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एनडीटीवी इंडिया प्रतिबंध पर घिरी सरकार, तानाशाही के लगे आरोप

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ndtv indiaचेन्नई/नई दिल्ली। हिंदी समाचार चैनल एनडीटीवी इंडिया पर एक दिन के लिए लगाए गए प्रतिबंध को लेकर चारों ओर से हो रही आलोचनाओं को सरकार ने ‘राजनीति प्रेरित’ कहकर खारिज करने की कोशिश की, लेकिन सरकार के इस बयान पर नया विवाद खड़ा हो गया। वहीं चारों ओर से हो रही आलोचनाओं में केंद्र सरकार की इस कार्रवाई को ‘तानाशाही’ और ‘आपातकाल लगाने’ जैसा बताया जा रहा है।

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने शनिवार को चेन्नई में पत्रकारों से कहा, मैं इस बात से खुश हूं कि देश के लोगों ने एनडीटीवी इंडिया पर प्रतिबंध लगाने के फैसले का व्यापक रूप से समर्थन किया है। नायडू ने कहा कि राजग सरकार मीडिया की स्वतंत्रता की सर्वाधिक हिमायती है और कभी मीडिया पर अतिक्रमण की इजाजत नहीं देगी। नायडू ने कहा, हमेशा एक छोटा सा तबका ऐसे लोगों का होता है, जो देशहित में सरकार द्वारा किए जाने वाले सभी कार्यो की ओलचना करते हैं।

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एनडीटीवी इंडिया को आठ नवंबर की आधी रात से नौ नवंबर की आधी रात तक प्रसारण बंद करने का निर्देश दिया है। मंत्रालय ने भारतीय वायुसेना के पठानकोट अड्डे पर दो जनवरी को हुए आतंकी हमले की खबरों के प्रसारण में मानदंडों के कथित उल्लंघन को लेकर यह कार्रवाई की है।
नायडू कहा, इससे पहले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार आपत्तिजनक दृश्यों के प्रसारण को लेकर 21 बार प्रतिबंध लगा चुकी है। क्या दिन के उजाले में आतंक रोधी कार्रवाई की खबर का सीधा प्रसारण करना देश के लिए अधिक गंभीर खतरा नहीं है? लोग जानते हैं कि दोनों में से अधिक गंभीर खतरा कौन है?

एनडीटीवी इंडिया के साथ एकजुटता दिखाते हुए एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, ब्राडकास्टर्स एसोसिएशन, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन, इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन और ऑल इंडिया न्यूज पेपर्स एडिटर्स कॉन्फ्रेंस ने सरकार के निर्णय की आलोचना की है।

वहीं नायडू ने कहा कि एनडीटीवी इंडिया पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किसी नए बनाए गए नियम के तहत नहीं लिया गया है, बल्कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की पिछली सरकार द्वारा मुंबई में 2008 में हुए 26/11 आतंकवादी हमलों के बाद निर्धारित नियमों के तहत लिया गया है। नायडू ने कहा कि एडिटर्स गिल्ड ने इस फैसले की आलोचना करने में पूरे एक दिन का समय लिया। नायडू ने इससे पहले कई ट्वीट कर सरकार के फैसले का बचाव किया।

इस बीच विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने समाचार चैनल पर लगाए गए प्रतिबंध की तीखी आलोचना की है, जिसमें जनता दल यूनाइटेड के नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के लालू प्रसाद यादव भी शामिल हैं। बिहार के सीएए नीतीश ने मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बताते हुए कहा कि केंद्र सरकार का समाचार चैनल एनडीटीवी इंडिया पर प्रतिबंध लगाने का फैसला निंदनीय है और मीडिया की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने जैसा है। नीतीश ने कहा, भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के महत्व से हम सभी अवगत हैं। मीडिया लोगों की आवाज उठाने में सहायक बनकर अधिकार एवं शक्ति के दुरुपयोग को रोकती है। केंद्र सरकार द्वारा एनडीटीवी इंडिया पर प्रतिबंध लगाना निंदनीय है। लालू प्रसाद ने भी एनडीटीवी इंडिया पर प्रतिबंध लगाए जाने की निंदा करते हुए मौजूदा हालात को आपातकाल जैसा बताया है।

माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने भी शनिवार को एनडीटीवी इंडिया पर एक दिन का प्रतिबंध लगाने के केंद्र सरकार के फैसले की निंदा की और इसे तुरंत वापस लेने का आग्रह किया। पार्टी पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा, माकपा ²ढ़ता से हिंदी समाचार चैनल, एनडीटीवी इंडिया पर केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाने के आदेश की निंदा करता है। नौ नवंबर को इसके प्रसारण पर प्रतिबंध है। यह प्रेस की आजादी का दमन है।

माकपा ने कहा कि इससे मोदी सरकार के अधिनायकवादी रवैये का पता चलता है। माकपा ने चैनल पर लगाई रोक को तुरंत वापस लेने की मांग की है और सरकार इस बात का आश्वासन मांगा है कि भविष्य में इस तरह की मनमाना कार्रवाई वह नहीं करेगी।

जद (यू) के नेता के. सी. त्यागी ने भी लगाए गए प्रतिबंध को तुरंत वापस लेने की मांग की है। उन्होंने कहा, केंद्र सरकार की यह कार्रवाई मुझे आपातकाल के दिनों की याद दिला रहा है। द्रविड़ मुनेत्र कडग़म (द्रमुक) के अध्यक्ष एम. करुणानिधि ने वहीं भाजपा सरकार की इस कार्रवाई को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन बताया है।

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नेशनल

जम्मू-कश्मीर: आतंकियों ने सेना के दो जवानों का किया अपहरण, एक भागने में कामयाब, दूसरे का गोलियों से छलनी शव मिला

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नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग के जंगली इलाके में आतंकियों ने सेना के 2 जवानों का अपहरण कर लिया। हालांकि, एक जवान आतंकियों के चंगुल से छूटकर वापस आने में कामयाब हो गया है, लेकिन दूसरे की बेरहमी से ह्त्या कर दी गई है। उसका गोलियों से छलनी शव बरामद हुआ है।

प्रारंभिक जानकारी के अनुसार दोनों जवान प्रादेशिक सेना की 161वीं इकाई के हैं। 8 अक्टूबर को शुरू किए गए आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान जंगली इलाके से उन्हें अगवा किया गया। इनमें से एक जवान भागने में सफल रहा। उसे दो गोली लगी है। बुधवार सुबह दूसरे जवान का शव मिला। उसके शरीर पर गोलियों के कई निशान हैं।

घायल जवान को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उसकी स्थिति स्टेबल है। आतंकियों की तलाश के लिए पूरे इलाके की घेराबंदी की गई है। बड़े स्तर पर सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है।

बता दें कि यह घटना ऐसे समय पर हुई है जब 8 अक्टूबर को ही जम्मू-कश्मीर में मतगणना संपन्न हुई है और अब यहां नई सरकार बनने जा रही है। नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन यहां सरकार बनाने जा रही है। अब राज्य सरकार के साथ ही केंद्र सरकार की भी चुनौती बढ़ जाएगी। सफल चुनाव आयोजन से पाकिस्तान और पाक परस्त संगठन खार खाए बैठे हैं। इसके बाद अब यहां आतंकी गतिविधियों में भारी इजाफा होने की आशंका है।

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