नेशनल
मंदसौर गोलीबारी ने किसानों में बढ़ाया गुस्सा (सिंहावलोकन 2017)
नई दिल्ली, 31 दिसम्बर (आईएएनएस)| पंजाब के मनसा जिले के पवित्र सिंह देश भर के किसानों का प्रतिनिधित्व करते हैं। किसान लगातार दूसरे साल कृषि उत्पादों की कीमतें गिरने के कारण गुस्से में हैं। लेकिन उनकी बदहाली पर तब तक ध्यान नहीं गया, जबतक जून में मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में पुलिस गोलीबारी में पांच किसानों की मौत नहीं हो गई।
इस अध्याय ने देश भर में कई विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया और किसानों को आंदोलन के जरिए अपना गुस्सा जाहिर करने का मौका दिया। खासकर आठ नवंबर, 2016 को नोटबंदी के बाद, जिसने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तोड़ कर रख दिया।
किसान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा 2014 चुनाव अभियान में किए वादे को पूरा नहीं करने को लेकर गुस्से में थे। चुनाव के दौरान वादा किया गया था कि किसान अपनी लागत पर 50 फीसदी लाभ प्राप्त करने में सक्षम होंगे, विशेषकर तब जब कीमतों में भारी गिरावट होगी। लेकिन हैरत की बात यह है कि किसान अपनी लागत की रकम भी वसूल नहीं कर सके।
पवित्र सिंह ने आईएएनएस से बातचीत में खेद व्यक्त किया और कहा, बड़े-बड़े वादों को छोड़िए, जो गेहूं हमने उपजाया, उनका हमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तक प्राप्त नहीं हुआ। नोटबंदी के डंक के कारण हमारे पास अगली बुआई के लिए पैसे तक नहीं हैं। हमें अपने कर्ज चुकाने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि उनके इलाके के किसान अपने चावल को 1,200 से 1,250 रुपये प्रति कुंटल पर बेचने के लिए मजबूर हैं, फिर भी कोई खरीदार नहीं है। जबकि सरकार ने एमएसपी 1,510 रुपये प्रति कुंटल तय किया हुआ है।
कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा ने कहा कि सरकार की कृषि नीतियां, विशेषकर जो आयात और निर्यात से जुड़ी हैं, एक बड़े विस्तार के कारण लगभग टेढ़ी हो गई हैं। जिसके कारण स्थानीय बाजारों में कीमतें गिर रही हैं।
उन्होंने कहा, कृषि संकट के लिए दो कारक खासतौर से जिम्मेदार हैं। पहला नोटबंदी और दूसरा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गिरावट। सरकार दालें, गेहूं और नारियल आयात करती है, जबकि इनका स्थानीय उत्पादन काफी ऊंचा है। आयात मूल्य कुल कृषि बजट से ज्यादा होता है।
महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में इस साल सरकार द्वारा अधिप्राप्ति को रोकने के बाद दालों की कीमतों में गिरावट के कारण बहुत सारे विरोध प्रदर्शन हुए, जिनमें अरहर दाल विशेष है।
2014 में सत्ता में आने के बाद कृषि मोर्चे पर भाजपा सरकार के लिए लगभग तीन साल बड़े शांति से गुजरे, लेकिन मंदसौर की गोलीबारी ने इस शांति को अशांति में बदल दिया और केंद्र सरकार को एक नए मोड़ पर खड़ा कर दिया। इस मुद्दे से केंद्र सरकार की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। इस मुद्दे पर कृषि संघों और विपक्षी दलों ने सरकार का कड़ा विरोध किया और इसी के चलते कुछ प्रमुख सहयोगियों ने सत्तारूढ़ गठबंधन छोड़ दिया।
इसी गुस्से का नतीजा था कि इस माह गुजरात में हुए चुनाव में जीत के आंकड़े तक भाजपा लगभग लड़खड़ाते हुए पहुंची। गुजरात को कपास के क्षेत्र के रूप में जाना जाता है।
लोकसभा सदस्य और स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के नेता राजू शेट्टी ने सरकार द्वारा देश भर के किसानों के ऋण माफ करने और उत्पाद की लाभकारी कीमतें प्राप्त करने संबंधी मांगों को न सुने जाने पर जुलाई में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से किनारा कर लिया था।
शेट्टी ने आईएएनएस को बताया, मैंने सरकार से वित्तीय मदद मुहैया कराने और उत्पादन के लिए किसानों को लाभकारी कीमतें देने का निवेदन किया था। उस पर सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। इसलिए मेरे पास उनसे अलग होने के सिवा कोई चारा नहीं था, ताकि किसानों के लिए न्याय सुनिश्चित किया जा सके।
भाजपा को एक और झटका उस वक्त लगा, जब महाराष्ट्र के भाजपा सांसद नाना पटोले ने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और पार्टी छोड़ दी।
दिल्ली में तमिलनाडु के 100 से ज्यादा किसानों ने नए तरीके से विरोध प्रदर्शन कर सबका ध्यान अपनी ओर खींचा था। इन किसानों के नेता ने कहा, हमने अपनी मांगों के लिए दिल्ली में 100 दिनों से अधिक अवधि तक विरोध-प्रदर्शन किया और उस मुश्किल वक्त में कई लोगों ने हमें समर्थन दिया। हालांकि राधा मोहन सिंह हमसे कभी नहीं मिले और न ही इस मुद्दे पर चर्चा के लिए हमें कभी आमंत्रित किया।
कुछ अपवादों को छोड़कर, स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव लगभग सभी संबंधित संगठनों को एक मंच पर लाने में कामयाब रहे। वह 184 संगठनों को जोड़ने में कामयाब रहे। जिसके कारण राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन देखने को मिले और सरकार को उनका सामना करने के लिए संघर्ष करना पड़ा।
