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बिजनेस

भारतीय स्टेट बैंक वित्तीय समावेशन के लिए बचनबद्ध

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वाशिंगटन | विश्व बैंक समूह और भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) सहित साझेदारों के एक व्यापक गठबंधन ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने और 2020 तक सार्वभौमिक वित्तीय पहुंच हासिल करने में मदद के लिए बचनबद्धता दोहराई है। विश्व बैंक मुख्यालय में शुक्रवार को यहां आयोजित एक कार्यक्रम में नीतियों और नियामक ढाचों के जरिए सार्वभौमिक वित्तीय पहुंच बढ़ाने हेतु निजी क्षेत्र के निवेश और नए उत्पादों को प्रेरित करना चर्चा का मुख्य केंद्र रहा। इस कार्यक्रम में निजी क्षेत्र के दिग्गजों, सरकारी नियामकों और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की-मून भी शामिल हुए।

2020 का लक्ष्य हासिल करने हेतु खातों में लेनदेन या धनराशि जमा करने, भेजने या प्राप्त करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल करने के लिए दुनियाभर के वयस्कों का आह्वान किया गया, ताकि प्रत्येक व्यक्ति के वित्तीय जीवन को प्रबंधित किया जा सके। व्यापक वित्तीय समावेशन की दिशा में लेनदेन के लिए खाता पहला कदम है, जिससे गरीब परिवारों को गरीबी से निकलने और पानी, बिजली, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य देखरेख जैसी जरूरी सामाजिक सेवाओं तक पहुंच बनाने में मदद मिलेगी। छोटे और मझोले उद्यमों के लिए वित्त तक पहुंच से उन्हें जोखिम कम करने और अपने कारोबार का विकास-विस्तार करने में मदद मिल सकती है। विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष जिम योंग किम के मुताबिक, “2011 से 2014 के बीच 70 करोड़ से अधिक लोगों ने वित्तीय सुलभता हासिल की है, जिससे पता चलता है कि 2020 तक सार्वभौमिक वित्तीय सुलभता हासिल करने का हमारा उद्देश्य प्राप्त करने योग्य है।”

इस आयोजन में शामिल पैनल सदस्य एसबीआई की अध्यक्ष अरुं धति भट्टाचार्य ने कहा, “एसबीआई ने अपनी स्थापना से ही देश में वित्तीय समावेश के एजेंडे का विस्तार करने में अहम भूमिका निभाई है।” उन्होंने कहा, “अपने वित्तीय समावेशन योजना (2010-13) के शुरुआती तीन सालों के दौरान एसबीआई ने 20,531 गांवों में 2.02 करोड़ नए खाते खोले। दूसरे वित्तीय समावेशन योजना (2013-16) के तहत हमने 85,130 गांवों तक पहुंच बनाई और 7.0 करोड़ खाते खोले।” भट्टाचार्य ने कहा, “हम अपने 7.0 करोड़ ग्राहकों में व्यापक अवसर देखते हैं। इन सभी ग्राहकों को पेंशन और बीमा उत्पाद बेचे जा सकते हैं।”

सार्वभौमिक वित्तीय सुलभता की दिशा में विश्व बैंक समूह के प्रयासों के साथ मास्टरकार्ड की प्रतिबद्धता की घोषणा करते हुए मास्टरकार्ड के भारतीय अमेरिकी सीईओ और अध्यक्ष अजय बंगा ने कहा, “हमारा लक्ष्य 50 करोड़ लोगों तक पहुंच बनाना है, जिसे मौजूदा समय में वित्तीय सुलभता की मुख्यधारा से बाहर माना जा रहा है।”

नेशनल

ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप को मनमानी करने पर 103 के बदले देने पड़ेंगे 35,453 रु, जानें क्या है पूरा मामला

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हैदराबाद। ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप स्विगी को ग्राहक के साथ मनमानी करना भारी पड़ गया। कंपनी की इस मनमानी पर एक कोर्ट ने स्विगी पर तगड़ा जुर्माना ठोक दिया। हैदराबाद के निवासी एम्माडी सुरेश बाबू की शिकायत पर उपभोक्ता आयोग ने बड़ा फैसला सुनाया है। बाबू ने आरोप लगाया था कि स्विगी ने उनके स्विगी वन मेंबरशिप के लाभों का उल्लंघन किया और डिलीवरी Food Delivery की दूरी को जानबूझकर बढ़ाकर उनसे अतिरिक्त शुल्क वसूला

क्या है पूरा मामला ?

सुरेश बाबू ने 1 नवंबर, 2023 को स्विगी से खाना ऑर्डर किया था। सुरेश के लोकेशन और रेस्टॉरेंट की दूरी 9.7 किमी थी, जिसे स्विगी ने बढ़ाकर 14 किमी कर दिया था। दूरी में बढ़ोतरी की वजह से सुरेश को स्विगी का मेंबरशिप होने के बावजूद 103 रुपये का डिलीवरी चार्ज देना पड़ा। सुरेश ने आयोग में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि स्विगी वन मेंबरशिप के तहत कंपनी 10 किमी तक की रेंज में फ्री डिलीवरी करने का वादा किया था।कोर्ट ने बाबू द्वारा दिए गए गूगल मैप के स्क्रीनशॉट्स और बाकी सबूतों की समीक्षा की और पाया कि दूरी में काफी बढ़ोतरी की गई है।

कोर्ट ने स्विगी को अनुचित व्यापार व्यवहार का दोषी पाया और कंपनी को आदेश दिया कि वे सुरेश बाबू को 9 प्रतिशत ब्याज के साथ 350.48 रुपये के खाने का रिफंड, डिलीवरी के 103 रुपये, मानसिक परेशानी और असुविधा के लिए 5000 रुपये, मुकदमे की लागत के लिए 5000 रुपए समेत कुल 35,453 रुपये का भुगतान करे।

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