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हाशिमपुरा, स्रेब्रेनिका व रोहिंग्या जनसंहार के समान-असमान पहलू

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नई दिल्ली, 18 फरवरी (आईएएनएस)| पीठ पीछे दोनों हाथ बंधे और कतारबद्ध घुटनों के बल खड़े रोहिंग्या मुस्लिम युवाओं की तस्वीरें देखते ही मेरे मानस पटल पर ऐसी ही कुछ खौफनाक घटनाओं की यादें ताजा हो आईं। तस्वीरों में बंदूकों से लैस सैन्य पुलिस घात लगाए बैठी है। आखिरकार उनको मार गिराया गया।

यह खौफ की ऐसी तस्वीर है, जिसे दुनिया याद रखेगी। म्यांमार के सेना प्रमुख जनरल मिन आंग हलेइंग ने स्वीकार किया कि राखाइन प्रांत की राजधानी सिट्टवे से पचास किलोमीटर दूर एक गांव में मची भगदड़ में अनेक लोग मारे गए थे। पत्रकारों ने कई अन्य सामूहिक हत्याओं को उजागर किया।

दूसरी वीभत्स घटना जो मेरे मानस पटल को कुरेदने लगी, वह 1995 में बोस्निया के स्रेब्रेनिका की घटना है। बेशक, मेरठ के हाशिमपुरा में 1987 का वाकया हमारी अपनी ही त्रासदी है। इन सारी त्रासदियों में मुस्लिम युवाओं के हाथों को उनकी पीठ पीछे बांधकर सेना ने गोली मार दी थी।

हालिया 2017 में रोहिंग्या जनसंहार में मुस्लिमों की हत्या में स्थानीय बौद्ध गुरु और सेना का हाथ था। एनजीओ के आकलन के मुताबिक, 6,700 से अधिक लोगों की हत्या की गई।

स्रेब्रेनिका में बोस्निया सर्बिया की सेना के कट्टरपंथी ईसाई सैनिकों ने 7,000 मुस्लिम युवाओं की हत्या कर दी थी और 20,000 लोगों को वहां से निकाल बाहर कर दिया था।

हाशिमपुरा में 42 युवाओं को एक नहर के पास कतार में खड़ा कर उत्तर प्रदेश के सशस्त्र पुलिस के जवानों ने गोलियों से भून डाला था। पुलिस के ये जवान हिंदू थे। क्या उनके नाम बताए जा सकते हैं? जाहिर है कि नहीं, इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी जम्मू-कश्मीर में शहीद हुए जवानों को मुस्लिम बता रहे हैं, क्योंकि हालिया हिंसक घटनाओं में ज्यादातर मुस्लिम ही थे, जिनको आतंकियों ने मारा।

ओवैसी का मुद्दा साधारण है। दरअसल, भारतीय मुसलमानों की देशभक्ति को लगातार चुनौती मिली रही है। धर्मनिरपेक्षता के आधार पर टेलीविजन चैनलों पर प्राइम टाइम की बहस में उनको गलत बताया जा रहा है। लेकिन सुंजवान के सैनिक शिविर में शहीद हुए सात सैनिकों में पांच मुस्लिम थे। खबरों में यह बात क्यों नहीं आती है? इन खबरों से सांप्रदायिकता का दरार कुछ कम होगा। लेकिन नहीं, प्रस्तोतागण एक ही स्वर में बोले, ओवैसी सेना का सांप्रदायीकरण कर रहे हैं। लेकिन कैसे? क्या यह बताकर कि शिविर में शहीद हुए सात सैनिकों में पांच मुस्लिम थे। मुसलमानों को शहीदी में हिंदू सैनिकों को कभी पीछे नहीं छोड़ना चाहिए?

इस प्रवृति से हाशिमपुरा में मारे गए 42 मुसलमानों को महज धर्मनिरपेक्ष राज्य के निमित्त के तौर पर देखा जाना चाहिए।

न्यू मेक्सिको के पूर्व गवर्नर बिल रिचर्डसन ने पिछले सप्ताह रोहिंग्या संकट पर म्यांमार सलाहकार बोर्ड से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने इसे सरकार समर्थित ‘प्रशंसक दस्ता’ करार दिया है। रिचर्डसन म्यांमार की लोकप्रिय नेता आंग सान सू की के मित्र रहे हैं, फिर भी वह अपनी नाराजगी जाहिर करने से नहीं रुके। उन्होंने सू की के बारे में कहा, उसे सत्ता का अहंकार हो गया है।

स्रेब्रेनिका की त्रासदी के लिए सीनियर कमांडर राटको म्लाडिक और उनके साथियों को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने लंबी सजा सुनाई। म्यांमार में आंग सान सू की और उनके सैन्य सहयोगियों को दुनियाभर में बदनामी झेलनी पड़ रही है।

तो फिर, तीनों जनसंहार में सबसे पुरानी घटना हाशिमपुरा हत्याकांड के मुजरिमों को क्यों नहीं अभी तक सजा हो पाई है?

(सईद नकवी राजनीतिक व कूटनीतिक मामले के वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। आलेख में उनकी निजी राय है)

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टेनिस : दुबई चैम्पियनशिप में सितसिपास ने मोनफिल्स को हराया

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 दुबई, 1 मार्च (आईएएनएस)| ग्रीस के युवा टेनिस खिलाड़ी स्टेफानोस सितसिपास ने शुक्रवार को दुबई ड्यूटी फ्री चैम्पियनशिप के पुरुष एकल वर्ग के सेमीफाइनल में फ्रांस के गेल मोनफिल्स को कड़े मुकाबले में मात देकर फाइनल में प्रवेश कर लिया।

  वर्ल्ड नंबर-11 सितसिपास ने वर्ल्ड नंबर-23 मोनफिल्स को कड़े मुकाबले में 4-6, 7-6 (7-4), 7-6 (7-4) से मात देकर फाइनल में प्रवेश किया।

यह इन दोनों के बीच दूसरा मुकाबला था। इससे पहले दोनों सोफिया में एक-दूसरे के सामने हुए थे, जहां फ्रांस के खिलाड़ी ने सीधे सेटों में सितसिपास को हराया था। इस बार ग्रीस के खिलाड़ी ने दो घंटे 59 मिनट तक चले मुकाबले को जीत कर मोनफिल्स से हिसाब बराबर कर लिया।

फाइनल में सितसिपास का सामना स्विट्जरलैंड के रोजर फेडरर और क्रोएशिया के बोर्ना कोरिक के बीच होने वाले दूसरे सेमीफाइनल के विजेता से होगा। सितसिपास ने साल के पहले ग्रैंड स्लैम आस्ट्रेलियन ओपन में फेडरर को मात दी थी।

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