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खेल-कूद

भाई और मीना ने हार की हताशा से उबारा : दिव्या काकरान

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नई दिल्ली, 2 अप्रैल (आईएएनएस)| हरियाणा के भिवानी में बीते दिनों आयोजित भारत केसरी दंगल में दिग्गज महिला पहलवान गीता फोगाट को मात देकर सनसनी फैलाने वाली 19 साल की दिव्या काकरान अपनी सफलता का श्रेय अपने भाई और अपनी दोस्त मीना को देती हैं।

दिव्या का कहना है कि इन दोनों के कारण ही आज वह इस ऊंचाई तक पहुंचने में सफल रही हैं और इन दोनों का बलिदान का उनके करियर बड़ा रोल रहा है।

दिव्या बुधवार से आस्ट्रेलिया के गोल्डकोस्ट में शुरू हो रहे राष्ट्रमंडल खेलों में 68 किलोग्राम भारवर्ग में पदक की बड़ी दावेदार मानी जा रही हैं। दिव्या का कहना है कि इस साल एशियाई चैम्पियनशिप में हार के बाद वह काफी हताश हो गई थीं और राष्ट्रमंडल खेलों में पदक की उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन उसी दौरान भाई देव सेन काकरान और दोस्त मीना ने उनमें आत्मविश्वास जगाया और अब वह अपना शतप्रतिशत देने के लिए तैयार हैं।

दिव्या ने आईएएनएस से फोन पर बातचीत में कहा, एशियाई चैम्पियनशिप में हार के बाद मेरा मनोबल काफी गिर गया था क्योंकि मैंने काफी मेहनत की थी। मुझे लग रहा था कि मेरा पदक तो आएगा ही। कुछ कमी रह गई थी इसलिए शायद हार गई थी। मैंने रोने लगी थी। मैं सोच रही थीं कि जब यहां पदक नहीं आया तो राष्ट्रमंडल खेलों में क्या आएगा।

दिव्या उस दौरान अपने भाई और मीना के योगदान को याद करते हुए कहती हैं, मेरी दोस्त है मीना। उसने मेरा काफी साथ दिया है। उसे मैं कभी नहीं भूल सकती। वो शिविर में मेरे साथ ही रहती है। मैंने हार के बाद उससे कहा कि मैं कुछ भी नहीं कर सकती। तो उसने कहा कि भगवान आपकी परीक्षा ले रहे हैं। आपके अंदर घमंड आ गया था कि मैं ये भी कर सकती हूं वो भी कर सकती हूं पदक तो जीत ही सकती हूं, इसलिए जो होता है अच्छे के लिए होता है। अगर आप हारती नहीं तो आपको आपकी गलती पता नहीं चलता। उसने दिन-रात मुझे समझाया तभी मैं आत्मविश्वास हासिल कर पाई।

दिव्या ने आगे कहा, मेरा भाई भी मुझे अभ्यास कराता है। इन दोनों के बलिदान के कारण ही मैं यहां तक पहुंच पाई हूं। मैं तकनीक पर ध्यान नहीं दे रही थी तो मेरा भाई मुझे बता रहा था। उसने जापानी खिलाड़ियों की कुश्ती निकालीं। उनके अभ्यास सत्र के वीडियो निकाले लेकिन तब मैंने नहीं किया मैं सोचती थी इनसे क्या होगा। लेकिन जब मैंने उनकी बात मानी तो मुझे इसका फायदा हुआ।

मीना राष्ट्रीय शिविर में दिव्या के साथ ही रहती हैं तो उनका भाई लखनऊ में साई सेंटर के बाहर एक कमरा किराए पर लेकर रहता है। समय मिलने पर अपनी बहन को अभ्यास कराने आता है। दिव्या को अभी भी लगता है कि उनके खेल में कमियां है, जिन्हें उनके भाई और मीना जानती हैं।

बकौल दिव्या, मुझे अभी भी लगता है कि मेरे खेल में अभी भी काफी कमियां हैं जो मुझे नहीं पता। इन दोनों को पता हैं। अपने आप को भाग्यशाली मानती हूं कि ये निस्वार्थ भाव से मेरे साथ काम कर रहे हैं। ये मुझे आगे बढ़ते देखना चाहते हैं। मेरे अंदर कभी घमंड भी आ जाता है तो यह दोनों मुझे सचेत कर देते हैं।

अपने भाई और दोस्त से मिली प्रेरणा के बाद दिव्या आने वाले खेलों में अच्छे प्रदर्शन के लिए आश्वास्त हैं।

