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यह तो बेशर्मी की हद है
नेशनल हेराल्ड केस में कांग्रेसियों ने बेहयाई और बेशर्मी की हद कर दी। एक अदालती मामले को राजनैतिक रंग देने की सोनिया और राहुल गांधी की कवायद ने देश की जनता के सामने कांग्रेस का असली चेहरा उजागर कर दिया है। एक ऐसे मामले में जो अदालत में अंडर ट्रायल है उसके लिए संसद को बाधित करना यह दर्शाता है कि कांग्रेस का विकास से कुछ लेना देना नहीं है। तरस आता है कांग्रेस के नेताओं पर जो बिना होमवर्क किए सिर्फ गांधी-नेहरू परिवार के पीछे चाटुकारिता की इंतेहा करते हुए दिखते हैं।
हकीकत यह है कि नैशनल हेराल्ड की करोड़ों की संपत्ति को हड़पने की साजिश वर्षों से चल रही है। 2010 में जब तत्कालीन जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी ने मामले को लेकर अदालत में वाद दायर किया था उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और स्वामी का भाजपा से कुछ लेना देना नहीं था। अब जब दिल्ली हाईकोर्ट ने सोनिया और राहुल गांधी को अदालत में पेश होने के निर्देश दिए तब कांग्रेसियों द्वारा मुद्दे को राजनैतिक रंग देने की कोशिश करना और संसद को बाधित करना समझ से परे है।
कांग्रेस ने भाजपा पर राजनैतिक बदला लेने का आरोप लगाया है जो भी समझ में नहीं आ रहा है, इस आरोप से यह भी मतलब निकलता है कि भारत की अदालतें राजनैतिक सत्ताओं से प्रभावित होती हैं, यह एक बड़ा आरोप है और भारत को बदनाम करने की एक और साजिश। भारत की निष्पक्ष और स्वतंत्र अदालतें दुनिया भर में अपना एक विशिष्ट स्थान रखतीं हैं, ऐसे में अदालती कार्यवाही को राजनैतिक बदला लेने की साजिश बताना अदालतों का अपमान है।
इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि मैं इंदिरा गांधी की बहू हूं किसी से डरती नहीं। तो सोनिया जी को शायद यह मालूम नहीं कि 1975 में जब रायबरेली से इंदिरा गांधी के चुनाव को चुनौती दी गई थी तो उन्होंने भी प्रधानमंत्री रहते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में हाजिरी लगाई थी। यह भारत के इतिहास में पहली बार हुआ था। आपातकाल के बाद जब 1977 में जनता सरकार आई थी उसके बाद तमाम केसों में इंदिरा गांधी ने अदालतों के चक्कर काटे थे। सोनिया और राहुल को कम से कम अपने पूर्वजों की इस पंरपरा का खयाल तो करना ही चाहिए।
वैसे कांग्रेस द्वारा इस तरह की हरकत करना उनके सत्ता से बाहर होने पर होने वाली बौखलाहट की पराकाष्ठा है। हकीकत तो यह है कि 12 साल तक गुजरात दंगों पर नरेंद्र मोदी को विभिन्न अदालतों द्वारा क्लीन चिट दिए जाने के बावजूद आरोप लगाने वाले कांग्रेसी अपने राजनैतिक विरोधियों के साथ यही करते आए हैं इसलिए उन्हें लगता है उनके साथ भी यही हो रहा है लेकिन देश की जनता सबकुछ देख रही है। सोशल मीडिया के इस जमाने में कुछ भी न तो छिपा रह सकता है और न ही अब जनता कुछ भूलेगी। कांग्रेस को जनता की अदालत में भी मुंह की खानी पड़ेगी।
प्रादेशिक
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले नए डीजीपी की नियुक्ति
महाराष्ट्र। महाराष्ट्र के नए डीजीपी का कार्यभार IPS संजय वर्मा को सौंपा गया है। आईपीएस संजय वर्मा को केंद्रीय चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के नए पुलिस महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया है। कुछ ही दिनों में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव है। उससे पहले चुनाव आयोग ने राज्य कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले की शिकायत मिलने के बाद डीजीपी रश्मि शुक्ला के तबादले का आदेश दिया था।
कौन हैं IPS संजय वर्मा?
IPS संजय वर्मा 1990 बैच के पुलिस अधिकारी हैं। वह महाराष्ट्र में वर्तमान में कानून और तकनीकी के डीजी के रूप में कार्यरत रहे। वह अप्रैल 2028 में सेवानिवृत्त पुलिस सेवा से रिटायर होंगे। दरअसल, डीजीपी रश्मि शुक्ला को लेकर सियासी दलों के बीच पिछले कुछ समय से माहौल गर्म था। कांग्रेस के बाद उद्धव गुट की शिवसेना ने भी चुनाव आयोग को पत्र लिखकर उन्हें हटाने की मांग की थी। कांग्रेस ने रश्मि शुक्ला की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से उन्हें महानिदेशक पद से हटाने की मांग की थी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने उन पर आरोप लगाया था कि वह बीजेपी के आदेश पर सरकार के लिए काम कर रही हैं।
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