प्रादेशिक
चुनाव रण : तिंदवारी में ‘साख’ पर होगा मतदान
बांदा। उत्तर प्रदेश में बांदा जिले की तिंदवारी विधानसभा सीट पर इस बार फिर किसी दल के समर्थन या विरोध के बजाय उम्मीदवार की ‘साख’ पर चुनाव होने के आसार हैं। 1974 से वजूद में आई यह सीट ने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का प्रतिनिधित्व देख चुकी है। यहां से चार बार कांग्रेस, तीन बार बसपा और दो बार सपा के विधायक चुने जा चुके हैं।
दलित, क्षत्रिय और निषाद बहुल इस सीट पर सबसे पहले 1974 से अब तक हुए विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो बांदा सदर सीट से अलग किए जाने के बाद 1974 में पहली बार भारतीय जनसंघ से जगन्नाथ सिंह चुनाव जीते थे, इसके बाद 1977 में जनता पार्टी से जगन्नाथ सिंह जीते। 1980 में कांग्रेस के शिवप्रताप सिंह, 1981 में हुए उप चुनाव में मुख्यमंत्री रहते वीपी सिंह चुनाव जीते।
वर्ष 1985 में कांग्रेस के अर्जुन सिंह, 1989 में जनता दल के चंद्रभान सिंह उर्फ चंदा भइया चुनाव जीते। 1991 और 1993 के चुनाव में बसपा के विशंभर प्रसाद निषाद, 1996 में बसपा के महेंद्र प्रसाद निषाद और 2002 व 2007 में सपा के विशंभर प्रसाद निषाद चुनाव जीते थे। 2012 के चुनाव में कांग्रेस के दलजीत सिंह 61,037 मत हासिल कर सपा के विशंभर प्रसाद निषाद को 14,945 मतों से हराया, यहां सपा उम्मीदवार को 46,092 मत मिले थे। बसपा के अच्छेलाल निषाद को 37,642 और भाजपा के बलराम सिंह को महज 8,771 मत ही मिल पाए थे।
इस बार 2017 के चुनाव में यहां कुल मतदाताओं की संख्या 3,08,118 है, जिनमें 1,37,533 महिलाएं और 1,70,576 पुरुष मतदाता दर्ज हैं। एक अनुमान के अनुसार, यहां दलित 61 हजार, क्षत्रिय 55 हजार, निषाद 52 हजार, ब्राह्मण 23 हजार, मुस्लिम 20 हजार, यादव 19 हजार, कुम्हार 17 हजार, कुशवाहा 12 हजार, वैश्य 11 हजार, आरख 09 हजार, लोधी 08 हजार, नाई 05 हजार, साहू 04 हजार, कायस्थ ढाई हजार के अलावा 17 हजार के आस-पास अन्य जाति के मतदाता हैं। 2017 के चुनाव में यह सीट सपा-कांग्रेस गठबंधन में कांग्रेस के खाते में गई है और कांग्रेस के निवर्तमान विधायक दलजीत सिंह उम्मीदवार है। भाजपा ने ‘बाहरी’ बृजेश प्रजापति को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। जबकि बसपा हमीरपुर जिले के कदौरा गांव के निवासी जगदीश प्रजापति को बहुत समय पहले से अपना उम्मीदवार घोषित कर रखा है।
मुख्यमंत्री बनने के बाद वीपी सिंह 1981 में उप चुनाव लडक़र यहां से विधायक बने थे और यहीं से जनता दल से चुनाव लडऩे के बाद सांसद बन वह प्रधानसमंत्री भी बने थे। तब यह विधानसभा सीट फतेहपुर लोकसभा सीट से संबद्ध थी, अब 2012 के परसीमन में इसे हमीरपुर लोकसभा सीट से जोड़ा गया है।
यहां कभी जातीय या राजनीतिक बयार नहीं चली, हमेशा मतदाताओं ने उम्मीदवार की ‘साख’ पर मतदान किया है। इस बार भी साख परख कर ही मतदान के कयास लगाए जा रहे हैं। उम्मीदवार की साख की बदौलत ही एक विधायक भारतीय जनसंघ से, एक विधायक जनता पार्टी, चार कांग्रेस, तीन बसपा, एक जनता दल और दो विधायक समाजवादी पार्टी से चुने जा चुके हैं।
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के जिलाध्यक्ष प्रदीप वर्मा कहते हैं कि बसपा उम्मीदवार पिछले एक साल से ‘डोर टू डोर’ मतदाताओं के संपर्क में है और उनकी साख में अब तक कोई बट्टा नहीं लगा है, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार के खिलाफ अवैध बालू खनन के सिलसिले में एनजीटी में मामला चल रहा है।’
भाजपा के एक जिला स्तरीय पदाधिकारी का कहना है कि पार्टी ने बहुत सोंच-समझ कर बृजेश प्रजापति की उम्मीदवारी तय की है, नाराज कार्यकतार्ओं को समझा लिया जाएगा।