दिव्या, तैयारी तो मैंने काफी दिनों से की है। जब राष्ट्रमंडल खेलों के लिए क्वालीफिकेशन के लिए भी मैंने तैयारी अच्छे से की थी। मैं यह सोच कर घबरा नहीं रही हूं कि इतना बड़ा मंच है तो क्यो होगा। मैंने मेहनत पूरी की। मैं किसी को निराश नहीं होने दूंगी और मैंने पूरी मेहनत की है।

अपने भाई के योगदान पर दिव्या कहती हैं, भाई ने मेरे लिए अपनी पढ़ाई और पहलवानी भी छोड़ दी। 12 बजे के बाद लड़कों का स्कूल होता था, उसके मास्टर बोलते थे कि 1 बजे आना है लेकिन वो बोलता था कि मुझे अपनी बहन को अभ्यास कराना है। उसने स्कूल जाना यह कहकर छोड़ दिया कि मुझे अपनी बहन को कुछ बनाना है।

दिव्या ने पिछले महीने ही गीता को मात दी। इस बड़ी जीत के बाद दबाव के बारे में दिव्या कहती हैं, यह दबाव कुछ भी नहीं है। मैं जब भारत केसरी दंगल में लड़ने जा रही थी तब पता चला था कि गीता दीदी आ रही हैं। वहां मैं एक-दो घंटों तक सोचती रही की वो हर ही देंगी मुझे। तब मेरे पापा ने कहा था कि खुल के लड़ना है।

उन्होंने कहा, मैं भगवान पर भी काफी विश्वास करती हूं। उस समय मैंने भगवान का नाम लिया और मेरे पापा ने कहा कि उसका नाम है तेरा नाम नहीं है। परिणाम चाहे कुछ भी हो खुलकर लड़ना। राष्ट्रमंडल खेलों में भी मैं खुल के लड़ूंगी परिणाम चाहे कुछ भी हो। मेरे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं हैं पाने के लिए काफी कुछ है।

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खेल-कूद

IND VS AUS: पर्थ में टूटा ऑस्ट्रेलिया का घमंड, भारत ने 295 रनों से दी मात

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पर्थ। भारतीय क्रिकेट टीम ने बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के पहले टेस्ट मैच में मेजबान ऑस्ट्रेलिया को धूल चटाते हुए नया कीर्तिमान रच दिया है। टीम इंडिया ने पर्थ में 16 साल बाद पहला टेस्ट मैच जीता है। इससे पहले भारत ने साल 2008 में कुंबले की कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया को हराया था। हालांकि यह मैच पर्थ के ऑप्टस स्टेडियम में खेला गया। पहली पारी में 150 रन बनाने वाली टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया को पहली पारी में सिर्फ 104 रनों पर ढेर कर दिया था। इसके बाद टीम इंडिया ने अपनी दूसरी पारी 487/6 रन के स्कोर पर घोषित करते हुए ऑस्ट्रेलिया के सामने 534 रनों का विशाल लक्ष्य रखा।

इस पहाड़ जैसे लक्ष्य का पीछा करते हुए ऑस्ट्रेलिया की टीम दूसरी पारी में सिर्फ 238 रनों के स्कोर पर ढेर हो गई। इस तरह टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया को उसी के घर में 295 रनों से हराकर बड़ा इतिहास रच दिया। ध्यान देने वाली बात यह है कि टीम इंडिया में न तो रोहित शर्मा थे, न ही शुभमन गिल, न ही रवींद्र जडेजा और रविचंद्रन अश्विन और न ही मोहम्मद शमी थे। इसके बावजूद टीम इंडिया ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की।

पर्थ टेस्ट की दूसरी पारी में यशस्वी जायसवाल ने 161 रन और विराट कोहली ने नाबाद शतकीय पारी खेली। दूसरी पारी में केेल राहुल ने भी 77 रनों की अहम पारी खेली। पहली पारी में टीम इंडिया 150 रनों पर सिमट गई थी पर भारतीय गेंदबाजों ने कमाल का कमबैक करते हुए पूरी ऑस्ट्रेलिया टीम को घुटनों पर ला दिया। ऑस्ट्रेलिया पहली पारी में 104 रन ही बना पाई। दूसरी पारी में टीम इंडिया ने कमाल का कमबैक करते हुए ऑस्ट्रेलिया के सामने 6 विकेट के नुकसान पर 487 रन बनाकर पारी घोषित कर दी। जिससे ऑस्ट्रेलिया को 534 रनो का टारगेट मिला। लेकिन चौथे दिन भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 295 रनों से हरा दिया।

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