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सरकार ने कश्मीर में संघर्षविराम को दिया विराम, घाटी में तनाव

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नई दिल्ली, 17 जून (आईएएनएस)| केंद्र सरकार ने आतंकियों द्वारा जारी हिंसा के बीच रविवार को जम्मू एवं कश्मीर में घोषित एकतरफा संघर्षविराम को विस्तार न देने का फैसला किया है।

यह संघर्षविराम रमजान के पाक महीने के दौरान राज्य में 16 मई को घोषित किया गया था। गृह मंत्रालय ने कहा कि आतंकियों के खिलाफ फिर से अभियान शुरू किया जाएगा। यह घोषणा ईद के एक दिन बाद की गई है।

मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, भारत सरकार ने रमजान की शुरुआत में जम्मू एवं कश्मीर में घोषित अभियान निलंबन को विस्तार नहीं देने का फैसला किया है।

बयान में कहा गया है, सुरक्षा बलों को निर्देश दिया गया है कि वे हमलों और हिंसा व हत्याओं में शामिल आतंकवादियों को रोकने के लिए तत्काल सभी जरूरी कदम उठाएं।

बयान के मुताबिक, सरकार जम्मू एवं कश्मीर में हिंसा व आतंक मुक्त माहौल बनाने के लिए कार्य करने को प्रतिबद्ध है। राज्य के लोगों विशेषकर युवाओं का भला चाहने वाले लोगों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि आतंकवादियों को अकेला कर भटके हुए नौजवानों को सही रास्ता दिखाया जाए।

गृह मंत्रालय ने जम्मू एवं कश्मीर में रमजान के दौरान आतंकवादियों के उकसावे के बावजूद संयम बरतने के लिए सुरक्षा बलों की सराहना की।

जब रमजान संघर्षविराम घोषित किया गया था तो ऐसा माना जा रहा था कि आगामी अमरनाथ यात्रा के मद्देनजर इसमें विस्तार किया जा सकता है। लेकिन आतंकियों द्वारा जारी हिंसा के कारण सरकार को हाथ खोलने के लिए मजबूर होना पड़ा। आतंकियों ने सुरक्षाकर्मियों को निशाना बनाना और उनकी हत्या करना जारी रखा है।

केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कई सारे ट्वीट में कहा कि राज्य में आतंक रोधी अभियान स्थगित करने का निर्णय जम्मू-कश्मीर के शांतिप्रिय लोगों के हित में लिया गया था, ताकि उन्हें रमजान के पाक महीने के लिए एक अनुकूल माहौल प्रदान किया जा सके।

उन्होंने कहा कि सुरक्षा बलों ने संघर्षविराम के दौरान संयम का परिचय दिया, जो आम लोगों के लिए राहत लेकर आया। इस कदम की जम्मू एवं कश्मीर समेत पूरे देश में प्रशंसा हो रही है। लेकिन आतंकियों ने नागरिकों और सुरक्षा बलों पर हमले जारी रखे, जिसके परिणामस्वरूप लोगों की मौतें हुईं और कई लोग घायल हुए।

उन्होंने कहा, आतंकियों के खिलाफ अभियान फिर से शुरू हो गया है।

जम्मू एवं कश्मीर में सत्तारूढ़ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के प्रवक्ता रफी अहमद मीर ने केंद्र सरकार के संघर्ष विराम को आगे नहीं बढ़ाने के फैसले पर दुख जताते हुए कहा, रमजान में हिंसा नहीं रुकने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा लिए गए फैसले से पार्टी खुश नहीं है। रमजान के दौरान हमले ज्यादातर आतंकवादियों ने किए।

पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, संघर्ष विराम केंद्र सरकार की पहल पर हुआ था. इसकी असफलता शांति को मौका देने का समर्थन करने वाले हर व्यक्ति की असफलता है।

