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आध्यात्म

वृंदावन में प्रेम मन्दिर के वार्षिकोत्सव का भव्‍य आयोजन

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वृंदावन। प्रेम, ज्ञान और भक्ति की दिव्‍य आभा से परिपूर्ण प्रेम मंदिर का छठवां वार्षिकोत्सव रविवार को वृंदावनधाम में भव्‍य रूप से मनाया गया। इस अवसर पर राधाकृष्ण और सीताराम के श्रीविग्रहों का अभिषेक कर पूजा–अर्चना की गई। जगद्गुरु कृपालु परिषत् जेकेपी की देखरेख में भक्‍तों ने युगल विग्रहों के विशेष दर्शन भी प्राप्त किए।

प्रेम मंदिर, वृंदावनधाम के वार्षिकोत्सव में विशष भोग और आरती का कार्यक्रम भी हुआ। शाम को यहां विशेष होली लीला का भी मनोहारी आयोजन हुआ। इस लीला का सैकड़ों भक्‍तों ने भरपूर आनंद लिया। जेकेपी की तीनों अध्यक्ष डॉ. विशाखा त्रिपाठी, डॉ. श्यामा त्रिपाठी और डॉ. कृष्णा त्रिपाठी के निर्देशन और उपस्थिति में महोत्‍सव का समापन हुआ।

बता दें कि श्रीराधाकृष्ण के दिव्‍य प्रेम को समर्पित यह अद्भुत मंदिर जगद्गुरु श्रीकृपालु जी महाराज की दुनिया को अनुपम भेंट है। प्रेम मन्दिर का उद्घाटन जगद्गुरु श्रीकृपालु जी महाराज के कर-कमलों से 17 फरवरी 2012 को अत्यन्त भव्य रूप से सम्पन्न हुआ था। मन्दिर का शिलान्यास वेदमंत्रों की पवित्र ध्वनियों के बीच वेदमार्ग-प्रतिष्ठापनाचार्य जगद्गुरु कृपालु जी महाराज के पावन कर-कमलों से जगद्गुरु दिवस 14 जनवरी 2001 को हुआ था। इस मंदिर के निर्माण में लगभग 1000 शिल्पकारों और वास्तुकारों ने अपने कौशल का पूरी तन्‍मयता से उपयोग किया। इन्‍हीं कारीगरों की सृजनशीलता का नतीजा है कि आज प्रेम मंदिर अपने भव्‍यतम रूप में वृंदावन की शोभा बढ़ा रहा है।

जगद्गुरु श्रीकृपालु महाराज ने प्रेम मन्दिर के रूप में संसार को ऐसा अनमोल रत्न प्रदान किया हैजिसकी तुलना संसार में कहीं नहीं है। माना जाता है कि केवल रसिक महापुरुष ही इसके महत्व को जान सकते हैं। प्रेम मन्दिर महाराज जी की संसार पर की गई कृपा का जीवन्त उदाहरण हैजो युगों-युगों तक संसार को दिव्य भगवदीय प्रेम का सन्देश देता रहेगा।

व्रत एवं त्यौहार

CHHATH POOJA 2024 : जानें कब से शुरू होगी छठी मैया की पूजा, जानिए इसे क्यों मनाते हैं

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मुंबई। त्रेतायुग में माता सीता और द्वापर युग में द्रौपदी ने भी रखा था छठ का व्रत रामायण की कहानी के अनुसार जब रावण का वध करके राम जी देवी सीता और लक्ष्मण जी के साथ अयोध्या वापस लौटे थे, तो माता सीता ने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को व्रत रखकर कुल की सुख-शांति के लिए षष्ठी देवी और सूर्यदेव की आराधना की थी।

छठ पूजा क्यों मनाते है ?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा अर्चना और अर्घ्य देने से सुख-शांति, समृद्धि, संतान सुख और आरोग्य की प्राप्ति होती है। छठ पूजा को डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। यह चार दिनों तक चलने वाला त्योहार है, जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। छठ पर्व के दौरान प्रकृति के विभिन्न तत्वों जैसे जल, सूर्य, चंद्रमा आदि की पूजा की जाती है. यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है और हमें प्रकृति के संरक्षण का महत्व सिखाता है. छठ का व्रत बहुत कठिन होता है. व्रतधारी 36 घंटे तक बिना पानी पिए रहते हैं. साथ ही छठ पर्व सभी वर्गों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाता है. इस पर्व के दौरान लोग मिलकर पूजा करते हैं, भोजन करते हैं और एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं. इससे सामाजिक एकता और भाईचारा बढ़ता है.

छठ पर्व के 4 दिन

छठ पूजा का पहला दिन, 5 नवंबर 2024- नहाय खाय.
छठ पूजा का दूसरा दिन, 6 नवंबर 2024- खरना.
छठ पूजा का तीसरा दिन, 7 नवंबर 2024-डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य.
छठ पूजा का चौथा दिन, 8 नवंबर 2024- उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण

 

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