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लाइफ स्टाइल

होली का आनन्द जरूर लें पर न भूलें स्किन-हेयर केयर

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नई दिल्ली। रंगों का त्योहार होली देशभर में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है, लेकिन रंगों से बाल खराब होने और त्वचा में जलन होने का खतरा भी बना रहता है, इसलिए होली खेलते वक्त कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए। काया लिमिटेड (चिकित्सा सेवा व अनुसंधान एवं विकास) की उपाध्यक्ष और प्रमुख संगीता वेलासकर ने रंग खेलने के दौरान बालों, त्वचा और नाखूनों की देखभाल के संबंध में ये सुझाव दिए  हैं :

  • होली खेलने के दौरान कड़ी धूप के संपर्क में आने से आपके बाल रूखे हो सकते हैं और नमी खो सकती है, इसलिए तेल जरूर लगाएं, यह आपके बालों के लिए सुरक्षा कवच का काम करेगा और बालों से रंग भी आसानी से निकल जाएगा।
  • रंगों के संपर्क में आने के कारण आपकी त्वचा पहले ही संवेदनशील हो जाती है, ऐसे में होली के दिन जब तक बेहद जरूरी न हो तब तक दो बार से ज्यादा न नहाएं क्योंकि इससे त्वचा की नमी खो सकती है और त्वचा की पीएच बैलेंस में भी बदलाव हो सकता है। नहाने के बाद मॉइश्चराइजर लगाना नहीं भूलें।
  • रंग खेलने के दौरान आपके नाखून अत्यधिक मात्रा में रंग अवशोषित कर सकते हैं और देखने में भी अच्छे नहीं लगते, इसलिए अपनी पसंदीदा रंग की नेल पॉलिश लगाएं, इससे आपके नाखून होली के कृत्रिम रंगों से सुरक्षित रहेंगे।
  • चेहरे पर रंग लगा होने से आपकी त्वचा पहले से ही रूखी होती है, ऐसे में त्वचा को ज्यादा रगड़े नहीं और हल्के हाथों से स्क्रब करें क्योंकि ज्यादा रगडऩे से आपकी त्वचा में जलन हो सकता है या दाने पड़ सकते हैं। रंग छुड़ाने के लिए सोडियम लॉरेथ युक्त क्लींजर का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इसके इस्तेमाल के बाद मॉइश्चराइजर जरूर लगाएं।
  • रंग निकलने के बाद त्वचा और बालों में अगर रूखापन रहे तो रात में बालों में अच्छी कंपनी का हेयर सीरम और त्वचा पर माॉइश्चराइजर या नाइट क्रीम लगाएं। रात में त्वचा की कोशिकाएं और बाल खुद को रिपेयर करते हैं। आपको इन उत्पादों का सही तरीके से इस्तेमाल करने पर दो से चार सप्ताह के भीतर बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे।

लाइफ स्टाइल

साइलेंट किलर है हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी, इन लक्षणों से होती है पहचान  

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high cholesterol symptoms

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नई दिल्ली। हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी एक ऐसी समस्या है, जो धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है इसीलिए इसे एक साइलेंट किलर कहा जाता है। ये बीमारी शरीर पर कुछ संकेत देती है, जिसे अगर नजरअंदाज किया गया, तो स्थिति हाथ से निकल भी सकती है।

हालांकि, पिछले कुछ सालों में कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी है और सावधानियां भी बरती जाने लगी हैं। ऐसा नहीं है कि कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए पूरी तरह से नुकसानदायक है। अगर यह सही मात्रा में हो, तो शरीर को फंक्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चलिए जानते हैं इसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।

कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो क्या होगा?

जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dL से अधिक हो जाती है, तो इसे हाई कोलेस्ट्रॉल की श्रेणी में गिना जाता है और डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए डाइट से लेकर जीवन शैली तक में कई बदलाव करने की सलाह देते हैं। अगर लंबे समय तक खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बनी रहे, तो यह हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।

हाई कोलेस्ट्रॉल को “साइलेंट किलर” क्यों कहते हैं?

हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेंट किलर इसलिए कहते हैं क्योंकि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर इसका काफी खतरनाक असर पड़ता है, जिसकी पहचान काफी देर से होती है। इसके शुरुआती लक्षण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर जाते हैं और यहीं से यह बढ़ना शुरू हो जाते हैं। आखिर में इसकी पहचान तब होती है जब शरीर में इसके उलटे परिणाम नजर आने लगते हैं या फिर कोई डैमेज होने लगता है।

शरीर पर दिखने वाले कोलेस्ट्रॉल के लक्षणों को कैसे पहचानें?

हाई कोलेस्ट्रॉल के दौरान पैरों में कुछ महत्वपूर्ण लक्षण नजर आने लगते हैं, जिसे क्लाउडिकेशन कहते हैं। इस दौरान पैरों की मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन और थकान महसूस होता है। ऐसा अक्सर कुछ दूर चलने के बाद होता है और आराम करने के साथ ही ठीक हो जाता है।

क्लाउडिकेशन का दर्द ज्यादातर पिंडिलियों, जांघों, कूल्हे और पैरों में महसूस होता है। वहीं समय के साथ यह दर्द गंभीर होता चला जाता है। इसके अलावा पैरों का ठंडा पड़ना भी इसके लक्षणों में से एक है।

गर्मी के मौसम में जब तापमान काफी ज्यादा हो, ऐसे समय में ठंड लगना एक संकेत है कि व्यक्ति पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से जूझ रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि यह स्थिति शुरुआत में परेशान न करे, लेकिन अगर लंबे समय तक यह स्थिती बनी रहती है तो इलाज में देरी न करें और समय रहते डॉक्टर से इसकी जांच करवाएं।

हाई कोलेस्ट्रॉल के अन्य लक्षणों में से एक पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बदलाव आना भी शामिल है। इस दौरान ब्लड वेसेल्स में प्लाक जमा होने लगते हैं, जिसके कारण ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है।

ऐसे में जब शरीर के कुछ हिस्सों में कम मात्रा में खून का दौड़ा होता है, तो वहां कि त्वचा की रंगत और बनावट के अलावा शरीर के उस हिस्से का फंक्शन भी प्रभावित होता है।

इसलिए, अगर आपको अपने पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बिना कारण कोई बदलाव नजर आए, तो हाई कोलेस्ट्रॉल इसका कारण हो सकता है।

डिस्क्लेमर: उक्त लेख सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।

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