हेल्थ
हृदय रोगियों के लिए ‘तनाव प्रबंध’ जरूरी
नई दिल्ली| हृदय रोगियों के लिए तनाव प्रबंध कार्यक्रम जरूरी है। जिन मरीजों को कार्डियोवस्कुलर का खतरा हो और उनको मनोसामाजिक तनाव हो तो उनको एक तनाव प्रबंध कार्यक्रम अपनाना चाहिए। यह कहना है, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) मनोनीत अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल का। उन्होंने कहा कि सामान्य तरीके से तनाव प्रबंधन का लक्ष्य व्यक्ति में माहौल के हिसाब से तनाव को कम करना होता है और इससे तनाव से बेहतर तरीके से लड़ा जाता है।
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि तनाव प्रबंध तकनीक में मांसपेशियों को राहत, शांत माहौल, पैसिव एटीट्यूड और गहरी सांस लेने वाली चीजों को अपनाया जाता है। शारीरिक बदलाव में ऑक्सीजन ग्रहण करने में कमी, दिल की धड़कन में कमी और सांस संबंधी दर में कमी व पैसिव एटीट्यूड और मस्कुलर रीलैक्सेशन को अपनाया जाता है। इस तरह के बदलाव करने से नर्वस सिस्टम एक्टिविटी में कमी आती है।
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि अन्य मापकों में जैसे कि रीलेक्सेशन की तकनीक और बायोफीडबैक से ब्लड प्रेशर में कमी हो जाती है। व्यवहार में बदलाव के कार्यक्रम अपनाने से और धूम्रपान त्यागने से भी इसमें कमी होती है। इसके अलावा दवा लेने से भी तनाव संबंधी कार्यक्रम में बेहतर परिणाम सामने आते हैं।
उन्होंने कहा कि ड्रग्स जैसे कि बीटा ब्लॉकर्स और साइकोसोशियल इंटरवेनशन के लिए ली जाने वाली दवाओं से तनाव के कुछ रूपों में फिजियोलॉजिक रिस्पांस की कमी हो जाती है।
लाइफ स्टाइल
साइलेंट किलर है हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी, इन लक्षणों से होती है पहचान
नई दिल्ली। हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी एक ऐसी समस्या है, जो धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है इसीलिए इसे एक साइलेंट किलर कहा जाता है। ये बीमारी शरीर पर कुछ संकेत देती है, जिसे अगर नजरअंदाज किया गया, तो स्थिति हाथ से निकल भी सकती है।
हालांकि, पिछले कुछ सालों में कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी है और सावधानियां भी बरती जाने लगी हैं। ऐसा नहीं है कि कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए पूरी तरह से नुकसानदायक है। अगर यह सही मात्रा में हो, तो शरीर को फंक्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चलिए जानते हैं इसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।
कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो क्या होगा?
जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dL से अधिक हो जाती है, तो इसे हाई कोलेस्ट्रॉल की श्रेणी में गिना जाता है और डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए डाइट से लेकर जीवन शैली तक में कई बदलाव करने की सलाह देते हैं। अगर लंबे समय तक खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बनी रहे, तो यह हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।
हाई कोलेस्ट्रॉल को “साइलेंट किलर” क्यों कहते हैं?
हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेंट किलर इसलिए कहते हैं क्योंकि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर इसका काफी खतरनाक असर पड़ता है, जिसकी पहचान काफी देर से होती है। इसके शुरुआती लक्षण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर जाते हैं और यहीं से यह बढ़ना शुरू हो जाते हैं। आखिर में इसकी पहचान तब होती है जब शरीर में इसके उलटे परिणाम नजर आने लगते हैं या फिर कोई डैमेज होने लगता है।
शरीर पर दिखने वाले कोलेस्ट्रॉल के लक्षणों को कैसे पहचानें?
हाई कोलेस्ट्रॉल के दौरान पैरों में कुछ महत्वपूर्ण लक्षण नजर आने लगते हैं, जिसे क्लाउडिकेशन कहते हैं। इस दौरान पैरों की मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन और थकान महसूस होता है। ऐसा अक्सर कुछ दूर चलने के बाद होता है और आराम करने के साथ ही ठीक हो जाता है।
क्लाउडिकेशन का दर्द ज्यादातर पिंडिलियों, जांघों, कूल्हे और पैरों में महसूस होता है। वहीं समय के साथ यह दर्द गंभीर होता चला जाता है। इसके अलावा पैरों का ठंडा पड़ना भी इसके लक्षणों में से एक है।
गर्मी के मौसम में जब तापमान काफी ज्यादा हो, ऐसे समय में ठंड लगना एक संकेत है कि व्यक्ति पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से जूझ रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि यह स्थिति शुरुआत में परेशान न करे, लेकिन अगर लंबे समय तक यह स्थिती बनी रहती है तो इलाज में देरी न करें और समय रहते डॉक्टर से इसकी जांच करवाएं।
हाई कोलेस्ट्रॉल के अन्य लक्षणों में से एक पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बदलाव आना भी शामिल है। इस दौरान ब्लड वेसेल्स में प्लाक जमा होने लगते हैं, जिसके कारण ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है।
ऐसे में जब शरीर के कुछ हिस्सों में कम मात्रा में खून का दौड़ा होता है, तो वहां कि त्वचा की रंगत और बनावट के अलावा शरीर के उस हिस्से का फंक्शन भी प्रभावित होता है।
इसलिए, अगर आपको अपने पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बिना कारण कोई बदलाव नजर आए, तो हाई कोलेस्ट्रॉल इसका कारण हो सकता है।
डिस्क्लेमर: उक्त लेख सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।
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