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प्रादेशिक

भदोही में मिले बुद्ध कालीन अवशेष

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भदोही। उत्तर प्रदेश के भदोही एवं मिर्जापुर जिले की सीमा में स्थित अगियाबीर के प्राचीन टीले की खुदाई के दौरान उत्तर कृष्ण कालीन परिमार्जित व मृदभांड कालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एंव पुरातत्व विभाग के शोध छात्रों के दल की ओर से यह खुदाई की जा रही है।

विभाग के निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह ने बताया कि यह स्थल मिर्जापुर-भदोही की सीमा में पड़ता है। खुदाई के दौरान यहां गौतम बुद्धकालीन 600 ईसा पूर्व के सभ्यता के अवशेष मिले हैं। मिट्टी के चमकीले प्राचीन वर्तन, मनिया और हड्डी के औजार शामिल हैं। यह वस्तुएं विकसित नगरीय सभ्यता से संबंधित श्रमिकों की खास बस्ती से हैं। अभी यह खुदाई जारी रहेगी।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पुरात्व विभाग के निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह ने बताया कि यह अवशेष भदोही के द्वारिकापुर के कुछ दूरी पर मिले कुषाण कालीन सभ्यता के अवशेष से कुछ दूरी पर हैं, लेकिन यह स्थान मिर्जापुर जिले में पड़ता है।

सिंह ने बताया कि यह टीला बेहद प्राचीन है। खुदाई में मृदा के चमकीले वर्तन जिसमें थाली, कटोरा, हड्डी के औजार और मनिया मिली है। यह सभ्यता आज से तकरीबन 2500 साल पहले विकसित हुई थी। इसे गौतम बुद्ध काल भी कहते हैं। जबकि पुरातत्व की तकनीकी भाषा में इसे एनबीपी काल के नाम से जाना जाता है। खुदाई में कुशल कर्मकारों यानी श्रमिकों की बस्ती होने के प्रमाण मिले हैं।

इस तरह के अवशेष नगरीय सभ्यताओं के विकास में ही मिलते हैं। वाराणसी के राजघाट के सरायमोहना में भी खुदाई के दौरान इस प्रकार की वस्तुएं मिली थीं। यह तकरीबन 600 ईसा पूर्व की एक खास नगरीय सभ्यता की पहचान है। यह बस्ती कुलीन सभ्यता से आस-पास विकसित होती हैं।

इन रिहायशी प्राचीन बस्तियों में कुशल श्रमिक और शिल्पकार रहते हैं। सिंह ने बताया कि वस्तुओं के निर्माण की तकनीक उस दौरान में आज से कहीं अधिक उन्नतशील और विकासित थी, क्योंकि वर्तनों के उपयोग में जिस मिट्टी का उपयोग किया गया है। उनकी चमक आज भी कायम है।

यह शोध का विषय है कि आज से 2500 साल पूर्व मिट्टी में वह कौन सा रसायन प्रयोग की किया जाता था, जिसकी चमक और जीवनकाल आज भी जस का तस है। इन वर्तनों को डिलक्स वेयर कहा जाता है। आधुनिक काल में जिस प्रकार बोन चाइना की चमक होती है उससे भी कई गुना अधिक इनकी चमक है। खुदाई में मिली मिट्टी की थालियां, कटोरे आज भी गोल्डेन कलर की चमक बिखेर रहे हैं। प्राचीन सभ्यताओं के नगर आम तौर पर नदी सभ्यता के आसपास विकसित होते थे। जहां से व्यापार और विकास के साथ आवागमन की सुविधा उपलब्ध होती थी। यह स्थान भी गंगा के करीब है। मृद पात्रों को नष्ट नहीं किया जाता था।

इसका उपयोग तत्कालीन सभ्यता और समाज के कुलीन परिवारों की तरफ से किया जाता था। आम लोग इस तरह के मृद पात्रों का उपयोग नहीं करते थे, क्योंकि उनकी बनावट और निर्माण पर अधिक खर्च आता था। इसका उपयोग तत्कालीन नगरीय सभ्यता में आम आदमी नहीं कर सकता था।

डॉ. सिंह ने बताया कि अभी यह खुदाई जारी रहेगी। पुरातत्व विभाग के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है।

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हेयर ड्रायर चालू करते ही ब्लास्ट, महिला का दोनों हाथ बुरी तरह घायल

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बागलकोट। कर्नाटक के बागलकोट जिले से एक हैरान करने वाली घटना सामने आई है, जहां एक हेयर ड्रायर के धमाके में एक महिला के हाथों की हथेलियां और उंगलियां बुरी तरह से घायल हो गईं। यह हादसा इल्कल शहर में हुआ, जहां मृतक सैनिक की पत्नी ने अपने पड़ोसी का कूरियर पार्सल लिया था। जब महिला ने हेयर ड्रायर को चालू किया, तो वह धमाके से फट गया और महिला की दोनों हाथों की गंभीर चोटें आईं। महिला को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टरों को मजबूरी में उसके हाथ काटने पड़े।

हेयर ड्रायर में धमका, महिला की उड़ी उंगलियां

बता दें कि इस घटना के बाद महिला को इलाज के लिए स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया है। घटना 15 नवंबर की है, जिसकी जानकारी बुधवार को सामने आई। पुलिस सूत्रों ने कहा कि घायल महिला की पहचान 37 वर्षीय बसवराजेश्वरी यरनाल के रूप में हुई है, जो पूर्व सैन्यकर्मी पापन्ना यरनाल की पत्नी थी। जिनकी 2017 में जम्मू और कश्मीर में मौत हो गई थी। जांच अधिकारियों के मुताबिक, विस्फोट बिजली के शॉर्ट सर्किट के कारण हुआ था। हेयर ड्रायर जैसे उपकरणों का उपयोग करने के लिए 2 वॉट के विद्युत कनेक्शन की आवश्यकता होती है। जिस स्विच में हेयर ड्रायर को डाला गया, तो उसकी क्षमता इतनी अधिक नहीं थी, जिसके कारण यह दुर्घटना हुई। विस्फोट की आवाज सुनकर कुछ पड़ोसी दौड़े और उन्होंने बसवराजेश्वरी की हथेलियां और उंगलियां कटी हुई पाईं। उन्हें तुरंत पास के एक निजी अस्पताल में ले जाया गया। हालांकि शशिकला ने दावा किया कि उन्होंने ऑनलाइन कोई उत्पाद नहीं मंगवाया था

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