संघर्ष विराम को खत्म करने को शांति प्रयासों की असफलता मामने से इंकार करते हुए उप मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता कविंद्र गुप्ता ने कहा, यह सिर्फ आभियानों का स्थगन था। हिंसक गतिविधियों में शामिल सभी को उचित जवाब दिया जाएगा।

प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार की प्राथमिकता आगामी अमरनाथ यात्रा को संपन्न कराने की थी और सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों से मिली जानकारी के आधार पर संघर्ष विराम को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला लिया गया।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता यूसुफ तरिगामी ने कहा, यह फैसला मजबूरी या उत्तेजना में जैसे भी लिया गया, लेकिन संघर्ष विराम को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला खेदजनक है।

मुस्लिमों के पवित्र महीने रमजान में शांत वातावरण बनाने के लिए संघर्ष विराम का फैसला 16 मई को लिया गया था। लेकिन अलगाववादियों ने शुरू से ही आशाजनक प्रतिक्रिया नहीं दी।

नाम गोपनीय रखने की शर्त पर एक अलगाववादी नेता ने कहा, यह भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा कश्मीरियों की शांति को खत्म करने का अस्थाई आदेश से बढ़कर कुछ नहीं था।

श्रीनगर निवासी जावेद अहमद (48) ने कहा, संघर्ष विराम ने हमें उम्मीद की एक किरण दिखी थई कि आम आदमी बेखौफ होकर जी सकेगा।

सरकार का यह फैसला शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय बैठक के बाद सामने आया है। इस बैठक में गृहमंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और अन्य अधिकारी शामिल हुए थे। यह बैठक गुरुवार को जम्मू एवं कश्मीर में रमजान के दौरान जारी आतंकी गतिविधियों के मद्देनजर हुई थी।

गुरुवार शाम को ‘राइजिंग कश्मीर’ के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी और उनके दो सुरक्षा अधिकारियों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

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नेशनल

क्या रद्द होगी राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता ?

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नई दिल्ली। राहुल गांधी के पास ब्रिटेन की भी नागरिकता है और इसलिए उनकी भारतीय नागरिकता रद्द कर दी जानी चाहिए.’ एस विग्नेश शिशिर ने यह दावा करते हुए एक जनहित याचिका दायर की है, जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को फैसला करने का निर्देश दिया. इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘याचिकाकर्ता की तरफ से कुछ दस्तावेज गृह मंत्रालय को मिले हैं और वह इस पर विचार कर रहा है कि राहुल गांधी की नागरिकता रद्द की जानी चाहिए या नहीं.’

जस्टिस एआर मसूदी और सुभाष विद्यार्थी की डिविजन बेंच ने अपर सॉलिसिटर जनरल एसबी पांडेय को निर्देश दिया कि वो तीन हफ्ते के अंदर इस बारे में गृह मंत्रालय से निर्देश प्राप्त करें और अगली तारीख पर इसका जवाब पेश करें. इस मामले की सुनवाई अब 19 दिसबंर को रखी गई है.

मामले की पूरी जानकारी

राहुल गांधी की नागरिकता से जुड़ा विवाद तब शुरू हुआ जब लखनऊ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि राहुल गांधी के पास ब्रिटिश नागरिकता है। याचिकाकर्ता एस विग्नेश शिशिर ने दावा किया कि उन्होंने गहन जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि राहुल गांधी के पास यूके की नागरिकता है। शिशिर ने यह भी कहा कि उनके पास कुछ गोपनीय जानकारी है, जिससे यह साबित होता है कि राहुल गांधी का विदेशी नागरिकता प्राप्त करना कानून के तहत भारतीय नागरिकता को रद्द करने का कारण हो सकता है।

पहले इस मामले में शिशिर की याचिका को जुलाई 2024 में खारिज कर दिया गया था, लेकिन इसके बाद शिशिर ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास शिकायत की थी, जिसमें कोई एक्शन नहीं लिया गया। फिर से इस मामले को अदालत में लाया गया और अब गृह मंत्रालय से राहुल गांधी की नागरिकता पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।

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