नेशनल
सैन्य आधुनिकीकरण के लिए 1.23 लाख करोड़ रुपये, मगर कमियां बरकरार
सिंहावलोकन-2014
नई दिल्ली| देश में रक्षा बलों के आधुनिकीकरण के लिए सरकार ने इस वर्ष 1.23 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए, इसके बावजूद कमिया बरकरार रह गईं। 1960 के दशक में शामिल किए गए एक लड़ाकू विमान को बदलने का समझौता नहीं हो पाया और लड़ाकू श्रेणी के अधिकारियों की नियुक्तियां नहीं हो पाईं। देश में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने के छह महीने के भीतर आवंटित यह राशि रक्षा विभाग के प्रति नई सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
रक्षा बलों के आधुनिकीकरण के लिए यह राशि रक्षा अधिग्रहण परिषद की पांच बैठकों के बाद आवंटित की गई, जिनमें से चार बैठकें रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार संभाल रहे अरुण जेटली की अध्यक्षता में हुईं थीं, जबकि मौजूदा रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अध्यक्षता में एक बैठक हुई है। इस राशि में से 50,000 करोड़ रुपये छह पनडुब्बियों, 3,200 करोड़ रुपये इजरायल से टैंक रोधी ‘स्पाइक’ मिसाइलें खरीदने, 2017 करोड़ रुपये दो छोटी पनडुब्बियों, 1,850 करोड़ रुपये जर्मन कंपनी डॉर्नियर से 12 समुद्री टोही विमान, 1,436 करोड़ रुपये पोत को निशाना बनाने वाली रूसी यूरान मिसाइलें, 1,800 करोड़ रुपये थल सेना के लिए 363 युद्धक साजो-सामान वाहक बीएमपी-3, 740 करोड़ रुपये रेलवे के वैगन और 660 करोड़ रुपये रेडियो रिले कंटेनरों को खरीदने के निमित्त रहा है।
सबसे बड़ी बात यह है कि इनमें से पनडुब्बियों और समुद्री टोही विमानों का निर्माण देश में ही किया जाएगा, जो प्रधानमंत्री की महात्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ परियोजना को दृढ़ता प्रदान करेगी। इसके अलावा सरकार ने रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 फीसदी कर रक्षा सुधार की दिशा में क्रांतिकारी कदम उठाया है। रक्षा क्षेत्र में बीत रहे वर्ष में हुई अन्य महत्वपूर्ण पहलों में पूर्णत: स्वदेश निर्मित परमाणु क्षमता से संपन्न पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत का सफल परीक्षण और हल्के लड़ाकू विमानों ‘तेजस’ के निर्माण का शुरू होना रहा।
आईएनएस अरिहंत के जरिए अगले दो वर्षो में भारत रणनीतिक परमाणु बम वर्षकों, अंतरमहाद्विपीय बैलिस्टिक मिसाइलों, पनडुब्बी से मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों का परीक्षण करेगा। रक्षा मंत्रालय के एक सूत्र ने बताया कि भारत लंबे समय से राडार की पकड़ में न आ सकने वाले हथियारबंद वाहन निर्मित करने की दिशा में काम कर रहा है और इसे मुंबई से जामनगर के बीच समुद्री सीमा की निगरानी में लगाया जाएगा।लड़ाकू विमानों के लिए भारतीय वायुसेना ने 2012 में फ्रांस की कंपनी डासाल्ट से 20 अरब डॉलर में 126 मध्यम आकार वाले बहुउद्देश्यीय विमान (एमएमआरसीए) ‘राफेल’ खरीदने के लिए अहम समझौता किया।
भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन का घटकर 39 से 25 रह जाना देश की रक्षा के लिए बड़ी चिंता का सबब बना। चयन प्रक्रिया में शामिल एक अधिकारी ने पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर आईएएनएस से कहा, “स्क्वाड्रन में कटौती का यह एकमात्र उदाहरण नहीं है। राफेल के लिए 80 के दशक के मध्य से ही बातचीत चल रही थी, जबकि समझौते के इस वर्ष पूरा होने की उम्मीद है, जबकि इसकी प्रौद्योगिकी 40 वर्ष पुरानी पड़ चुकी है। भारतीय वायुसेना के लिए पिछली बार लड़ाकू विमान खरीदने में इतना ही समय गुजर चुका है।” शुरुआत में 18 राफेल विमान सीधे उड़ान भरने की स्थिति में खरीदे जाएंगे, लेकिन उसके बाद इनका निर्माण देश में ही हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड करेगा।