पिछले माह राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित एक बड़े विरोध प्रदर्शन में देशभर के करीब 20 हजार किसान शामिल हुए थे और उन्होंने अपनी मांगें सामने रखी थी।
कर्नाटक के कोलार जिले के किसान धर्मालिंगम ने कहा कि सरकार नए-नए विज्ञापनों में किसानों के लिए योजनाएं लागू करती दिखती है, लेकिन उन योजनाओं के फायदे उन किसानों के पास जमीनी स्तर तक पहुंच नहीं पाते।
धर्मालिंगम ने आईएएनएस को बताया, किसानों की आय दोगुना करने वाली कई योजनाएं लागू की गईं। हालांकि उनमें से किसी का भी प्रभाव सामने आता नहीं दिखाई दे रहा है।
उत्तर प्रदेश
संभल में कैसे भड़की हिंसा, किस आधार पर हो रहा दावा, पढ़े पूरी रिपोर्ट
संभल। संभल में एक मस्जिद के स्थान पर प्राचीन मंदिर होने और भविष्य में कल्कि अवतार के यहां होने के दावे ने हाल ही में काफी सुर्खियां बटोरी हैं. इस दावे के पीछे कई धार्मिक और ऐतिहासिक तथ्य बताए जा रहे है. उत्तर प्रदेश के संभल में कल्कि अवतार और उनके मंदिर को लेकर कई दावे पहले से ही किए जा रहे हैं. इसे लेकर धार्मिक मान्यताओं और शास्त्रों के आधार पर गहरी चर्चा हो भी रही है. हिंदू धर्म में कल्कि अवतार को भगवान विष्णु का दसवां और अंतिम अवतार माना गया है. ऐसा माना जाता है कि कलियुग के अंत में जब अधर्म और अन्याय अपने चरम पर होगा तब भगवान कल्कि अवतार लेकर पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करेंगे.
कैसे भड़की हिंसा?
24 नवंबर को मस्जिद में हो रहे सर्वे का स्थानीय लोगों ने विरोध किया. पुलिस भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मौके पर थी. सर्वे पूरा होने के बाद जब सर्वे टीम बाहर निकली तो तनाव बढ़ गया. भीड़ ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया, जिसके कारण स्थिति बिगड़ गई और हिंसा भड़क उठी.
दावा क्या है?
हिंदू पक्ष का दावा है कि संभल में स्थित एक मस्जिद के स्थान पर प्राचीन काल में एक मंदिर था. इस मंदिर को बाबर ने तोड़कर मस्जिद बनवाई थी. उनका यह भी दावा है कि भविष्य में कल्कि अवतार इसी स्थान पर होंगे.
किस आधार पर हो रहा है दावा?
दावेदारों का कहना है कि उनके पास प्राचीन नक्शे हैं जिनमें इस स्थान पर मंदिर होने का उल्लेख है. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस स्थान पर प्राचीन काल से ही पूजा-अर्चना होती थी. कुछ धार्मिक ग्रंथों में इस स्थान के बारे में उल्लेख मिलता है. हिंदू धर्म के अनुसार कल्कि अवतार भविष्य में आएंगे और धर्म की स्थापना करेंगे. दावेदारों का मानना है कि यह स्थान कल्कि अवतार के लिए चुना गया है.
किस आधार पर हो रहा है विरोध?
अभी तक इस दावे के समर्थन में कोई ठोस पुरातात्विक साक्ष्य नहीं मिला है. जो भी ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स उपल्बध हैं वो इस बात की पुष्टि करते हैं कि इस स्थान पर एक मस्जिद थी. धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या कई तरह से की जा सकती है और इनका उपयोग किसी भी दावे को सिद्ध करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
संभल का धार्मिक महत्व
शास्त्रों और पुराणों में यह उल्लेख है कि भगवान विष्णु का कल्कि अवतार उत्तर प्रदेश के संभल नामक स्थान पर होगा. इस आधार पर संभल को कल्कि अवतार का स्थान माना गया है. श्रीमद्भागवत पुराण और अन्य धर्मग्रंथों में कल्कि अवतार का वर्णन विस्तार से मिलता है जिसमें कहा गया है कि कल्कि अवतार संभल ग्राम में विष्णुयश नामक ब्राह्मण के घर जन्म लेंगे.
इसी मान्यता के कारण संभल को कल्कि अवतार से जोड़ा जाता है. संभल में बने कल्कि मंदिर को लेकर यह दावा किया जा रहा है कि यही वह स्थान है जहां भविष्य में भगवान कल्कि का प्रकट होना होगा. मंदिर के पुजारी और भक्तों का कहना है कि यह स्थान धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र है और यहां कल्कि भगवान की उपासना करने से व्यक्ति अधर्म से मुक्ति पा सकता है.
धार्मिक विश्लेषण
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, कल्कि अवतार का समय तब होगा जब अधर्म, पाप और अन्याय चरम पर पहुंच जाएंगे. वर्तमान में दुनिया में मौजूद सामाजिक और नैतिक स्थितियों को देखकर कुछ लोग यह मानते हैं कि कल्कि अवतार का समय निकट है. संभल में कल्कि मंदिर को लेकर जो भी दावे किए जा रहे हैं वो सभी पूरी तरह से आस्था पर आधारित हैं. धार्मिक ग्रंथों में वर्णित समय और वर्तमान समय के बीच अभी काफी अंतर हो सकता है. उत्तर प्रदेश के संभल में कल्कि अवतार और मंदिर का दावा धार्मिक मान्यताओं और शास्त्रों पर आधारित है. हालांकि, यह दावा प्रमाणिकता के बजाय विश्वास पर आधारित है. यह भक्तों की आस्था है जो इस स्थान को विशेष बनाती है.
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