कि कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए पूरी तरह से नुकसानदायक है। अगर यह सही मात्रा में हो, तो शरीर को फंक्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चलिए जानते हैं इसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।

कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो क्या होगा?

जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dL से अधिक हो जाती है, तो इसे हाई कोलेस्ट्रॉल की श्रेणी में गिना जाता है और डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए डाइट से लेकर जीवन शैली तक में कई बदलाव करने की सलाह देते हैं। अगर लंबे समय तक खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बनी रहे, तो यह हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।

हाई कोलेस्ट्रॉल को “साइलेंट किलर” क्यों कहते हैं?

हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेंट किलर इसलिए कहते हैं क्योंकि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर इसका काफी खतरनाक असर पड़ता है, जिसकी पहचान काफी देर से होती है। इसके शुरुआती लक्षण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर जाते हैं और यहीं से यह बढ़ना शुरू हो जाते हैं। आखिर में इसकी पहचान तब होती है जब शरीर में इसके उलटे परिणाम नजर आने लगते हैं या फिर कोई डैमेज होने लगता है।

शरीर पर दिखने वाले कोलेस्ट्रॉल के लक्षणों को कैसे पहचानें?

हाई कोलेस्ट्रॉल के दौरान पैरों में कुछ महत्वपूर्ण लक्षण नजर आने लगते हैं, जिसे क्लाउडिकेशन कहते हैं। इस दौरान पैरों की मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन और थकान महसूस होता है। ऐसा अक्सर कुछ दूर चलने के बाद होता है और आराम करने के साथ ही ठीक हो जाता है।

क्लाउडिकेशन का दर्द ज्यादातर पिंडिलियों, जांघों, कूल्हे और पैरों में महसूस होता है। वहीं समय के साथ यह दर्द गंभीर होता चला जाता है। इसके अलावा पैरों का ठंडा पड़ना भी इसके लक्षणों में से एक है।

गर्मी के मौसम में जब तापमान काफी ज्यादा हो, ऐसे समय में ठंड लगना एक संकेत है कि व्यक्ति पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से जूझ रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि यह स्थिति शुरुआत में परेशान न करे, लेकिन अगर लंबे समय तक यह स्थिती बनी रहती है तो इलाज में देरी न करें और समय रहते डॉक्टर से इसकी जांच करवाएं।

हाई कोलेस्ट्रॉल के अन्य लक्षणों में से एक पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बदलाव आना भी शामिल है। इस दौरान ब्लड वेसेल्स में प्लाक जमा होने लगते हैं, जिसके कारण ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है।

ऐसे में जब शरीर के कुछ हिस्सों में कम मात्रा में खून का दौड़ा होता है, तो वहां कि त्वचा की रंगत और बनावट के अलावा शरीर के उस हिस्से का फंक्शन भी प्रभावित होता है।

इसलिए, अगर आपको अपने पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बिना कारण कोई बदलाव नजर आए, तो हाई कोलेस्ट्रॉल इसका कारण हो सकता है।

डिस्क्लेमर: उक्त लेख सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।

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