यहां सपा कार्यकर्ता अपने पार्टी संरक्षक मुलायम सिंह यादव के उस बयान से संशय में हैं, जिसमें उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लडऩे और उन्हें हराने के लिए कहा है। हालांकि सपा जिलाध्यक्ष शमीम बांदवी का कहना है कि सपा और कांग्रेस के कार्यकर्ता आपसी सामंजस्य बनाकर गठबंधन उम्मीदवार के चुनाव प्रचार में जुटे हैं और सपा समर्थक मतदाता कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में ही मतदान करेंगे।
राजनीतिक विश्लेषक और बुजुर्ग अधिवक्ता रणवीर सिंह चौहान कहते हैं कि ‘भाजपा को ‘बाहरी’ (बसपा छोडक़र आए) उम्मीदवार उतारने से उसे काफी नुकसान हो सकता है, क्योंकि स्थानीय भाजपा नेता ही ‘बाहरी’ उम्मीदवार का विरोध कर रहे हैं। वैसे भी चुनाव के लिहाज से यहां ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या काफी कम है और पिछले चुनाव में भाजपा से क्षत्रिय उम्मीदवार होने के बावजूद भी क्षत्रिय कौम के ज्यादातर मतदाता कांग्रेस के दलजीत सिंह के पक्ष में चले गए थे।
वह कहते हैं कि यहां सपा समर्थक विशेषकर निषाद मतदाता कांग्रेस न समेट पाई तो अबकी बार बसपा को भी कमजोर नहीं समझना चाहिए।
फिलहाल, बांदा जिले की तिंदवारी सीट में एक बार फिर त्रिकोणीय संघर्ष है और उम्मीदवार की ‘साख’ पर विधानसभा का चुनाव टिका हुआ है, अब देखना यह होगा कि भाजपा के बृजेश प्रजापति, बसपा के जगदीश प्रजापति और सपा-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार दलजीत सिंह में से किस उम्मीदवार की ‘साख’ मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल होती है।
उत्तर प्रदेश
संभल हिंसा: 2500 लोगों पर केस, शहर में बाहरी की एंट्री पर रोक, इंटरनेट कल तक बंद
संभल। संभल में जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान रविवार को भड़की हिंसा के बाद सोमवार सुबह से पूरे शहर में तनाव का माहौल है। हिंसा प्रभावित इलाकों में कर्फ्यू जैसे हालात हैं। प्रशासन ने स्थिति नियंत्रण में लाने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। डीआईजी मुनिराज जी के नेतृत्व में पुलिस बल ने हिंसा प्रभावित इलाकों में फ्लैग मार्च किया। शहर के सभी प्रमुख चौराहों पर बैरिकेडिंग की गई है, और प्रवेश मार्गों पर पुलिस तैनात है। पुलिस ने अभी तक 25 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। इसमें दो महिलाएं भी शामिल हैं। इंटरनेट अब कल तक बंद रहेगा।
इसके अलावा कोई भी बाहरी व्यक्ति, अन्य सामाजिक संगठन अथवा जनप्रतिनिधि जनपद संभल की सीमा में सक्षम अधिकारी की अनुमति के बिना एक दिसंबर तक प्रवेश नहीं करेगा। ये आदेश तत्काल प्रभाव से लागू होगा। इस आदेश का उल्लंघन भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 223 के अंतर्गत दंडनीय अपराध होगा। इसके अलावा संभल और आसपास के क्षेत्रों में इंटरनेट बंद कर दिया गया है। साथ ही स्कूलों को बंद करने का भी आदेश जारी किया गया है। हिंसा मामले में 25 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इनके साथ 2500 लोगों पर भी केस दर्ज किया गया है। साथ ही पुलिस की तरफ से दुकानों को बंद नहीं किया गया है।
इसके साथ ही संभल पुलिस ने समाजवादी पार्टी के सांसद जियाउर्रहमान बर्क और विधायक नवाब इकबाल महमूद के बेटे सुहैल इकबाल पर एफआईआर दर्ज की है। दोनों नेताओं पर संभल में हिंसा भड़काने के मामले में एफआईआर दर्ज की गई है। उल्लेखनीय है कि रविवार (24 नवंबर) की सुबह संभल की शाही जामा मस्जिद का सर्वेक्षण किया गया था। इस दौरान मस्जिद के पास अराजक तत्वों ने सर्वेक्षण टीम पर पथराव कर दिया। देखते ही देखते माहौल बिगड़ता चला गया। पुलिस ने हालात को काबू करने के लिए आंसू गैसे के गोले छोड़े और अराजक तत्वों को चेतावनी भी दी। हालांकि, हिंसा के दौरान चार लोगों की मौत हो गई।
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