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एशियाई खेलों में चीन का दबदबा कायम, भारत ने किया सुधार

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नई दिल्ली, 2 सितम्बर (आईएएनएस)| एशियाई खेलों में चीन का वर्चस्व कायम है। यह अलग बात है कि 2010 और 2014 की तुलना में चीन ने जकार्ता में रविवार को समाप्त 18वें एशियाई खेलों में कम पदक जीते हैं लेकिन इसके बावजूद वह अपनी बादशाहत कायम रखने में सफल रहा। जहां तक भारत की बात है तो भारतीय खिलाड़ियों ने 1951 के ‘स्वर्णिम शो’ को फिर से दोहराते हुए एशियाई खेलों के इतिहास में सबसे अधिक पदक अपने नाम किए हैं।

वैश्विक स्तर पर खेल महाशक्ति माने जाने वाले चीन ने जकार्ता में 132 स्वर्ण, 92 रजत और 65 कांस्य के साथ कुल 289 पदक जीते। इसके अलावा जापान ही 200 पदकों का आंकड़ा पार कर सका। कुल 205 पदकों के साथ जापान दूसरे और 177 पदकों के साथ दक्षिण कोरिया तीसरे पायदान पर रहा जबकि भारत ने भी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 15 स्वर्ण के साथ कुल 69 पदक जीते। भारत ने 2010 में 65 पदक जीते थे और 1951 में 15 स्वर्ण जीते थे।

चीन हालांकि जकार्ता में एशियाई खेलों के पिछले संस्करणों के अपने शानदार प्रदर्शन को दोहरा नहीं पाया। इंचियोन में चीन ने 151 स्वर्ण, 109 रजत और 85 कांस्य के साथ कुल 345 पदक जीते थे। ग्वांगझू में चीन ने अपनी मेजबानी में 199 स्वर्ण जीतकर कीर्तिमान स्थापित किया लेकिन इस बार वह इसके करीब भी नहीं पहुंच सका। ग्वांगझू में चीन ने कुल 416 पदक जीते थे।

एशियाई खेलों की शुरुआत 1951 में हुई थी। चीन इस सफर में 1974 में शामिल हुआ लेकिन इसके बावजूद वह आज इन खेलों में सबसे अधिक पदक जीतने वाला देश बना हुआ है। जकार्ता को अगर छोड़ दिया जाए तो चीन ने इस महाद्वीपीय खेल महाकुम्भ के बीते 11 संस्करणों में कुल 2,976 पदक जीते थे, जिसमें 1,355 स्वर्ण, 928 रजत और 693 कांस्य पदक शामिल हैं।

ऐसा नहीं है कि एशियाई खेलों में आने के साथ ही चीनी वर्चस्व कायम हो गया था। 1974 में चीन जब पहली बार एशियाई खेलों में आया था, तब जापान और कोरिया और काफी हद तक ईरान का दबदबा था।

1974 के तेहरान एशियाई खेलों में चीन ने पदार्पण करते हुए 33 स्वर्ण पदकों सहित कुल 106 पदक जीते थे। वह तीसरे स्थान पर था। दूसरी ओर जापान 75 स्वर्ण पदकों के साथ पहले स्थान पर था। अपनी मेजबानी में उस साल ईरान ने 36 स्वर्ण पदकों के साथ पदक तालिका में दूसरा स्थान हासिल किया था, दक्षिण कोरिया 16 स्वर्ण पदक के साथ चौथे स्थान पर था।

पदार्पण के साथ ही चीन ने पदकों का शतक पूरा किया था। तेहरान में उसके अलावा जापान ही ऐसा कर सका था। इसके बाद, 1978 के बैंकॉक एशियाई खेलों में चीन 51 स्वर्ण के साथ दूसरे स्थान पर पहुंच गया। जापान हालांकि 70 स्वर्ण के साथ पहले स्थान पर रहा।

चीन ने नई दिल्ली में 1982 में हुए एशियाई खेलों में तालिका में 61 स्वर्ण के साथ पहला स्थान हासिल किया और इन खेलों में जापान का वर्चस्व खत्म किया। इसके बाद चीन ने पीछे मुड़ के नहीं देखा। 1986 में सियोल में उसने 94 स्वर्ण पदक जीते। यहां वह पहली बार 200 पदकों के पार गया।

इसके बाद चीन ने 1990 में अपनी मेजबानी में कुल 183 स्वर्ण जीते और फिर लगातार सात मौकों पर स्वर्ण पदकों का शतक लगाया। ग्वांगझू में चीन ने अपनी मेजबानी में 199 स्वर्ण जीतकर कीर्तिमान स्थापित किया था। उसके नाम 119 रजत और 98 कांस्य भी थे।

