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राहुल को शब्दों का चयन सावधानी से करना होगा
नई दिल्ली, 25 अगस्त (आईएएनएस)| कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारत में भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या (मॉब लिंचिंग) की दर्दनाक घटनाओं का एक आर्थिक कारण बताया है। राहुल ने जर्मनी में अपने संबोधन के दौरान तर्क दिया कि नोटबंदी से बेरोजगारी पैदा हुई और यही भीड़ की हिंसा का कारण है। यानी बेरोजगार लोग पैसे के खातिर मॉब लिंचिंग में उतर जाते हैं। उन्होंने कहा कि नोटबंदी से छोटे व्यवसाय बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।
राहुल मानते हैं कि इसके अलावा वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को गलत तरीके से लागू किए जाने के कारण व्यापारी और उद्यमियों को भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा है।
नोटबंदी और लिंचिंग के बीच यह कड़ी हालांकि थोड़ी कमजोर है। पहली चीज 500 और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर किए जाने के बाद लोगों ने सामान्य तौर पर घंटों बैंक और एटीएम के बाहर खड़े होकर अनुकरणीय धैर्य दर्शाया था, भले ही उसका कोई फायदा उन्हें नहीं मिला।
गौरक्षा के नाम पर मुस्लिमों को पीट-पीट कर मौत के घाट उतारने की घटनाओं के पीछे व्यापक रूप से माना जा रहा था कि यह भगवा बिरादरी की अल्पसंख्यक विरोधी मानसिकता से उत्पन्न नफरत के माहौल का नतीजा था, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता संभालने के साथ और ज्यादा उबाल आ गया।
नोटबंदी और जीएसटी का मुस्लिमों द्वारा गोमांस खाए जाने या मवेशियों को लाते-ले जाते समय हमलों से कोई लेना-देना नहीं है।
सांप्रदायिक घटनाओं की इस दोषपूर्ण व्याख्या के बाद राहुल गांधी ने पश्चिम एशिया में इस्लामिक स्टेट (आईएस) के उदय के लिए इराक में अमेरिकी हस्तक्षेप को जोड़कर खतरनाक क्षेत्र में पैर रख दिया। उन्होंने कहा कि पश्चिम एशिया में विकास प्रक्रिया में बाधा आने के परिणामस्वरूप यह विद्रोह हुआ।
कांग्रेस अध्यक्ष अगर यह रेखांकित करना चाहते हैं कि मुस्लिमों और दलितों के लिए पर्याप्त आर्थिक अवसर नदारद रहने के कारण भारत में आतंकवाद पनप सकता है, तो इसे अतिशयोक्ति ही माना जाएगा।
इससे पहले, उन्होंने अपने अमेरिका दौरे के दौरान कहा था कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा अच्छा वक्ता नहीं हैं। अब वह यह दर्शा रहे हैं कि उनके तर्क हमेशा विश्वसनीय नहीं होते।
मौजूदा अत्याधिक गरमाते सियासी माहौल में सार्वजनिक वक्ताओं को लिए अपने शब्दों का इस्तेमाल मापतोल कर करने की जरूरत है, जिसमें जरा सी असावधानी उनके विरोधियों को उन्हें घेरने में सक्षम बना सकती है।
राहुल गांधी और राष्ट्रीय विपक्ष के पास ऐसे बहुत से मुद्दे हैं, जिन पर भाजपा की आलोचना की जा सकती है। इसमें लिंचिंग के परिणामस्वरूप मुस्लिमों के भीतर असुरक्षा का भाव और दलितों के बीच उत्पीड़ित होने की अनुभूति शामिल है, जिसे दलितों के शीर्ष नेताओं में से एक चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ को लंबे समय तक कैद रखे जाने से और ज्यादा मजबूती मिलती है।
इन चरम बिंदुओं के अलावा, बेरोजगारी और कृषि-संबंधी तंगी की भी समस्या है। इसलिए यहां इस्लामिक स्टेट का जिक्र करने की कोई जरूरत नहीं थी, विशेषकर जब भारत में मुस्लिम समुदाय आतंकवाद को छोड़ चुका है, सिवाय कुछके, जो सीरिया जा चुके हैं।
भारत मौलिक बदलाव के कगार पर खड़ा है। दो विरोधी पार्टियां एक-दूसरे के सामने हैं। एक तरफ भाजपा है और दूसरी तरफ कांग्रेस व राष्ट्रीय विपक्ष। ये दोनों ही भारत की दो विपरीत विचाराधारों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
एक विचारधारा हिंदू केंद्रित है, जबकि दूसरी देश की समग्र संस्कृति पर जोर देती है।
देश की सबसे पुरानी पार्टी के नेता होने के नाते राहुल गांधी को यह दिखाना होगा कि वह और उनकी पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली मात्र 44 सीटों के दुखमयी अतीत को भुलाकर आगे बढ़ने और आगामी चुनावों में भाजपा के विकट चुनावी तंत्र और उसके अत्यधिक स्पष्ट वक्ता नरेंद्र मोदी से भिड़ने के लिए तैयार है।
इसके लिए राहुल गांधी को अपने शब्दों का चयन बड़ी सावधानी के साथ करना होगा, चाहे वह देश में बोल रहे हों या विदेश में। साथ ही उन्हें वैश्विक घटनाओं में समानता की तलाश करने के बजाय भाजपा के कमजोर बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत
पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।
AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.
शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव
अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।
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