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मीनोपॉज में बरतें खास सावधानी

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मीनोपॉज में बरतें खास सावधानी

नई दिल्ली | मीनोपॉज (रजोनिवृत्ति) की शुरुआत या पेरीमीनोपॉज अनियमित मासिक धर्म और अंतिम मासिक धर्म के बीच की अवधि होती है। इस दौरान जनन प्रक्रिया के आवश्यक हार्मोन में बदलाव होते हैं, जिससे मासिक धर्म में अनियमितता, प्रजनन क्षमता में कमी, वसोमोटर के लक्षण एवं अनिद्रा जैसी समस्या हो सकती है। एक शोध में पेरीमीनोपॉज सिंड्रोम और मूड डिसआर्डर की गंभीरता से गुजर रही महिलाओं पर पड़ने वाले प्रभाव और खतरों का अध्ययन किया गया है। इन दोनों से उम्र, कब्ज, मेनुस्ट्रेशन, व्यक्तित्व की खासियतें और कामकाजी स्तर बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। इसलिए इस हालात को गंभीरता से संभालना आवश्यक होता है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने इस बारे में कहा, “पेरीमीनोपॉज के लक्षण हर किसी में अलग होते हैं, जिनमें अनियिमित अत्यधिक रक्तस्राव, अनिद्रा, रात को पसीना आना, खराब पीएमएस, माइग्रेन, वेजीनल ड्राइनेस और पेट का मोटापा बढ़ना आदि समस्याएं होती हैं। इसके अलावा महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य में भी बदलाव आते हैं।”

उन्होंने कहा, “हार्मोन में बदलाव से बेचैनी, अवसाद, चिड़चिड़ापन और तेजी से मूड बदलने जैसे लक्षण हो सकते हैं। कई महिलाओं को सीने में दर्द या धुड़की लगना आदि समस्याएं होती हैं। ऐसा लगातार होने पर डॉक्टर से राय लेना आवश्यक होता है।”

डॉ. अग्रवाल कहते हैं, “सेहतमंद खानपान और अच्छी नींद इसका सबसे बेहतर हल है। गंभीर मामलों में गोली, स्किन पैच, जैल या क्रीम के रूप में एस्ट्रोजिन थैरेपी से इलाज किया जाता है। आम तौर पर पेरीमेनोपॉजल और मेनूपॉजल हॉट फ्लैशेस और रात को आने वाले पसीने के इलाज के लिए इनका प्रयोग किया जाता है। उचित तरीके से हड्डियों के नुकसान को रोकने में एस्ट्रोजन मदद करता है।”

उन्होंने बताया कि योग और सांस की क्रियाएं कम खतरे वाले इलाज हैं, जो इन स्थितियों में तनाव घटाते हैं और इस बीमारी को रोकने में मदद करते हैं। इन स्थितियों में हर्बल और डाईट्री सप्लीमेंट लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए।”

इन बातों पर करें गौर :

– हर रोज 30 मिनट तक व्यायाम करें। हार्मोन असंतुलन में यह अवसाद से राहत देने में मददगार होगा।

– अगर धूम्रपान करते हैं तो छोड़ दें, क्योंकि इससे रक्तचाप बढ़ता है और दिल की समस्याओं को प्रोत्साहित करता है।

– हर रोज अच्छी नींद लें।

– संतुलित वजन बनाए रखें।

– आहार में कैल्शियम की उचित मात्रा लें। केला, पालक और नट्स काफी अच्छे विकल्प हैं।

– कोई भी सप्लीमेंट या मल्टीविटामिन लेने से पहले डॉक्टर की सलाह लें।

लाइफ स्टाइल

साइलेंट किलर है हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी, इन लक्षणों से होती है पहचान  

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नई दिल्ली। हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी एक ऐसी समस्या है, जो धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है इसीलिए इसे एक साइलेंट किलर कहा जाता है। ये बीमारी शरीर पर कुछ संकेत देती है, जिसे अगर नजरअंदाज किया गया, तो स्थिति हाथ से निकल भी सकती है।

हालांकि, पिछले कुछ सालों में कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी है और सावधानियां भी बरती जाने लगी हैं। ऐसा नहीं है कि कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए पूरी तरह से नुकसानदायक है। अगर यह सही मात्रा में हो, तो शरीर को फंक्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चलिए जानते हैं इसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।

कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो क्या होगा?

जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dL से अधिक हो जाती है, तो इसे हाई कोलेस्ट्रॉल की श्रेणी में गिना जाता है और डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए डाइट से लेकर जीवन शैली तक में कई बदलाव करने की सलाह देते हैं। अगर लंबे समय तक खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बनी रहे, तो यह हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।

हाई कोलेस्ट्रॉल को “साइलेंट किलर” क्यों कहते हैं?

हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेंट किलर इसलिए कहते हैं क्योंकि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर इसका काफी खतरनाक असर पड़ता है, जिसकी पहचान काफी देर से होती है। इसके शुरुआती लक्षण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर जाते हैं और यहीं से यह बढ़ना शुरू हो जाते हैं। आखिर में इसकी पहचान तब होती है जब शरीर में इसके उलटे परिणाम नजर आने लगते हैं या फिर कोई डैमेज होने लगता है।

शरीर पर दिखने वाले कोलेस्ट्रॉल के लक्षणों को कैसे पहचानें?

हाई कोलेस्ट्रॉल के दौरान पैरों में कुछ महत्वपूर्ण लक्षण नजर आने लगते हैं, जिसे क्लाउडिकेशन कहते हैं। इस दौरान पैरों की मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन और थकान महसूस होता है। ऐसा अक्सर कुछ दूर चलने के बाद होता है और आराम करने के साथ ही ठीक हो जाता है।

क्लाउडिकेशन का दर्द ज्यादातर पिंडिलियों, जांघों, कूल्हे और पैरों में महसूस होता है। वहीं समय के साथ यह दर्द गंभीर होता चला जाता है। इसके अलावा पैरों का ठंडा पड़ना भी इसके लक्षणों में से एक है।

गर्मी के मौसम में जब तापमान काफी ज्यादा हो, ऐसे समय में ठंड लगना एक संकेत है कि व्यक्ति पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से जूझ रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि यह स्थिति शुरुआत में परेशान न करे, लेकिन अगर लंबे समय तक यह स्थिती बनी रहती है तो इलाज में देरी न करें और समय रहते डॉक्टर से इसकी जांच करवाएं।

हाई कोलेस्ट्रॉल के अन्य लक्षणों में से एक पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बदलाव आना भी शामिल है। इस दौरान ब्लड वेसेल्स में प्लाक जमा होने लगते हैं, जिसके कारण ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है।

ऐसे में जब शरीर के कुछ हिस्सों में कम मात्रा में खून का दौड़ा होता है, तो वहां कि त्वचा की रंगत और बनावट के अलावा शरीर के उस हिस्से का फंक्शन भी प्रभावित होता है।

इसलिए, अगर आपको अपने पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बिना कारण कोई बदलाव नजर आए, तो हाई कोलेस्ट्रॉल इसका कारण हो सकता है।

डिस्क्लेमर: उक्त लेख सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।

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