चीन के बाद जापान और फिर दक्षिण कोरिया का स्थान है। ये तीनों देश 2000 से अधिक पदक जीत चुके हैं। जापान अब तक के सभी संस्करणों में हिस्सा ले चुका है, जबकि कोरिया 1954 के बाद के सभी संस्करणों में शामिल रहा है।

एक तरफ जहां चीन के पदकों की संख्या में कमी आई है वहीं दूसरी ओर जापान ने बीते संस्करण की तुलना में अपने पदकों की संख्या में इजाफा किया है। जापान ने पिछले संस्करण में 47 स्वर्ण, 77 रजत और 76 कांस्य के साथ कुल 200 पदक अपने नाम किए थे जबकि इस बार उसने अपने प्रदर्शन में सुधार करते हुए 75 स्वर्ण, 56 रजत और 74 कांस्य के साथ 205 पदक जीते।

दूसरी ओर, दक्षिण कोरिया के भी प्रदर्शन में गिरावट आई है। इंचियोन में दक्षिण कोरिया ने 79 स्वर्ण, 70 रजत और 79 कांस्य के साथ कुल 228 पदक अपने नाम किए थे लेकिन इस बार वह केवल 49 स्वर्ण, 58 रजत और 70 कांस्य पदक ही हासिल कर पाया।

जकार्ता में भारत ने अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। स्वर्ण पदक जीतने के मामले में भारत ने अपने 1951 के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को दोहराया है और यह संस्करण भारत के लिए इसलिए भी यादगार रहेगा क्योंकि भारतीय खिलाड़ियों ने बीते सभी संस्करणों की तुलना में इस बार अपने लिए सबसे अधिक पदक हासिल किए। भारत हालांकि, इंचियोन में हुए इन खेलों के 17वें संस्करण की तालिका में आठवें पायदान पर रहा था और वह इस बार भी उसे आठवें पायादान से ही संतोष करना पड़ा है।

1951 में अपनी मेजबानी में भारतीय खिलाड़ियों ने 15 स्वर्ण, 16 रजत और 20 कांस्य पदक जीते थे जबकि इस बार उन्होंने 15 स्वर्ण, 24 रजत और 30 कांस्य पदक जीते। भारत को सबसे ज्यादा पदक एथलेटिक्स में मिले, जहां खिलाड़ियों ने सबको चौकाते हुए सात स्वर्ण, 10 रजत और दो कांस्य के साथ कुल 19 पदक अपने नाम किए।

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नेशनल

क्या रद्द होगी राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता ?

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नई दिल्ली। राहुल गांधी के पास ब्रिटेन की भी नागरिकता है और इसलिए उनकी भारतीय नागरिकता रद्द कर दी जानी चाहिए.’ एस विग्नेश शिशिर ने यह दावा करते हुए एक जनहित याचिका दायर की है, जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को फैसला करने का निर्देश दिया. इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘याचिकाकर्ता की तरफ से कुछ दस्तावेज गृह मंत्रालय को मिले हैं और वह इस पर विचार कर रहा है कि राहुल गांधी की नागरिकता रद्द की जानी चाहिए या नहीं.’

जस्टिस एआर मसूदी और सुभाष विद्यार्थी की डिविजन बेंच ने अपर सॉलिसिटर जनरल एसबी पांडेय को निर्देश दिया कि वो तीन हफ्ते के अंदर इस बारे में गृह मंत्रालय से निर्देश प्राप्त करें और अगली तारीख पर इसका जवाब पेश करें. इस मामले की सुनवाई अब 19 दिसबंर को रखी गई है.

मामले की पूरी जानकारी

राहुल गांधी की नागरिकता से जुड़ा विवाद तब शुरू हुआ जब लखनऊ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि राहुल गांधी के पास ब्रिटिश नागरिकता है। याचिकाकर्ता एस विग्नेश शिशिर ने दावा किया कि उन्होंने गहन जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि राहुल गांधी के पास यूके की नागरिकता है। शिशिर ने यह भी कहा कि उनके पास कुछ गोपनीय जानकारी है, जिससे यह साबित होता है कि राहुल गांधी का विदेशी नागरिकता प्राप्त करना कानून के तहत भारतीय नागरिकता को रद्द करने का कारण हो सकता है।

पहले इस मामले में शिशिर की याचिका को जुलाई 2024 में खारिज कर दिया गया था, लेकिन इसके बाद शिशिर ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास शिकायत की थी, जिसमें कोई एक्शन नहीं लिया गया। फिर से इस मामले को अदालत में लाया गया और अब गृह मंत्रालय से राहुल गांधी की नागरिकता पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।

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