प्रादेशिक
लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे पर सुहाना होगा सफर
लखनऊ। लखनऊ से आगरा तक का सफर सुहाना और सुरक्षित होने की उम्मीद उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने अपनी एक महत्वाकांक्षी परियोजना से जगाई है। सरकार ने लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे पर पीएसी की तीन बटालियन को स्थापित किए जाने का फैसला लिया है।
पीएसी की तैनाती पर डीजीपी मुख्यालय ने काम करना शुरू कर दिया है। नया एक्सप्रेस-वे होने की वजह से इसके इर्द-गिर्द पीएसी की बटालियन की स्थापना कर रास्ते पर निगरानी रखी जाएगी। एक्सप्रेस-वे पर पुलिस की गाड़ियों की आवाजाही आम जनता को सुरक्षा का अहसास कराएगा। आने वाले तीन बरसों में डीजीपी मुख्यालय प्रदेश में पीएसी की दस बटालियन का इजाफा करने का रोडमैप तैयार कर रहा है।
डीजीपी मुख्यालय के सूत्रों के मुताबिक, प्रदेश में कई साल से पीएसी की कोई नई बटालियन नहीं बनाई गई है। उत्तराखंड के निर्माण के बाद इनमें से आठ बटालियन वहां ट्रांसफर हो चुकी हैं। बची हुई कंपनियों में से ज्यादातर महत्वपूर्ण स्थानों की सुरक्षा में तैनात हैं। यही वजह है कि कोई बटालियन साल में एक माह के लिए जरूरी प्रशिक्षण सत्र में शामिल नहीं हो पा रही है।
प्रदेश में जारी पंचायत चुनाव के दौरान फोर्स की कमी ने अधिकारियों का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया है। डीजीपी जगमोहन यादव ने इसके लिए सैद्धांतिक सहमति प्रदान करते हुए प्रस्ताव तैयार करने को कहा है।
प्रदेश में पीएसी की दस बटालियन का इजाफा होने से कानून-व्यवस्था के मामलों में तत्परता के साथ कार्रवाई की जा सकेगी। प्रारंभिक तौर पर पहली तीन बटालियन लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे पर स्थापित किए जाने की तैयारी है। ये बटालियन मैनपुरी, कन्नौज व फिरोजाबाद में एक्सप्रेस-वे के किनारे जमीन लेकर स्थापित किए जाने पर मंथन हो शुरू हो चुका है।
महंगी पड़ रही केंद्रीय बलों की तैनाती :
प्रदेश में होने वाले मुख्य पर्वो, चुनाव, वीवीआईपी मूवमेंट, वीआईपी सिक्योरिटी के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती घाटे का सौदा साबित हो रही है। हालिया पंचायत चुनाव के लिए गृह मंत्रालय द्वारा दी गई कंपनी सेंट्रल पैरा मिलेट्री फोर्स के लिए राज्य सरकार को करोड़ों रुपये चुकाने पड़ रहे हैं। इसके अलावा रात के समय किसी जिले में कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब होने पर केंद्रीय बलों की सेवा लेना टेढ़ी खीर साबित होता है।
वहीं पीएसी की एक बटालियन को स्थापित करने में भी अधिक खर्च आता है। इसे देखते हुए राज्य सरकार अपने संसाधनों को बढ़ाने की कवायद में जुट गई है।
पीएसी की बढ़ती जरूरत को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने इंडिया रिजर्व बटालियन स्कीम की शुरुआत की थी, लेकिन दुर्भाग्य से यह उप्र में फेल हो गई। प्रदेश में दो इंडिया रिजर्व बटालियन की स्थापना मऊ और सोनभद्र में हुई थी। मऊ की बटालियन को नोएडा भेज दिया गया, जबकि सोनभद्र की बटालियन नक्सली गतिविधियों को देखते हुए वहीं पर डटी रहती है।
दूसरी ओर, केंद्रीय बल होने की वजह से इसे दूसरे प्रदेशों में भी तैनात किए जाने की संभावना को देखते हुए राज्य सरकार ने इंडिया रिजर्व बटालियन स्कीम से किनारा कर लिया है। फिर भी उम्मीदें कायम हैं।
उत्तर प्रदेश
टीबी नोटिफिकेशन में इस साल भी सबसे आगे योगी सरकार, लक्ष्य के करीब पहुंचा उत्तर प्रदेश
