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हरियाणा दलित हत्याकांड में 33 दोषी करार

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नई दिल्ली, 24 अगस्त (आईएएनएस)| दिल्ली उच्च न्यायालय ने हरियाणा के हिसार जिले में 2010 के दलित हत्याकांड में 33 लोगों को दोषी करार दिया और कहा कि आजादी के 71 सालों बाद भी ऊंची जातियों द्वारा अनुसूचित जातियों के खिलाफ अत्याचार इस बात का उदाहरण है कि इसमें कोई कमी नहीं आई है। न्यायमूर्ति मुरलीधर और न्यायमूर्ति आई.एस. मेहता की पीठ ने कहा, मिर्चपुर में 19 से 21 अप्रैल, 2010 के बीच हुई घटनाएं डॉ. बी.आर. आंबेडकर द्वारा 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में संविधान के अंतिम मसौदे को पेश किए जाने के दौरान कही गई उस बात की याद दिलाती हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘भारतीय समाज में दो चीजें पूरी तरह से अनुपस्थित’ हैं।

पीठ ने कहा, पहली चीज ‘समानता’ और दूसरी चीज ‘भाईचारा’ है।

अदालत ने जाट समुदाय द्वारा वाल्मीकि समुदाय के खिलाफ किए गए ‘सुनियोजित हमले’ के खिलाफ भी कठोर टिप्पणी की। घटना के चलते मिर्चपुर गांव के 254 दलित परिवारों को गांव से पलायन करना पड़ा था।

अदालत ने कहा, अनकही पादटिप्पणी यह है कि जिन लोगों ने मिर्चपुर गांव में वापस रहने का फैसला किया था, उन लोगों ने वर्तमान आपराधिक मुकदमे में अभियोजन पक्ष का समर्थन नहीं किया, जबकि जिन्होंने वापसी नहीं करने का फैसला किया, उन्होंेने ऐसा किया है।

अदालत ने कहा कि मिर्चपुर गांव में 19, 20 और 21 अप्रैल, 2010 की घटनाओं के परिणामस्वरूप यह स्थिति दलितों के भीतर मौजूद भय की कहानी अपने आप में कह रही है।

पीठ ने इस बात का भी उल्लेख किया कि हरियाणा सरकार ने विस्थापित परिवारों का पुनर्वास मिर्चपुर में कराने की मांग नहीं की है और इसके बजाय एक अलग इलाके में कराने की मांग की है और इसे ‘गंभीर तथ्य’ बताया।

अदालत ने 209 पेज के आदेश में कहा, सवाल यह है कि क्या यह समानता, सामाजिक न्याय और भाईचारे के संवैधानिक वादे के साथ समझौता करता है, जो व्यक्ति की गरिमा बनाए रखने के बारे में आश्वस्त करता है।

अदालत ने 13 लोगों की सजा को बरकरार रखा, जिन्हें निचली अदालत में दोषी ठहराया गया था।

इसने 20 और आरोपियों को दोषी ठहराया, जिन्हें पहले निचली अदालत ने बरी कर दिया था।

अदालत ने 20 अन्य अभियुक्तों को एक सितंबर, 2018 को या उससे पहले समर्पण करने का निर्देश दिया और ऐसा नहीं करने पर हरियाणा के नारनौंद थाने के प्रभारी अभियुक्तों को हिरासत में लेने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे।

70 वर्षीय ताराचंद और उनकी 18 वर्षीय अपंग बेटी सुमन को अप्रैल 2010 में चंडीगढ़ से लगभग 300 किमी दूर मिर्चपुर में उनके घर में आग लगाकर हत्या कर दी गई थी और अन्य दलित घरों को भी आग के हवाले कर दिया गया था।

इस मामले में जाट समुदाय से जुड़े कुल 15 आरोपियों को निचली अदालत ने दोषी ठहराया था। उनमें से दो की अपील के विचाराधीन रहने के दौरान मौत हो चुकी है।

इस मामले में कुल 97 आरोपी मुकदमे का सामना कर रहे थे।

गांव के जाट और दलित समुदायों के सदस्यों के बीच विवाद के बाद हमले को अंजाम दिया गया था।

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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