प्रादेशिक
बिहारः राजनैतिक मौसम के बदलते रंगों के बीच बेचारी जनता
पटना। आज सुबह खबर आई कि मौसम विज्ञानियों के अनुसार बिहार में मौसम साफ रहेगा, लेकिन बिहार के राजनैतिक मौसम के बारे में कोई भी अनुमान नहीं लगा पा रहा था। दो-तीन दिनों पहले ही बिहार के राजनीतिक बादलों से सौगातों की बरसात हुई। सभी को कुछ न कुछ देने का वायदा किया गया। अब यह वायदा वास्तविकता के धरातल पर कितना खरा उतरता है यह देखने वाली बात होगी। वैसे भी चुनावी वायदों को पूरा न कर पाने पर उसे जुमला बता देना भारतीय राजनेताओं की पहचान बन चुका है।
बिहार की वर्तमान राजनैतिक स्थिति पर निगाह डालें तो एक बात निकलकर सामने आती है कि मई 2014 में मिले झटके से अभी तक प्रदेश की सत्तारूढ़ जदयू सरकार उबर नहीं पाई है। पिछले लगभग दस सालों से बिहार के विकास पुरूष बने नीतीश कुमार के लिए पिछला लोकसभा चुनाव राजनैतिक हताशा के रूप में सामने आया।
तब से लेकर आज तक नीतीश कुमार के राजनीतिक निर्णय सवालों के घेरे में हैं। जिन लालू यादव के जंगलराज के विरूद्ध वह सत्ता में आए थे उनसे ही कथित सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता में आने से रोकने के नाम पर हाथ मिला लिया। जनता ने जब उन्हीं कथित सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता सौंप दी तो नैतिकता ने नाम पर कुर्बान होने वाले अंदाज में त्यागपत्र देकर महादलित जाति के जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया।
अब जीतनराम मांझी ने जब रिमोट से चलने से इंकार कर दिया तो फिर नया नाटक शुरू। सवाल यह उठता है कि इन सब के बीच बिहार की जनता का क्या होगा? विकास के नाम पर क्या सिर्फ इन्हें चुनावी झुनझुनों से बहलाया जाता रहेगा? एक सवाल और भी है कि बिहार को संवैधानिक संकट में ढकेलने के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है? आज बिहार में यही पता नहीं चलता है कि सत्ता में कौन है और विपक्ष में कौन?
वास्तविकता यह है कि बिहार में फिलहाल जो संकट टला हुआ नजर आ रहा है वह सिर्फ भ्रम है। पिक्चर तो अभी बाकी है। चुनावों में छह महीनों से अधिक का समय होने के बावजूद प्रशासनिक कार्य ठप्प पड़े हैं क्योंकि कोई एक कुछ घोषणा करके जाएगा तो दूसरा आने वाला उसे यह कहकर खारिज कर देगा कि यह तो सरकारी खजाने पर बोझ डालने वाला फैसला था। इन सबके के बीच बेचारी जनता का वही होगा जो अभी तक होता आया है- शोषण
उत्तर प्रदेश
संभल हिंसा: 2500 लोगों पर केस, शहर में बाहरी की एंट्री पर रोक, इंटरनेट कल तक बंद
संभल। संभल में जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान रविवार को भड़की हिंसा के बाद सोमवार सुबह से पूरे शहर में तनाव का माहौल है। हिंसा प्रभावित इलाकों में कर्फ्यू जैसे हालात हैं। प्रशासन ने स्थिति नियंत्रण में लाने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। डीआईजी मुनिराज जी के नेतृत्व में पुलिस बल ने हिंसा प्रभावित इलाकों में फ्लैग मार्च किया। शहर के सभी प्रमुख चौराहों पर बैरिकेडिंग की गई है, और प्रवेश मार्गों पर पुलिस तैनात है। पुलिस ने अभी तक 25 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। इसमें दो महिलाएं भी शामिल हैं। इंटरनेट अब कल तक बंद रहेगा।
इसके अलावा कोई भी बाहरी व्यक्ति, अन्य सामाजिक संगठन अथवा जनप्रतिनिधि जनपद संभल की सीमा में सक्षम अधिकारी की अनुमति के बिना एक दिसंबर तक प्रवेश नहीं करेगा। ये आदेश तत्काल प्रभाव से लागू होगा। इस आदेश का उल्लंघन भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 223 के अंतर्गत दंडनीय अपराध होगा। इसके अलावा संभल और आसपास के क्षेत्रों में इंटरनेट बंद कर दिया गया है। साथ ही स्कूलों को बंद करने का भी आदेश जारी किया गया है। हिंसा मामले में 25 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इनके साथ 2500 लोगों पर भी केस दर्ज किया गया है। साथ ही पुलिस की तरफ से दुकानों को बंद नहीं किया गया है।
इसके साथ ही संभल पुलिस ने समाजवादी पार्टी के सांसद जियाउर्रहमान बर्क और विधायक नवाब इकबाल महमूद के बेटे सुहैल इकबाल पर एफआईआर दर्ज की है। दोनों नेताओं पर संभल में हिंसा भड़काने के मामले में एफआईआर दर्ज की गई है। उल्लेखनीय है कि रविवार (24 नवंबर) की सुबह संभल की शाही जामा मस्जिद का सर्वेक्षण किया गया था। इस दौरान मस्जिद के पास अराजक तत्वों ने सर्वेक्षण टीम पर पथराव कर दिया। देखते ही देखते माहौल बिगड़ता चला गया। पुलिस ने हालात को काबू करने के लिए आंसू गैसे के गोले छोड़े और अराजक तत्वों को चेतावनी भी दी। हालांकि, हिंसा के दौरान चार लोगों की मौत हो गई।
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