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बुंदेलखंड के युवाओं ने परिवार की भूख मिटाने छोड़ा गांव

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छतरपुर, 22 दिसंबर (आईएएनएस)| आदिवासी पप्पू (23) के गांव में पानी का संकट अभी से गहराने लगा है, कुएं सूख चले हैं, खेती की जमीन खाली पड़ी है। साथ ही गांव और आसपास कहीं काम नहीं है। इसलिए वह अपने कुछ युवा साथियों के साथ अपने और परिवार के अन्य सदस्यों की भूख मिटाने का इंतजाम करने दिल्ली जा रहा है।

पप्पू बुंदेलखंड के छतरपुर जिले की बिजावर तहसील के अमरपुर गांव का निवासी है। वह बताता है, उसने कभी ऐसा सूखा नहीं देखा, मौसम ठंड का है और पीने के लिए पानी की समस्या खड़ी होने लगी है। कुएं सूख चले हैं, तालाब में पानी मुश्किल से जानवरों के पीने लायक बचा है।

अमरपुर का ही वीरेंद्र पटेल (25) भी काम की तलाश में दिल्ली गया है। वीरेंद्र कहता है, पहले तो गांव में ही काम मिल जाता था, जिसके चलते परिवार का जीवन चलता रहता था। इस बार तो गांव में भी काम नहीं है और अगर काम है तो मजदूरी पाने के लिए कई-कई माह तक भटकना पड़ता है। उसके गांव से लगभग 25 फीसदी आबादी काम की तलाश में पलायन कर चुकी है। गांव में रहेंगे तो भूखों मरने की नौबत आ जाएगी। माता-पिता को भी रोटी मिल जाए, इसलिए दिल्ली जा रहा हूं।

खजुराहो रेलवे स्टेशन से निजामुद्दीन जाने वाली संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से दिल्ली जा रहे खजुराहो के राकेश अनुरागी (24) कहते हैं कि यहां काम है नहीं, दिन भर फालतू रहें, इससे अच्छा है कि दिल्ली जाएं। वहां कम से कम कुछ तो काम मिल जाएगा। जो पैसा बचेगा उससे परिवार की मदद हो जाएगी। यहां मनरेगा में काम करो तो पैसा कई माह बाद मिलता है। तब तक तो भूखों मरने की नौबत आ जाएगी।

बुंदेलखंड वह इलाका है, जिसमें मध्यप्रदेश के छह जिले छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, सागर व दतिया उत्तर प्रदेश के सात जिलों झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा, कर्वी (चित्रकूट) आते हैं। कुल मिलाकर 13 जिलों से बुंदेलखंड बनता है।

इस बार मानसून ने पूरे बुंदेलखंड के साथ दगा किया है। एक तरफ मानसून ने साथ नहीं दिया तो दूसरी ओर सरकारों की ओर से वह प्रयास नहीं किए गए, जिनके जरिए बरसे पानी को रोका जा सकता। वैसे भी यह इलाका बीते तीन सालों से सूखे की मार झेल रहा है।

सामाजिक कार्यकर्ता पवन राजावत कहते हैं, पूरे बुंदेलखंड की हालत खराब है। इस इलाके की पहचान गरीबी, सूखा, पलायन बन चुकी है, मगर इस बार के हालात तो और बुरे हैं। अब डर यह सताने लगा है कि कहीं यह इलाका भुखमरी के क्षेत्र के तौर पर न पहचाना जाने लगे। सबसे बुरा हाल उन गांव का है, जहां तालाब थे मगर खत्म हो चुके हैं, जलस्रोत सूख गए हैं। खेती के कोई आसार नहीं है। हर तरफ खेत मैदान में बदले हुए हैं।

राजनगर के डहर्रा गांव के काली चरण का परिवार कभी जमीन का मालिक हुआ करता था, मगर अब नहीं है, क्योंकि उनकी जमीन बांध निर्माण के लिए अधिग्रहित की जा चुकी है। वह बताता है, जमीन अधिग्रहण पर उसे मुआवजा इतना मिला कि एक मकान भी नहीं बन सकता। वह अब भूमिहीन हो गया है। गांव में काम है नहीं, परदेस न जाएं तो क्या करें। नेता और सरकार तब आती है जब चुनाव होते हैं।

बुंदेलखंड की पहचान कभी पानीदार इलाके के तौर पर हुआ करती थी। यहां 20,000 से ज्यादा तालाब थे, मगर आज यह आंकड़ा 7,000 के आसपास सिमट कर रह गया है। पानी के अभाव में न तो खेती हो पा रही है और न ही दूसरे धंधे। इसका नतीजा है कि बड़ी तादाद में पलायन का दौर चल पड़ा है।

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रेलवे बोर्ड ने अपने सभी जोन के लिए जारी किया निर्देश, ट्रेन में या ट्रेन की पटरियों पर रील बनाने वालों के खिलाफ दर्ज होगा केस

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नई दिल्ली। रेलवे बोर्ड ने अपने सभी जोन के लिए निर्देश जारी कर कहा है कि रेल सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने पर केस दर्ज किया जाएगा। यानी अगर कोई शख्स ट्रेन में या ट्रेन की पटरियों पर रील बनाएगा तो उसके खिलाफ केस दर्ज किया जाएगा।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल लोग सोशल मीडिया पर वायरल होने के लिए रेल और रेल की पटरियों पर रील बनाते हैं। कई जगह ये भी देखा गया है कि रील बनाते-बनाते लोग चलती ट्रेन से घायल भी हुए हैं। युवाओं में खासकर यह क्रेज है कि वह रेलवे की पटरियों पर जाकर एक्शन रील बनाते हैं या फिर कुछ एक्सपेरिमेंट करते हैं, जैसेकि ट्रेन की पटरी पर पत्थर रख दिया या कोई सामान रख दिया। इस तरह की रील बनाने वाले लोग खुद के साथ-साथ रेल यात्रियों की जिंदगी भी खतरे में डालते हैं।

ऐसे में रेल पटरियों और चलती ट्रेनों में रील बनाने को लेकर सरकार सख्त रवैया अपना रही है। ऐसा करने पर आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज किया जाएगा। रेलवे बोर्ड ने इस मामले में अपने सभी जोन को निर्देश दिया है, जिसमें कहा गया है कि अगर रील बनाने वाले सुरक्षित रेल परिचालन के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं या कोचों या रेल परिसरों में यात्रियों के लिए असुविधा का कारण बनते हैं तो उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जाए।

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