लखनऊ | योगी सरकार ने ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) के मरीजों की पहचान कर इलाज करने में एक बार फिर बड़ी सफलता हासिल की है। योगी सरकार ने पिछले वर्ष की तरह इस वित्तीय वर्ष में भी उत्तर प्रदेश को टीबी मुक्त बनाने के लक्ष्य में अन्य प्रदेशों की तुलना में आगे चलने का कीर्तिमान दर्ज किया है। योगी सरकार को इस साल 6.5 लाख मरीजों के चिन्हिकरण का लक्ष्य मिला था। अक्तूबर माह की समाप्ति तक लक्ष्य के सापेक्ष 86 प्रतिशत मरीजों की पहचान कर देश में पहले स्थान पर है जबकि दूसरे स्थान पर महराष्ट्र है, जहां पर 1,85,765 मरीजों का नोटिफिकेशन किया गया। इसी तरह बिहार तीसरे स्थान पर है, जहां 1,67,161 मरीजों का नोटिफिकेशन किया गया है। यानी इस साल भी बीते साल की तरह प्रदेश लक्ष्य से ऊपर टीबी नोटिफिकेशन कर लेगा।
लखनऊ, गोरखपुर में सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों को नोटिफिकेशन रहा बराबर
विशेषज्ञों का मानना है कि देश-प्रदेश से टीबी उन्मूलन का एक ही तरीका है कि ज्यादा से ज्यादा मरीजों का चिन्हिकरण व इलाज किया जाए। इसी के मद्देनजर केंद्रीय टीबी डिवीजन ने सभी प्रदेशों को साल की शुरुआत में टीबी नोटिफिकेशन का लक्ष्य तय किया था। उत्तर प्रदेश को 6.5 लाख मरीज खोजने का लक्ष्य दिया गया था। बीते साल यह 5.5 लाख का था। विभागीय आंकड़ों के मुताबिक 31 अक्तूबर तक प्रदेश में पांच लाख 59 हजार टीबी मरीजों की पहचान की जा चुकी है। इसमें प्राइवेट डाॅक्टरों की भूमिका भी सराहनीय रही है। दो लाख से ज्यादा मरीजों की पहचान यानी तकरीबन 40 प्रतिशत मरीज प्राइवेट डाॅक्टरों के माध्यम से पंजीकृत हुए हैं। आगरा, मथुरा, झांसी, कानपुर, मेरठ व मुरादाबाद में तो प्राइवेट डाक्टरों ने सरकारी डाॅक्टरों से भी ज्यादा बेहतर प्रदर्शन किया है। लखनऊ, गोरखपुर व बरेली में सरकारी व प्राइवेट नोटिफिकेशन बराबर का रहा है।
बीते साल भी प्रदेश ने लक्ष्य के सापेक्ष 115 प्रतिशत किया था टीबी नोटिफिकेशन
राज्य टीबी अधिकारी डॉ. शैलेंद्र भटनागर ने बताया कि सीएम योगी मंशा के अनुरुप वर्ष 2025 तक प्रदेश को टीबी मुक्त करने के लिए युद्धस्तर पर काम चल रहा है। इसी का नजीजा है कि इस वर्ष भी प्रदेश टीबी नोटिफिकेशन में अन्य प्रदेशों की तुलना में आगे चल रहा है। काबिले गौर है कि केंद्र द्वारा दिए गए इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग द्वारा तरह-तरह के प्रयास किए गए हैं। इनमें हर माह की 15 तारीख को एकीकृत निक्षय दिवस, एक्टिव केस फाइंडिंग (एसीएफ) अभियान व दस्तक अभियान का बार-बार चलाया जाना प्रमुख है। यही कारण है कि बीते साल भी प्रदेश ने लक्ष्य के सापेक्ष 115 प्रतिशत टीबी नोटिफिकेशन किया था। वर्ष 2023 में टीबी नोटिफिकेशन का लक्ष्य 5.5 लाख था जिसके सापेक्ष प्रदेश ने 6.33 लाख मरीज खोजे थे।
यहां प्राइवेट नोटिफिकेशन बढ़ने की जरूरत
टीबी उन्मूलन के लिए प्रदेश में ज्यादातर जनपदों में प्राइवेट डाक्टर सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं लेकिन कुछ जनपद ऐसे भी हैं जहां प्राइवेट नोटिफिकेशन बहुत कम हो रहा है। जैसे श्रावस्ती में इस साल सिर्फ 38 प्राइवेट नोटिफिकेशन हुए हैं। इसके अलावा महोबा में सिर्फ 215, संतरवीदास नगर में 271, हमीरपुर में 277, कन्नौज में 293, सोनभद्र में 297, चित्रकूट में 312, सुलतानपुर में 370, अमेठी में 392 और कानपुर देहात में सिर्फ 395 प्राइवेट नोटिफिकेशन हुए हैं। इन जनपदों में प्राइवेट डाक्टरों की प्रतिभागिता बढ़े जाने की जरूरत है।
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