भारतीय थल सेना में अधिकारी श्रेणी के तहत बड़ी संख्या में पद रिक्त हैं। निर्धारित 48,000 अधिकारियों में लेफ्टिेनेंट, कर्नल, मेजर और कैप्टन रैंक के 7,764 पद रिक्त हैं। दूसरी ओर भारतीय नौसेना में भी लेफ्टिनेंट कमांडर, लेफ्टिनेंट और सब लेफ्टिनेंट रैंक के 1,499 पद रिक्त हैं। भारतीय वायुसेना की बात करें तो विंग कमांडर, स्क्वाड्रन लीडर, फ्लाइट लेफ्टिनेंट और फ्लाइंग अधिकारी रैंक के 357 अधिकारियों की कमी है। मुंबई के पास पत्तन पर एक पनडुब्बी के विस्फोट के बाद डूब जाने और एक अन्य पनडुब्बी में आग लगने की चिंताजनक घटनाओं के बीच एडमिरल डी. के. जोशी ने भारतीय वायुसेना प्रमुख का पदभार संभाला।
इस बीच भारत और रूस के बीच रक्षा संबधों में सुस्ती बनी रही। इस दौरान, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के पिछले महीने भारत आने से ठीक पहले भारत ने स्पष्ट कर दिया कि पांचवीं पीढ़ी के स्टेल्थ लड़ाकू विमानों के लिए वह अनिश्चितकाल तक इंतजार नहीं कर सकता। इस विमान के लिए 2007 में तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी के मॉस्को दौरे के दौरान सहमति बनी थी। कुल मिलाकर भारत के साथ रक्षा समझौतों के मामले में अमेरिका का पलड़ा इस वर्ष रूस पर भारी पड़ा। भारत ने पिछले तीन वर्षो में अमेरिका से 32,615 करोड़ रुपयों के रक्षा उत्पाद खरीदे हैं, जबकि इसी अवधि में रूस से 25,364 करोड़ रुपयों के रक्षा उत्पाद खरीदे गए।
उत्तर प्रदेश
बदायूं के इस गांव में आजादी के बाद भी नहीं मिली रोड की सुविधा, अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे ग्रामीण
बदायूं। उत्तर प्रदेश के बदायूं जनपद में एक गांव ऐसा भी है जहां देश आजाद होने के बाद भी सड़क की सुविधा नही मिली है और पिछले 30 साल से एक भी व्यक्ति की सरकारी नौकरी नहीं लगी है। जिसको लेकर ग्रामीणों ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की है। जिसमें तीन लोगों की हालात बिगड़ गयी जिनका स्वास्थ्य विभाग द्वारा धरना स्थल पर ही उपचार किया जा रहा है।
बता दें कि पूरा मामला जनपद बदायूं के बिसौली तहसील के आसफपुर विकासखंड क्षेत्र के ढोरनपुर गांव का है। जहां ग्रामीणों ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी है। ग्रामीणों ने बताया कि देश आजाद होने के बाद भी आज तक मुख्य मार्ग से गांव तक आने वाली सड़क की सुविधा नहीं मिली है।जिससे बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है और बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। सड़क निर्माण ना होने वजह से पिछले 30 सालों से आज तक एक भी व्यक्ति की कोई भी सरकारी नौकरी नहीं लगी है। वही लोकसभा 2024 के चुनाव में सड़क की सुविधा नहीं मिलने पर ग्रामीणों ने चुनाव का बहिष्कार किया था। लेकिन अधिकारियों और नेताओं ने आश्वासन देकर वोट डालने की अपील की थी। लेकिन
भूख हड़ताल से तीन लोगों की हालात बिगड़ी
चुनाव संपन्न होने के बाद भी सड़क की सुविधा नहीं मिलने से ग्रामीणों ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी है।अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल से तीन लोगों की हालात बिगड़ गई जिनके इलाज के लिए स्वास्थ्य विभाग की तरफ से कर्मचारियों को भेजा गया है। 24 घंटे स्वास्थ्य विभाग की टीम धरना स्थल पर मौजूद है। वही ग्रामीणों ने बताया गांव में बिजली की भी समस्या है आये दिन बिजली के जर्जर तारों से घटनाएं होती है लेकिन कोई भी सुनवाई नहीं होती।ग्रामीणों ने बताया कि जब तक समस्याओं का समाधान नहीं होता है तब तक अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल जारी रहेगी। अब देखना होगा कि जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों द्वारा ग्रामीणों की समस्याओं का निस्तारण हो पाता या नहीं ।
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