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आध्यात्म

यहां शिवलिंग पर बेलपत्र नहीं, झाड़ू चढ़ाते हैं श्रद्धालु

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शिवलिंग, झाड़ू, सादातबाड़ी शिव मंदिर, बहजोई

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संभल। अभी तक आपने शिवलिंग पर सिर्फ दूध, बेलपत्र, धतूरा आदि  ही चढ़ते हुए देखा होगा। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि एक मंदिर ऐसा भी है, जहां शिवलिंग पर झाड़ू चढ़ाया जाता हैं।

संभल जिले के बहजोई में एक ऐसा शिव मंदिर है, जहां भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्त शिवलिंग पर झाडू चढ़ाते हैं। कहा जाता है कि यहां शिवलिंग पर झाडू चढ़ाने से त्वचा से संबंधित रोग दूर हो जाते हैं।

शिव मंदिर के पुजारी बाबू गिरी बताते हैं कि यहां शिवलिंग आदि काल से है। साथ ही उनका दावा है कि शिवलिंग पर झाडू चढ़ाने से शरीर से संबंधित हर तरह के रोग दूर हो जाते हैं।

बताया जाता हैं कि सदियों पहले व्यापारी भिखारीदास चर्म रोग से पीड़ित था। एक बार व्यापारी किसी वैध से अपना इलाज करवाने के लिए जा रहा था।

तभी रास्ते में उन्हें प्यास लगी तो वह पास दिख रहे एक आश्रम में पानी पीने के लिए चला गया। जाते-जाते भिखारीदास आश्रम में रखे एक झाड़ू से टकरा गया। कहते हैं उस झाड़ू के स्पर्श मात्र से ही उनकी त्वचा रोग ठीक हो गई।

उन्होंने आश्रम में रहने वाले संत को हीरे जवाहरात देने की इच्छा प्रकट की। मगर संत ने इसे नकारते हुये कहा कि यदि वह इस स्थान पर मंदिर का निमार्ण करा दे तो अच्छा होगा।

व्यापारी ने संत के कहे अनुसार आश्रम के निकट शिव मंदिर बनवाया, जो सादातबाड़ी शिव मंदिर  के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

इस तरह सादातबाड़ी शिव मंदिर के प्रति लोगों के मन में इस बात का विश्वास बन गया कि यहां झाड़ू चढ़ाने से त्वचा रोग ठीक हो जाते हैं और यह मान्यता इसी तरह सदियों से चली आ रही है।

आपको बता दें कि सादातबाड़ी शिव मंदिर पर जिले के श्रद्धालु ही नहीं बल्कि दूसरे जिलों और मंडलों से  भी श्रद्धालु आकर  झाडू चढ़ाते हैं।

आलम यह है कि झाडूओं से मंदिर शिवलिंग पूरी तरह ढ़क जाती है। जिसे मंदिर पुजारी लगातार हटाते
रहते हैं।

शिव भक्त बीपी सिह राघव ने बताया कि यूं तो आम दिनों में भी शिव भक्त मंदिर पहुंचकर झाडू चढ़ाते हैं, मगर श्रावण माह में झाडू चढ़ाने वालों की संख्या सैकड़ों में पहुंच जाती है।

शिव भक्त बुद्वसेन ने बताया कि शिव भक्त सर्फि झाडू ही नहीं चढ़ाते हैं। वह घंटों मंदिर पर सेवा भी
करते हैं।

 

व्रत एवं त्यौहार

CHHATH POOJA 2024 : जानें कब से शुरू होगी छठी मैया की पूजा, जानिए इसे क्यों मनाते हैं

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मुंबई। त्रेतायुग में माता सीता और द्वापर युग में द्रौपदी ने भी रखा था छठ का व्रत रामायण की कहानी के अनुसार जब रावण का वध करके राम जी देवी सीता और लक्ष्मण जी के साथ अयोध्या वापस लौटे थे, तो माता सीता ने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को व्रत रखकर कुल की सुख-शांति के लिए षष्ठी देवी और सूर्यदेव की आराधना की थी।

छठ पूजा क्यों मनाते है ?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा अर्चना और अर्घ्य देने से सुख-शांति, समृद्धि, संतान सुख और आरोग्य की प्राप्ति होती है। छठ पूजा को डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। यह चार दिनों तक चलने वाला त्योहार है, जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। छठ पर्व के दौरान प्रकृति के विभिन्न तत्वों जैसे जल, सूर्य, चंद्रमा आदि की पूजा की जाती है. यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है और हमें प्रकृति के संरक्षण का महत्व सिखाता है. छठ का व्रत बहुत कठिन होता है. व्रतधारी 36 घंटे तक बिना पानी पिए रहते हैं. साथ ही छठ पर्व सभी वर्गों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाता है. इस पर्व के दौरान लोग मिलकर पूजा करते हैं, भोजन करते हैं और एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं. इससे सामाजिक एकता और भाईचारा बढ़ता है.

छठ पर्व के 4 दिन

छठ पूजा का पहला दिन, 5 नवंबर 2024- नहाय खाय.
छठ पूजा का दूसरा दिन, 6 नवंबर 2024- खरना.
छठ पूजा का तीसरा दिन, 7 नवंबर 2024-डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य.
छठ पूजा का चौथा दिन, 8 नवंबर 2024- उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण

 

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