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इस मामले में पाकिस्तान से मात खा गया भारत, एशिया में छा गया पड़ोसी

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नई दिल्ली। भले ही भारत हर मामले में अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान से आगे हो लेकिन एक मामले में वह उससे पिछड़ गया है। हाल ही में संयुक्‍त राष्‍ट्र की सस्‍टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्‍यूशंस नेटवर्क ने वर्ल्‍ड हैप्‍पीनेस रिपोर्ट-2018 प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट में भारत खुशहाल देशों की सूची में 133वें पायदान पर है।

इस तरह वह पाकिस्तान और गरीब देश नेपाल से भी पीछे है। दोनों देश इस मामले में भारत से आगे निकल चुके हैं। रिपोर्ट में पाकिस्तान का स्थान 75वां स्‍थान है। पड़ोसी देशों में सबसे खुशहाल पाकिस्‍तान है। वहीं नेपाल 101वें पायदान पर है। यदि भारत के अन्य पड़ोसी मुल्‍कों से तुलना की जाए तो भूटान का स्थान 97वां, बांग्लादेश का 115वां, श्रीलंका का 116वां और चीन का स्थान 86 वां रहा है। म्‍यांमार को इस सूची में 130वें स्‍थान पर रखा गया है। इस लिस्ट में सबसे कम खुशहाल देश बुरुंडी है। उसे 156वां स्‍थान मिला है।

दुनिया के शीर्ष 10 खुशहाल देश में पहले स्थान पर फिनलैंड है। 2017 में पहले स्थान पर रहा नॉर्वे इस बार दूसरे स्थान पर है। तीसरे स्थान पर डेनमार्क है। आइसलैंड और स्विट्जरलैंड क्रमश: 4वें और 5वें स्थान पर हैं। नीदरलैंड 6वें और कनाडा 7वें स्थान पर है। सूची में न्यूजीलैंड को 8वां स्थान दिया गया है, जबकि स्वीडन और ऑस्ट्रेलिया को क्रमश: 9वां और 10वां स्थान मिला है।

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हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक, कांग्रेस को भारी पड़ी गुटबाजी

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सुबह 8 बजे जब EVM खुलीं तो काँग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश हाई था .. जैसे जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ती गई कार्यकर्ताओं का जोश नाच गाने और लड्डू बांटने में तब्दील हो गया.. लेकिन ये क्या अचानक से वक्त बदल गया हालात बदल गए और देखते देखते जज़्बात ठंडे पड़ गए .. हरियाणा में जो काँग्रेस रुझानों में पूर्ण बहुमत में दिख रही थी वो अर्श से फर्श पर आ गई और जो बीजेपी फर्श पर पड़ी थी वो अर्श पर पहुँच गई. अब जोश वही था लेकिन हालात और जज़्बात अपनी जगह बदल चुके थे.. अब ढोल की गूंज बीजेपी ऑफिस पहुँच चुकी थी और लड्डू बीजेपी कार्यकर्ताओं का मुंह मीठा कर रहे थे .लोकसभा चुनाव की तरह हरियाणा के नतीजों ने भी चुनावी पंडितों को मुंह छिपाने के लिए मजबूर कर दिया.. सारे  पोल धाराशाई हो गए.. बीजेपी का कमल पूरे बहुमत के साथ खिल गया.. काँग्रेस के मुख्यालय 24 अकबर रोड के जिस कमरे में कौन बनेगा हरियाणा का मुख्यमंत्री पर चर्चा हो रही थी वहाँ का माहौल गमगीन हो गया और इस बात पर चर्चा होने लगी इस हार का बलि का बकरा कौन बनेगा.. 10 साल की एंटी इनकंबेंसी को बीजेपी की रणनीति ने प्रो इनकंबेंसी में बदल कर तीसरी बार सत्ता में वापसी कर ली. जान लेते हैं वो कौन सी वजहें थीं जिसने हरियाणा में कांग्रेस की नैया डुबाने का काम किया है.

गुटबाजी कांग्रेस को भारी पड़ी

हरियाणा चुनाव प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस के अंदर चल रही गुटबाजी की होती रही. कुमारी शैलजा और हुड्डा के साथ एक खेमा रणदीप सिंह सुरजेवाला का भी था. ऊपर के नेताओं के बीच की इस खींचतान ने संगठन को नुकसान पहुंचाने का काम किया और कार्यकर्ताओं के अंदर भी असमंजस की स्थिति बनी रही. तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस आलाकमान प्रदेश में खेमेबाजी पर लगाम लगाने में नाकामयाब रहा और पार्टी जीती हुई लड़ाई हार गई।

एंटी इनकंबेंसी को भुनाने में रही नाकामयाब

काँग्रेस अपनी अंदरूनी खींचतान से ही नहीं उबर पाई जिससे चुनाव प्रचार के दौरान काँग्रेस बीजेपी की गलतियों को भुनाने में नाकामयाब रही . हालांकि कांग्रेस के पास 10 साल की एंटी इनकंबेंसी,  मुख्यमंत्री बदलने जैसे मुद्दे थे. पहलवानों का प्रदर्शन और अग्निवीर योजना से लेकर किसान आंदोलन जैसे बड़े मुद्दों को प्रचार के दौरान ठीक से हवा नहीं दी जा सकी. लिहाजा पार्टी का पूरा ध्यान खेमेबाजी पर लगाम लगाने में ही रहा और इसका बीजेपी ने पूरा फायदा उठाया.

केजरीवाल की बेल ने बिगाड़ा खेल

चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल जेल से बाहर आए तो गठबंधन के लिहाज से काफी देर हो चुकी थी .. केजरीवाल खुलकर हरियाणा के चुनावी मैदान में उतार चुके थे लेकिन आम आदमी पार्टी के साथ अगर काँग्रेस का गठबंधन होता तो शायद तस्वीर अलग होती.

टिकट बंटवारे में दिखी गुटबाजी

टिकट बंटवारे में गुटबाजी और भाई भतीजाबाद को अलग रखकर सिर्फ विनिंग उम्मीदवारों को ही प्राथमिकता दी जाती, तो भी नतीजे उलट सकते थे. आम आदमी पार्टी को भले ही किसी सीट पर जीत न मिली हो, लेकिन करीबी मुकाबले वाली सीटों पर उसने कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाने का काम किया है…

एस एन द्विवेदी के साथ शिखा मेहरोत्रा की रिपोर्ट

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