मुख्य समाचार
राष्ट्र कर रहा मांग, महान क्रांतिकारी से जुड़े सच से उठे पर्दा
देश के सबसे बड़े क्रांतिकारी नेताओं में से एक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की परिजनों की जासूसी की बात सामने आने के बाद सियासी गलियारों में भूचाल आ गया है। ये जासूसी कोई थोड़े समय नहीं हुई बल्कि 1948 से 1968 तक करीब दो दशक तक जारी रही। इस दौरान जवाहरलाल नेहरू 16 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे। जासूसों ने नेताजी के कोलकाता स्थित एल्गिन रोड और वुडबर्न पार्क के दो घरों की लंबे समय तक निगरानी की। यही नहीं बोस के परिवार की ओर से लिखे गए खतों की गोपनीयता को भी भंग किया गया।
इस खुलासे ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। साफ है कि पूर्व की कांग्रेस सरकारों ने आजादी के नायकों की निजता का ही हनन नहीं किया बल्कि भारतीय लोकतंत्र के शुरूआती दौर पर एक बदनुमा दाग लगा दिया। वर्तमान सरकार की चुप्पी भी कई सवाल खड़े करती है। अगर सच सामने आने से रोकने के लिए कांग्रेस दोषी है तो भाजपा भी सारे राज पर पर्दा डालने में जुटी है। नेताजी की मौत पर उठने वाले सवालों का देश की सरकारों ने कभी जवाब देना मुनासिब नहीं समझा। नेताजी से जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक करने की मांग करने वाली भाजपा का नजरिया भी सत्ता में आते ही बदल गया। पिछले साल दिसंबर में, राजग सरकार ने सूचना के अधिकार के तहत लगाए गए एक आवेदन के जवाब में नेताजी की मृत्यु संबंधी फाइलों को गुप्त सूची से निकालने से इंकार कर दिया था। इसके पीछे वजह बताई गई कि यह कदम विदेशों से संबंधों पर बुरा प्रभाव डाल सकता है। इन फाइलों को सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 (1)(ए) संबद्ध धारा 8 (2) के तहत गोपनीयता की छूट प्राप्त है।
वर्तमान में भी राजनीतिक दल एक बार फिर अपनी रोटियां सेंकने में जुट गए हैं लेकिन उन्हें देश की भावनाओं से कोई सरोकार नहीं है। कांग्रेस का कहना है कि केंद्र सरकार ने सुभाष चंद्र बोस की जासूसी की झूठी खबर फैलाई है। कांग्रेस का तर्क है कि इस मुद्दे में इस तथ्य का भी ध्यान नहीं रखा गया कि नेहरू की मृत्यु 27 मई 1964 को हो गई थी। इन 20 सालों में देश में सरदार पटेल, सी राजागोपालचारी, कैलाश नाथ काट्जू, गोविंद बल्लभ पंत, लाल बहादुर शास्त्री जैसे दिग्गज गृह मंत्री रहे। कांग्रेस ने सवाल उठाया कि भाजपा ऐसी खबर फैलाकर महान पूर्व गृह मंत्रियों और स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान कर रही है। वहीं भाजपा पश्चिम बंगाल की राजनीति में पैर जमाने के लिए इस मुद्दे को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना चाहती है।
वैसे विमान हादसे में नेताजी की मौत को लेकर हमेशा से सवाल खड़े होते रहे हैं। दूसरे विश्व युद्ध में जापान की पराजय के बाद जब 18 अगस्त 1945 को नेताजी ने उस स्थान के लिए उड़ान भरी जिसे अब ताइवान कहा जाता है, तो प्लेन उड़ान भरते समय ही क्रैश हो गया और बुरी तरह जल गया। नेताजी की कुछ भी घंटों बाद एक स्थानीय अस्पताल में मौत हो गई और उनके शरीर का दो दिनों के भीतर दाह-संस्कार कर दिया गया। उनकी राख को टोकियो ले जाया गया और वहां रेंकोजी मंदिर में सुपुर्द कर दिया गया, आज भी यह रखी हुई है। चूंकि नेताजी के परिजन व मित्र इस घटनाक्रम से राजी नहीं थे, ब्रिटिश सरकार ने एक जांच बैठाई, जिसमें जापान ने खानापूर्ति की।
