Connect with us
https://aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

ऑफ़बीट

BIRTHDY SpCIAL: अंधेपन का शिकार हुए लोगों के लिए ‘ब्रेल’ थे ‘मसीहा’, खुद भी थे अंधे

Published

on

Loading

नई दिल्ली| विश्व में चार जनवरी का दिन एक ऐसे शख्स की याद में मनाया जाता है जिसने अपने और दुनिया के तमाम ऐसे लोगों की आंखों के सामने छाए अंधेरे के बादलों को हटाकर उनमें शिक्षित होने की एक लौ जलाई। ‘ब्रेल लिपि’ के अविष्कारक लुइस ब्रेल को दुनिया में अंधेपन के शिकार लोगों के बीच मसीहा के रूप में जाना जाता है।

1809 में फ्रांस के एक छोटे से कस्बे कुप्रे के एक साधारण परिवार में जन्में लुइस ब्रेल ने अपने 43 वर्ष के छोटे से जीवन में अंधेपन का शिकार लोगों के लिए वह काम किया, जिसके कारण आज वह शिक्षित हैं, समाज की मुख्यधारा से जुड़े हैं, स्कूलों, कॉलेजों में दूसरे विद्यार्थियों की तरह पढ़ सकते हैं, व्यापार कर सकते हैं।

Image result for LOUIS BRAILLE

साधारण परिवार में जन्में लुइस ब्रेल के पिता साइमन रेले ब्रेल शाही घोडों के लिये काठी बनाने का काम करते थे। पारिवारिक जरूरतों और आर्थिक संसाधन के सीमित होने के कारण साइमन पर कार्य का अधिक भार रहता था। अपनी सहायता के लिए उन्होंने अपने तीन साल के लुइस को अपने साथ लगा लिया।

यहीं से लुइस ब्रेल की कहानी का आगाज होता है जहां दुनिया में उन्हें किसी न किसी रूप में याद किया जाता है। एक दिन पिता के साथ कार्य करते वक्त वहां रखे औजारों से खेल रहे लुइस के आंख में एक औजार लग गया। चोट लगने के बाद उनकी आंख से खून निकलने लगा। परिवार के लोगों ने इसे मामूली चोट समझकर कर आंख पर पट्टी बांध दी और इलाज करवाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।

Related image

वक्त की बीतने के साथ लुइस बड़ा होता गया और घाव गहरा होता चला गया। आठ साल की उम्र में पहुंचते-पहुंचते लुइस की दुनिया में पूरी तरह से अंधेरा छा गया। परिवार और खुद लुइस के लिए यह एक बड़ा आघात था। लेकिन आठ साल के बालक लुइस ने इससे हारने के बजाए चुनौती के रूप में लिया। परिवार ने बालक की जिज्ञासा देखते हुए चर्च के एक पादरी की मदद से पेरिस के एक अंधविद्यालय में उनका दाखिला करा दिया।

16 वर्ष की उम्र में लुइस ब्रेल ने विद्यालय में गणित, भूगोल एवं इतिहास विषयों में महारथ हासिल कर शिक्षकों और छात्रों के बीच अपना एक स्थान बना लिया। 1825 में लुइस ने एक ऐसी लिपि का आविष्कार किया जिसे ब्रेल लिपि कहा जाता है। लुइस ने लिपि का आविष्कार कर ष्टीबाधित लोगों की शिक्षा में क्रांति ला दी।

Image result for LOUIS BRAILLE

ब्रेल लिपि का विचार लुई के दिमाग में फ्रांस की सेना के कैप्टन चार्ल्र्स बार्बियर से मुलाकात के बाद आया। चार्ल्स ने सैनिकों द्वारा अंधेरे में पढी जाने वाली नाइट राइटिंग व सोनोग्राफी के बारे में लुइस को बताया था। यह लिपि कागज पर उभरी हुई होती थी और 12 बिंदुओं पर आधारित थी। लुइस ब्रेल ने इसी को आधार बनाकर उसमें संशोधन कर उस लिपि को 6 बिंदुओं में तब्दील कर ब्रेल लिपि का इजात कर दिया। लुइस ने न केवल अक्षरों और अंकों को बल्कि सभी चिन्हों को भी लिपि में सहेज कर लोगों के सामने प्रस्तुत किया।

चार्ल्स द्वारा जिस लिपि का उल्लेख किया गया था, उसमें 12 बिंदुओ को 6-6 की पंक्तियों में रखा जाता था। उसमें विराम चिन्ह , संख्या और गणितीय चिन्ह आदि का समावेश नहीं था। लुइस ने ब्रेल लिपि में 12 की बजाए 6 बिंदुओ का प्रयोग किया और 64 अक्षर और चिन्ह बनाए। लुइस ने लिपि को कारगार बनाने के लिए विराम चिन्ह और संगीत के नोटेशन लिखने के लिए भी जरुरी चिन्हों का लिपि में समावेश किया।

