बिजनेस
मुद्रा बैंक : चीन से आगे निकलने की कोशिश
भारत दुनिया के उन सबसे युवा देशों में से है, जहां 25 वर्ष से कम उम्र के लोगों की कुल आबादी 54 प्रतिशत से अधिक है। हमारे युवाओं को 21वीं शताब्दी की नौकरियों के लिए शिक्षित और नौकरियों के लायक बनना चाहिए। हमारे यहां काम करने लायक पांच प्रतिशत से भी कम लोगों को औपचारिक कौशल प्रशिक्षण मिलता है। देश की आबादी का करीब 70 प्रतिशत हिस्सा गांवों में रहता है, जिसके कारण नौकरी करने लायक इन युवाओं की संख्या बढ़ रही है।
वर्ष 2022 में देश आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर अमृत महोत्सव मनाएगा। राज्यों के नेतृत्व और केंद्र सरकार के निर्देशन में टीम इंडिया के बारे में प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता में अन्य उद्देश्यों के अलावा युवाओं को शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण देना शामिल है ताकि उन्हें रोजगार मिल सके। इस उद्देश्य से स्किल इंडिया और मेक इन इंडिया कार्यक्रम शुरू किए गए हैं और हमें भी देश में उद्यमिता की भावना को प्रोत्साहित करना चाहिए और नए उद्यम शुरू करने के लिए सहयोग करने चाहिए।
हालांकि कॉरपोरेट और व्यावसायिक संस्थाओं की भी भूमिका है, अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा इसकी सराहना की जानी चाहिए। देश में कुल मिलाकर 5.77 करोड़ लघु व्यावसायिक इकाइयां हैं, जिनमें से अधिकतर एकल स्वामित्व वाली हैं जो लघु निर्माण, ट्रेडिंग या सेवा व्यवसाय चलाती हैं। इनमें से 62 प्रतिशत का स्वामित्व अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/ओबीसी के पास है। निचले स्तर के कठोर परिश्रम करने वाले उद्यमियों की ऋण तक औपचारिक पहुंच कठिन हो गई है। इस दिशा में हाल के बजट में एक प्रमुख पहल की घोषणा की गई जिसका नाम मुद्रा बैंक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को इस बैंक का विधिवत शुभारंभ किया।
माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट रिफाईनेंस एजेंसी (मुद्रा) बैंक की घोषणा 2015 के बजट में की गई है, जिसके लिए 20,000 करोड़ रुपये का कोष निर्धारित किया गया है। इसमें 3,000 करोड़ रुपये की ऋण गारंटी राशि की घोषणा की गई है। मुद्रा बैंक प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के जरिए सूक्ष्म वित्त संस्थानों का पुनर्वित्तीयन करेगा। कर्ज देते समय अनुसूचित जाति/जनजाति उद्यमों को प्राथमिकता दी जाएगी। इन उपायों से युवाओं, शिक्षित अथवा कौशल प्राप्त श्रमिकों का आत्मविश्वास बढ़ेगा जो पहली पीढ़ी के उद्यमी बनने की आकांक्षा रखते हैं, साथ ही इसमें वर्तमान लघु उद्यमी भी शामिल हैं जो अपनी गतिविधियों का विस्तार कर सकेंगे। यह बैंक निर्माण, ट्रेडिंग और सेवा गतिविधियों में लगे सूक्ष्म/लघु व्यावसायिक संस्थाओं को ऋण देने के कार्य में लगे सभी सूक्ष्म वित्तीय संस्थानों के नियमन और पुनर्वित्तीयन के लिए जिम्मेदार होगा। इस बैंक के जरिए दलितों और आदिवासी उद्यमियों को प्राथमिकता दी जाएगी।
सरकार के मुद्रा बैंक प्रस्ताव से इन संस्थाओं के लिए समान नियामक और आचरण संहिता स्थापित हो सकेगी, जिससे सभी कर्जदाताओं को जिम्मेदार कर्ज सिद्धान्त अपनाने होंगे और बदले में कर्जदारों के फायदा उठाने के मुद्दों से बचा जा सकेगा। यह गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों-सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं और इस क्षेत्र से जुड़े अन्य उद्यमियों को आर्थिक मदद और नकदी का प्रमुख स्रोत हो सकता है। 3000 करोड़ रुपये का ऋण गारंटी कोष सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र को बढ़ावा दे सकता है। एमएसएमई क्षेत्र ने मुद्रा बैंक की स्थापना की सराहना की है। एमएसएमई क्षेत्र के प्रतिनिधियों का मानना है कि यदि इसे सही तरीके से लागू किया गया तो एनडीए सरकार की पहल से दोहरे अंकों में विकास दर हासिल करने में मदद मिलेगी और हम चीन से भी आगे निकल जाएंगे।
नेशनल
ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप को मनमानी करने पर 103 के बदले देने पड़ेंगे 35,453 रु, जानें क्या है पूरा मामला
हैदराबाद। ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप स्विगी को ग्राहक के साथ मनमानी करना भारी पड़ गया। कंपनी की इस मनमानी पर एक कोर्ट ने स्विगी पर तगड़ा जुर्माना ठोक दिया। हैदराबाद के निवासी एम्माडी सुरेश बाबू की शिकायत पर उपभोक्ता आयोग ने बड़ा फैसला सुनाया है। बाबू ने आरोप लगाया था कि स्विगी ने उनके स्विगी वन मेंबरशिप के लाभों का उल्लंघन किया और डिलीवरी Food Delivery की दूरी को जानबूझकर बढ़ाकर उनसे अतिरिक्त शुल्क वसूला
क्या है पूरा मामला ?
सुरेश बाबू ने 1 नवंबर, 2023 को स्विगी से खाना ऑर्डर किया था। सुरेश के लोकेशन और रेस्टॉरेंट की दूरी 9.7 किमी थी, जिसे स्विगी ने बढ़ाकर 14 किमी कर दिया था। दूरी में बढ़ोतरी की वजह से सुरेश को स्विगी का मेंबरशिप होने के बावजूद 103 रुपये का डिलीवरी चार्ज देना पड़ा। सुरेश ने आयोग में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि स्विगी वन मेंबरशिप के तहत कंपनी 10 किमी तक की रेंज में फ्री डिलीवरी करने का वादा किया था।कोर्ट ने बाबू द्वारा दिए गए गूगल मैप के स्क्रीनशॉट्स और बाकी सबूतों की समीक्षा की और पाया कि दूरी में काफी बढ़ोतरी की गई है।
कोर्ट ने स्विगी को अनुचित व्यापार व्यवहार का दोषी पाया और कंपनी को आदेश दिया कि वे सुरेश बाबू को 9 प्रतिशत ब्याज के साथ 350.48 रुपये के खाने का रिफंड, डिलीवरी के 103 रुपये, मानसिक परेशानी और असुविधा के लिए 5000 रुपये, मुकदमे की लागत के लिए 5000 रुपए समेत कुल 35,453 रुपये का भुगतान करे।
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