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भावांतर सरीखी योजना से किसानों का गम होगा कम!

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नई दिल्ली, 10 जुलाई (आईएएनएस)| देशभर में किसानों को उनकी फसलों का उचित व लाभकारी मूल्य तभी मिलना संभव होगा, जब सारी फसलों की खरीद लागत के मुकाबले ज्यादा भाव पर सुनिश्चित हो। कृषि आधारित उद्योग का सुझाव है कि भवांतर सरीखी कोई पूर्ण पारदर्शी योजना अगर देशभर में लागू हो तो उससे किसानों का गम निस्संदेह कम होगा।

किसानों की आमदनी वर्ष 2022 तक दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में प्रयासरत केंद्र सरकार ने बीते सप्ताह किसानों को उनकी फसलों की लागत पर 50 फीसदी प्रतिफल के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रदान करने की घोषणा की। मगर कारोबारी इस घोषणा को किसानों के गम कम करने के लिए नाकाफी मानते हैं। उनका कहना है सरकार को मध्यप्रदेश में पिछले साल लागू हुए भावांतर जैसी योजना को देशभर में लागू करने पर विचार करना चाहिए।

केंद्र सरकार द्वारा 14 खरीफ फसलों के एमएसपी में वृद्धि के बाद दो तरह की प्रतिक्रियाएं आई हैं। खुद को किसान हितैषी बताने वाले विपक्षी राजनीतिक दलों ने सरकार पर किसानों से किए वादे पूरे नहीं करने का आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार ने किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार, ए2 प्लस एफएल और सी-2 के फामूर्ले पर एमएसपी नहीं दिया। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सत्तापक्ष के नेताओं ने एमएसपी में बढ़ोतरी को ऐतिहासिक बताया। जाहिर है, दोनों को आगामी चुनावों में किसानों के वोट हासिल करने के लिए राजनीति करनी है, इसलिए ऐसे बयान दे रहे हैं।

किसानों को एमएसपी कैसे मिले, इस पर बात हो तो इन्हें जरूर किसान हितैषी समझा जाएगा। इन प्रतिक्रियाओं के इतर कारोबार जगत का सुझाव है कि भावांतर सरीखी योजना से किसानों को फायदा होगा।

सोयाबीन प्रोसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के अध्यक्ष डॉ.दावीश जैन ने आईएएनएस से कहा कि किसानों को जब तक उनकी फसलों का लाभकारी दाम नहीं मिलेगा, तब तक तिलहनों की खेती में उनकी दिलचस्पी नहीं होगी। उन्होंने कहा, भावांतर योजना में किसानों को उनकी फसलों का एमएसपी दिलाना आसान है, क्योंकि सरकार बाजार मूल्य और एमएसपी की अंतर राशि सीधे किसानों के खाते में जमा करवाती है। अगर देशभर में यह योजना लागू हो तो यह किसानों के लिए लाभकारी साबित होगी।

जैन ने कहा कि इस तरह की योजना कुछ देशों में सफल साबित हुई है और मध्यप्रदेश में भी इसकी बानगी देखी गई है।

एक सोयाबीन कारोबारी ने बताया कि भावांतर योजना के तहत करीब 70 फीसदी सोयाबीन मध्यप्रदेश में बिक जाने के कारण बाद में कीमतों में जोरदारी तेजी आई और एमएसपी से कहीं ऊंचे भाव पर सोयाबीन बिका।

हालांकि मध्यप्रदेश के ही कुछ जींस कारोबारियों ने बताया कि भावांतर में कुछ ऐसी भी त्रुटियां देखी गईं कि जिन्होंने सोयाबीन या उड़द की खेती भी नहीं की थी, उन्होंने भी भावांतर का लाभ लिया। कुछ लोगों ने एक ही फसल को दोबारा बेचकर इसका लाभ उठाया।

ऑल इंडिया दाल मिल एसोएिशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल कहते हैं कि सरकार को एक ऐसी पूर्ण पारदर्शी भावांतर योजना देशभर में लागू करनी चाहिए, जिसमें भ्रष्टाचार की गुंजाइश बिल्कुल नहीं हो।

अग्रवाल ने एएनएस से बातचीत में कहा, सरकार के पास सारी फसलों की खरीद के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में अगर सरकार सभी किसानों को सारी फसलों का एमएसपी का लाभ दिलाना चाहती है तो फिर भावांतर जैसी योजना लानी होगी।

साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी.वी. मेहता ने आईएएनएस से कहा कि सरकार ने एमएसपी बढ़ाकर अच्छा काम किया है और उद्योग जगत इस कदम की सराहना करता है, मगर इससे भारत के तेल और खली के निर्यात पर असर होगा, जिसके लिए सकार को फिर निर्यात प्रोत्साहन देना होगा। ऐसे में सरकार अगर बाजार मूल्य और एमएसपी का अंतर किसानों को खुद दे देती है तो यह एक अच्छा उपाय हो सकता है।

उन्होंने कहा, एमएसपी पर सरकार फसल खरीदती है और बाजार में कम कीमतों पर बेचती है। इसके अलावा रखरखाव पर भी खर्च होता है। कम से कम सरकार को यह घाटा तो नहीं सहना पड़ेगा।

इसी प्रकार कपड़ा उद्योग का भी सुझाव है कि भावांतर जैसी योजना लागू होने से किसानों को फायदा भी मिलेगा और उद्योग को भी कोई नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा।

कान्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री के अध्यक्ष संजय कुमार जैन ने पिछले दिनों आईएएनएस से बातचीत में कहा कि कपास के एमएसपी में भारी वृद्धि से अगले साल कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया पर कपास की खरीदारी का दबाव बढ़ सकता है। इसलिए सरकार को मध्यप्रदेश की भावांतर जैसी योजना लागू करने पर विचार करना चाहिए।

वर्धमान टेस्टाइल्स के निदेशक (क्रय) इंद्रजीत धूरिया ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि चीन में पिछले कुछ साल से किसानों को दिया जाने वाला अनुदान सीधे उनके खातों में जाता है और यह मॉडल सफल है, इसलिए सरकार को चीन के मॉडल पर विचार करना चाहिए।

इधर कृषि लागत मूल्य आयोग यानी सीएसीपी ने भी सरकार को भावांतर सरीखी योजना पर विचार करने का सुझाव दिया है।

भावांतर योजना अगर देशभर में लागू होती है तो इसके दो फायदे हैं : 1. सभी अधिसूचित फसलों का एमएसपी किसानों को मिलना सुनिश्चित होगा

2. सरकार पर किसी फसल की कीमत में गिरावट की स्थिति में सरकारी खरीद चालू कर अतिरिक्त बोझ बढ़ाने की नौबत नहीं आएगी।

मगर, इसके पूर्ण पारदर्शी और कारगर नियमों की दरकार है जिससे योजना में किसी प्रकार का भ्रष्टाचार नहीं हो।

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नेशनल

क्या रद्द होगी राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता ?

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नई दिल्ली। राहुल गांधी के पास ब्रिटेन की भी नागरिकता है और इसलिए उनकी भारतीय नागरिकता रद्द कर दी जानी चाहिए.’ एस विग्नेश शिशिर ने यह दावा करते हुए एक जनहित याचिका दायर की है, जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को फैसला करने का निर्देश दिया. इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘याचिकाकर्ता की तरफ से कुछ दस्तावेज गृह मंत्रालय को मिले हैं और वह इस पर विचार कर रहा है कि राहुल गांधी की नागरिकता रद्द की जानी चाहिए या नहीं.’

जस्टिस एआर मसूदी और सुभाष विद्यार्थी की डिविजन बेंच ने अपर सॉलिसिटर जनरल एसबी पांडेय को निर्देश दिया कि वो तीन हफ्ते के अंदर इस बारे में गृह मंत्रालय से निर्देश प्राप्त करें और अगली तारीख पर इसका जवाब पेश करें. इस मामले की सुनवाई अब 19 दिसबंर को रखी गई है.

मामले की पूरी जानकारी

राहुल गांधी की नागरिकता से जुड़ा विवाद तब शुरू हुआ जब लखनऊ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि राहुल गांधी के पास ब्रिटिश नागरिकता है। याचिकाकर्ता एस विग्नेश शिशिर ने दावा किया कि उन्होंने गहन जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि राहुल गांधी के पास यूके की नागरिकता है। शिशिर ने यह भी कहा कि उनके पास कुछ गोपनीय जानकारी है, जिससे यह साबित होता है कि राहुल गांधी का विदेशी नागरिकता प्राप्त करना कानून के तहत भारतीय नागरिकता को रद्द करने का कारण हो सकता है।

पहले इस मामले में शिशिर की याचिका को जुलाई 2024 में खारिज कर दिया गया था, लेकिन इसके बाद शिशिर ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास शिकायत की थी, जिसमें कोई एक्शन नहीं लिया गया। फिर से इस मामले को अदालत में लाया गया और अब गृह मंत्रालय से राहुल गांधी की नागरिकता पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।

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