Related image

ब्रेल ने अंधेपन के कारण समाज की दिक्कतों के बारे में कहा था, बातचीत करना मतलब एक-दूसरे के ज्ञान को समझना है, ष्टिहीन लोगों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है और इस बात को हम नजर अंदाज नहीं कर सकते। उनके अनुसार विश्व में अंधेपन के शिकार लोगों भी उतना ही महžव दिया जाना चाहिए जितना साधारण लोगों को दिया जाता है।

1851 में उन्हें टी.बी. की बीमारी हो गई जिससे उनकी तबियत बिगड़ने लगी और 6 जनवरी 1852 को मात्र 43 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। उनके निधन के 16 वर्ष बाद 1868 में रॉयल इंस्टिट्यूट फॉर ब्लाइंड यूथ ने इस लिपि को मान्यता दी।

Image result for LOUIS BRAILLE

लुइस ब्रेल ने केवल फ्रांस में ख्याति अर्जित की बल्कि भारत में भी उन्हें वहीं सम्मान प्राप्त है जो देश के दूसरे नायकों को प्राप्त है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत सरकार ने 2009 में लुइस ब्रेल के सम्मान में डाक टिकिट जारी किया था।

इतना ही नहीं लुइस की मृत्यु के 100 वर्ष पूरे होने पर फ्रांस सरकार ने दफनाए गए उनके शरीर को बाहर निकाला और राष्ट्रीय ध्वज में लपेट कर पूरे राजकीय सम्मान से दोबारा दफनाया।

 

Continue Reading

ऑफ़बीट

पकिस्तान के वो काले कानून जो आप जानकर हो जाएंगे हैरान

Published

on

Loading

नई दिल्ली। दुनिया के हर देश में कई अजीबोगरीब कानून होते हैं जो लोगों को हैरान करते हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी कई अजीबोगरीब कानून हैं। इस मामले में पड़ोसी देश पहले नंबर पर है। ऐसे कानूनों की वजह से पाकिस्तान की दुनियाभर में आलोचना भी होती है। अभी कुछ महीने पहले ही एक कानून को लेकर उसकी खूब आलोचना हुई थी।

पाकिस्तान के सिंध प्रांत में एक अजीबोगरीब विधेयक का प्रस्ताव पेश किया गया था। यह विधेयक पड़ोसी देश के साथ ही दुनियाभर में चर्चा का विषय बन गया था। इस बिल में कहा गया था कि 18 साल की उम्र होने पर लोगों की शादी को अनिवार्य कर देना चाहिए। इसके अलावा इस कानून को नहीं मानने वालों को सजा का भी प्रावधान है। पाकिस्तानी राजनेताओं का इसके पीछे तर्क है कि इससे सामाजिक बुराइयों और बच्चों से बलात्कार को रोकने में मदद मिलेगी। आईए जानते हैं पाकिस्तान के कुछ ऐसे ही अजीबोगरीब कानून के बारे में।

बिना इजाजत नहीं छू सकते हैं फोन

पाकिस्तान में बिना इजाजत किसी का फोन छूना गैरकानूनी माना जाता है। अगर कोई गलती से भी किसी दूसरे का फोन छूता है, तो उसे सजा का प्रावधान है। ऐसा करने वाले शख्स को 6 महीने जेल की सजा हो सकती है।

अंग्रेजी अनुवाद है गैरकानूनी

 

पाकिस्तान में आप कुछ शब्दों का अंग्रेजी अनुवाद नहीं कर सकते हैं। इन शब्दों का इंग्लिश ट्रांसलेशन करना गैरकानूनी माना जाता है। यह शब्द हैं अल्लाह, मस्जिद, रसूल या नबी। अगर कोई इनका अंग्रेजी अनुवाद करता है, तो उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होती है।

पढ़ाई की फीस पर लगता है टैक्स

 

पाकिस्तान में पढ़ाई करने पर टैक्स देना पड़ता है। अगर कोई छात्र पढ़ाई पर 2 लाख से अधिक खर्च करता है, तो उसको पांच प्रतिशत टैक्स देना पड़ता है। शायद इसी डर से पाकिस्तान में लोग कम पढ़ाई करते हैं।

लड़की के साथ रहने पर होती है कार्रवाई

अगर कोई लड़का अपनी गर्लफ्रेंड के साथ रहते हुए पकड़ा जाता है, तो उसे जेल की सजा होती है। यहां पर कोई किसी लड़की के साथ दोस्ती नहीं कर सकता है। पड़ोसी देश में कानून है कि शादी के पहले लड़का और लड़की एक साथ नहीं सकते हैं।

Continue Reading

Trending