एक विश्लेषण में पत्रकार वीर सांघवी भी कहते हैं कि षड्यंत्र की संभावनाओं की अटकलों की अधिकता के बावजूद इस प्लेन क्रैश के बारे में कुछ प्रश्न अनुत्तरित रह गए हैं। सांघवी लिखते हैं कि “बोस के अधिकांश लेफ्टिनेंट जो उनकी यात्राओं में उनके साथ रहा करते थे, उन्हें भी प्लेन में नेताजी के साथ जाने की इजाजत नहीं थी। वे कभी भी उनका शरीर नहीं देख पाए। क्रैश के बाद बोस की कोई भी तस्वीर नहीं ली जा सकी। उनके शव के कोई फोटो उपलब्ध नहीं हैं। और उनकी मृत्यु का कोई प्रमाण-पत्र भी उपलब्ध नहीं है। तो, ऐसे में यह बहस करना जायज है कि जापानियों ने उनकी मृत्यु की झूठी खबर फैलाई।”
नेताजी की गुमनामी के कुछ वर्ष बाद इस तरह की खबरें सामने आईं कि वे भारत लौट आए थे और उत्तरी भारत में एक साधु के वेश में रहे। कुछ रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया कि इस साधु को जवाहरलाल नेहरू की अंत्येष्टि में भी देखा गया, हालांकि इस तरह के दावों की कभी पुष्टि नहीं हो पाई। हालांकि साधु की कहानी कभी प्रमाणित नहीं हो पाई लेकिन यह बात फिर उभरकर सामने आई जब 1999 से 2005 के बीच सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित मुखर्जी आयोग ने संभावना जताई कि नेताजी भारत में साधु के वेश में रह रहे हैं। इस रिपोर्ट से उत्तरप्रेदश में गुमनामी बाबा या भगवानजी नामक एक साधु को सुर्खियां मिलीं। आयोग की रिपोर्ट में इस दावे पर सवाल उठाया गया कि नेताजी प्लेन क्रैश में मारे गए, हालांकि सरकार ने इस बात को खारिज कर दिया।
1964 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने भी यह विश्वास जताया था कि बोस जीवित थे। केंद्रीय इंटेलीजेंस एजेंसी का मानना था कि बोस विमान दुर्घटना में जीवित बच गए थे। दस्तावेजों से यह भी पता चला कि अमेरिकी एजेंसी स्पाई जापान के आधिकारिक कथन की सच्चाई से आश्वस्त नहीं थी। रिपोर्ट बताती है कि मई 1946 में सीआईए एजेंट ने अमेरिकी राज्य सचिव को पत्र लिखा जिसमें कहा कि उन्हें ऐसा बोला गया है कि क्या वाकई बोस को देश वापस लौटना चाहिए, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप ऐसी समस्याएं आ खड़ी होतीं जिनको वश में करना बेहद मुश्किल होता।
सच चाहे जो भी हो लेकिन पहले महान क्रांतिकारी की मौत पर पर्दा पड़ना और फिर उनके परिजनों की जासूसी की बातें सामने आने से बहुत बड़ी गड़बड़ी की आशंकाएं बलवती हो जाती हैं। कुछ भी हो लेकिन सच देश के सामने आना चाहिए। राष्ट्रहित में ये जरूरी भी है। वास्तव में लोकतांत्रिक देश होने का दावा भरने वाले देश को इस तरह के निरंकुश कृत्यों से बाज आना चाहिए।
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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत
पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।
AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.
शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव
अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।
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