आध्यात्म
भयावह समय में साहित्य पर चर्चा
नई दिल्ली, 13 अगस्त (आईएएनएस)| प्रसिद्ध कवि लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने जब कहा कि इस ‘भयावह समय में साहित्य पर चर्चा अत्यंत सुखद है और ऐसे समय में साहित्य की उपयोगिता और बढ़ जाती है’, तब एक बारगी लगा कि अरे, कवि यह क्या कह गए!
ठीक उसी तरह, जैसे उपराष्ट्रपति पद से विदाई के समय हामिद अंसारी के कहे शब्दों पर हाय-तौबा मचा और सत्तापक्ष से जुड़े बड़े नेताओं को कहते सुना गया, ‘अरे, जाते-जाते यह क्या बोल गए अंसारी!’
कवि वाजपेयी ने राष्ट्रीय राजधानी में शनिवार की शाम साहित्य की तीन उत्कृष्ट कृतियों के रचनाकारों को कुसुमांजलि साहित्य सम्मान से अलंकृत किए जाने के मौके पर ‘भयावह समय’ का जिक्र करते हुए सिर्फ इतना कहा, आजकल टीवी के सामने पांच मिनट बैठ जाइए, यह समय कितना भयावह होता जा रहा है, यह पता चल जाएगा।
उन्होंने सम्मानित उपन्यास ‘मिठो पानी खारो पानी’ की लेखिका जया जादवानी के सम्मान में प्रशस्तिपत्र पढ़ते हुए कहा कि जया का यह उपन्यास कथाशिल्प का नया प्रतिमान है। इसे पढ़ते हुए लगता है, जैसे सिंधु नदी के किनारे खड़े हों और इतिहास के पांच हजार साल पुराने पन्ने आंखों के सामने फड़फड़ा रहे हों।
वहीं जया जादवानी ने कहा, लेखन अपने भीतर चुभी हुई कीलें निकालने जैसा है। इस उपन्यास में खो रही संस्कृति और खो रही मनुष्यता की दास्तान है।..खुद को ढूंढ़ना बहुत कठिन है, मैंने इसके जरिए खुद को ढूंढ़ने का प्रयास किया है।
दूसरी सम्मानित कृति ‘काल कथा’ (पंजाबी) के शिल्पी मनमोहन सिंह बावा के लिए प्रशस्तिपत्र पढ़ते हुए साहित्य अकादेमी पुरस्कार विजेता सुरजीत पातर ने कहा कि प्रसिद्ध चित्रकार मनजीत बावा के बड़े भाई मनमोहन ने अपनी कहानियों में खामोशियों को गाया है।
मनमोहन ने कहा, मैं दुनिया खूब घूमा, चित्रकारी भी करता रहा और बीच-बीच में कुछ लिख लिया करता था। जिंदगी में कामयाबी मेरा मकसद कभी नहीं रहा। इत्तेफाक से मेरी आवारागर्दी को ही कामयाबी मान ली गई है।
तीसरी सम्मानित कृति ‘अंतहीन’ (पंजाबी कथा-संग्रह) के लेखक किरपाल कजाक ने कहा, आज सम्मानित होकर लगा, आसमान की सैर करने वालों ने जमीन से जुड़े एक शख्स के सिर पर हाथ फेर दिया हो। ऐसा होने से जिंदगी में विश्वास लौट आता है। मेरे लिए यह ज्ञानपीठ पुरस्कार से बड़ा है, क्योंकि इसमें चयन में पारदर्शिता और निष्पक्षता झलकती है। हमें अपना काम करते रहना चहिए, कहीं बैठे ईमानदार लोग मेहनतकशों को जरूर देख रहे होते हैं।.. आप सबका ही तो नूर है, वरना इस अंधेरे में मुझे कौन पहचानता?
तीनों साहित्यकार कर्नाटक एवं केरल के पूर्व राज्यपाल टी.एन. चतुर्वेदी के हाथों सम्मानित हुए। सम्मान स्वरूप उन्हें प्रशस्तिपत्र, नकद 2,50,000 रुपये और स्मृति-चिह्न प्रदान किए गए।
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में कुसुमांजलि फाउंडेशन की ओर से आयोजित समारोह में टी.एन. चतुर्वेदी का परिचय देते हुए साहित्य अकादेमी के पूर्व सचिव इंद्रनाथ चौधुरी ने कहा कि बहुत कम लोग जानते हैं कि अपने जीवन का लंबा समय प्रशासक के रूप में गुजारने वाले चतुर्वेदी का किताबों से इतना प्रेम है कि उनके घर में एक समृद्ध पुस्तकालय है और वह आज भी कोई अच्छी किताब देखते हैं, तो खरीद लेते हैं।
कुसुमांजलि फाउंडेशन की संस्थापक व प्रसिद्ध लेखिका कुसुम अंसल ने कहा कि पंजाबी में दो कृतियों को सम्मान इसलिए दिया गया, क्योंकि निर्णायक असमंजस में पड़ गए। दोनों श्रेष्ठ कृतियां हैं, दोनों में कोई उन्नीस-बीस नहीं है।
उन्होंने कहा, कुसुमांजलि फाउंडेशन हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की दो सर्वश्रेष्ठ कृतियों को हर साल सम्मानित करता है। आज यह परंपरा छठे साल निभाई गई है। यह पूछे जान पर कि क्या मैथिली भाषा की श्रेष्ठ कृतियां भी यह सम्मान पाने की हकदार हैं? उन्होंने कहा, हां, क्यों नहीं। प्रविष्टियां भेजी जाएं।
व्रत एवं त्यौहार
CHHATH POOJA 2024 : जानें कब से शुरू होगी छठी मैया की पूजा, जानिए इसे क्यों मनाते हैं
मुंबई। त्रेतायुग में माता सीता और द्वापर युग में द्रौपदी ने भी रखा था छठ का व्रत रामायण की कहानी के अनुसार जब रावण का वध करके राम जी देवी सीता और लक्ष्मण जी के साथ अयोध्या वापस लौटे थे, तो माता सीता ने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को व्रत रखकर कुल की सुख-शांति के लिए षष्ठी देवी और सूर्यदेव की आराधना की थी।
छठ पूजा क्यों मनाते है ?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा अर्चना और अर्घ्य देने से सुख-शांति, समृद्धि, संतान सुख और आरोग्य की प्राप्ति होती है। छठ पूजा को डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। यह चार दिनों तक चलने वाला त्योहार है, जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। छठ पर्व के दौरान प्रकृति के विभिन्न तत्वों जैसे जल, सूर्य, चंद्रमा आदि की पूजा की जाती है. यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है और हमें प्रकृति के संरक्षण का महत्व सिखाता है. छठ का व्रत बहुत कठिन होता है. व्रतधारी 36 घंटे तक बिना पानी पिए रहते हैं. साथ ही छठ पर्व सभी वर्गों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाता है. इस पर्व के दौरान लोग मिलकर पूजा करते हैं, भोजन करते हैं और एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं. इससे सामाजिक एकता और भाईचारा बढ़ता है.
छठ पर्व के 4 दिन
छठ पूजा का पहला दिन, 5 नवंबर 2024- नहाय खाय.
छठ पूजा का दूसरा दिन, 6 नवंबर 2024- खरना.
छठ पूजा का तीसरा दिन, 7 नवंबर 2024-डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य.
छठ पूजा का चौथा दिन, 8 नवंबर 2024- उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण
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