बिजनेस
भारत पर एफपीआई मेहरबान, 111333 करोड़ रुपये निवेश किए
नई दिल्ली| सरकार द्वारा हाल ही में उठाए गए सुधारवादी कदमों और देश के आर्थिक विकास में सुधार की मजबूत संभावनाओं से जुड़ी उम्मीदों की वजह से वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान विदेशी निवेशकों का भारतीय शेयर बाजारों में निवेश 39.67 प्रतिशत बढ़कर 111,333 करोड़ रुपये रहा है। नेशनल सिक्युरिटीज डिपॉजिटरी लि. (एनएसडीएल) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, शेयर बाजारों में 2013-14 के दौरान विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने 79,709 करोड़ रुपये का निवेश किया है।
बाजार विनियामक, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के साथ उपखातों और योग्य विदेशी निवेशकों को मिला कर एफपीआई नामक एक नई निवेशक श्रेणी बनाई है। कोटक सिक्युरिटीज में मुद्रा डेरिवेटिव के वरिष्ठ प्रबंधक अनिंद्य बनर्जी ने कहा, “निवेश में इस वृद्धि का कारण यह है कि 2013-14 के दौरान हम एक निचले आधार पर थे और भारतीय बाजारों में गिरावट थी और इस वजह से यहां निवेश करना अधिक सुलभ और आसान था।” बनर्जी ने कहा, “भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में भी काफी बदलाव देखा गया। भारी बहुमत से जीतकर सत्ता में आई सरकार और नई सरकार के ईद-गिर्द आर्थिक सुधार के कदम और त्वरित सुधारवादी कदमों को उठाने और उन्हें संसद में पारित करवाने से देश में एक उत्प्रेरक माहौल बन गया।”
जियोजिट बीएनपी पारिबास फाइनेंशियल सर्विसिस में अनुसंधान प्रमुख एलेक्स मैथ्यूज ने कहा कि आगामी समय में बाजार में यह रुझान जारी रहेगा, क्योंकि भारत विश्व में तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। मैथ्यूज ने बताया, “यह रुझान जारी रहेगा। भारत निवेश करने के लिहाज से विश्व के सर्वाधिक आकर्षक बाजारों में से एक बना रहेगा। इस साल बहुप्रतीक्षित आईपीओ लाने और विनिवेश कार्यक्रमों की शुरुआत की संभावना है।” उन्होंने कहा, “वैश्विक रूप से भारत अपने समकक्षों की तुलना में मजबूत स्थिति में है। स्थाई राजनीतिक परिवेश, स्थायी मुद्रा और आर्थिक सुधार की जारी प्रक्रियाओं के साथ स्वस्थ आर्थिक परिदृश्य के लिहाज से यहां माहौल बेहतर है।” वित्त वर्ष 2014-15 में ऋण और शेयर बाजारों में एफपीआई का कुल निवेश 431.17 प्रतिशत बढ़कर 277,461 करोड़ रुपये रहा, जो 2013-14 की अवधि में 51,649 करोड़ रुपये रहा था।
इस समीक्षाधीन अवधि में ऋण बाजारों में एफपीआई ने 166,127 करोड़ रुपये का निवेश किया। 2013-14 में एफपीआई ने इसी बाजार श्रेणी में शुद्ध बिकवाली भी की। इन्होंने 2013-14 में 28,060 करोड़ रुपये की बिकवाली की। जनवरी-मार्च 2015 तिमाही में एफपीआई द्वारा किया गया निवेश 64.32 प्रतिशत बढ़ कर 36,473 करोड़ रुपये रहा, जबकि 2014 की समान तिमाही में यह निवेश 22,195 करोड़ रुपये दर्ज हुआ था। वर्ष की पहली तिमाही में भी एफपीआई ने ऋण बाजारों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है। इस दौरान ऋण बाजारों में एफपीआई का कुल निवेश 19.61 प्रतिशत बढ़कर 42,502 करोड़ रुपये रहा, जो 2014 की समान तिमाही में 35,532 करोड़ रुपये दर्ज हुआ था। जनवरी-मार्च 2015 में ऋण और शेयर बाजारों में कुल निवेश 36.80 प्रतिशत बढ़ कर 78,975 करोड़ रुपये रहा। जनवरी-मार्च 2014 की तिमाही में यह निवेश 57,727 करोड़ रुपये ही था।
हालांकि शेयर बाजारों में मार्च महीने में एफपीआई निवेश 39.84 प्रतिशत घटकर 12,078 करोड़ रुपये रहा, जो मार्च 2014 में 20,077 करोड़ रुपये रहा था। मार्च महीने में ऋण बाजारों में भी एफपीआई निवेश घटा है। इस दौरान एफपीआई निवेश 25.38 प्रतिशत घट कर 8,645 करोड़ रुपये रहा है, जो पिछले साल की समान अवधि में 11,586 करोड़ रुपये दर्ज हुआ था। मार्च महीने में ऋण और शेयर बाजारों में एफपीआई का कुल निवेश 34.55 प्रतिशत घट कर 20,723 करोड़ रुपये रहा है, जो मार्च 2014 में 31,663 करोड़ रुपये दर्ज हुआ था। बनर्जी ने कहा, “मार्च महीने में निवेश करने के लिहाज से स्थिति अनुकूल होती है। मार्च 2014 में भारतीय शेयर बाजारों में निवेश करना सस्ता था। इसलिए इस दौरान बाजार ने अपनी ओर काफी निवेश आकर्षित किए। लेकिन इस बार बाजारों में स्थिति इससे विपरीत थी। मार्च 2015 में बाजार में अधिक दबाव था।”
बनर्जी के मुताबिक, “इस दौरान निवेश में सुस्ती का एक अन्य कारण यह था कि मार्च 2014 के दौरान देश में राजनीतिक बदलाव को लेकर एक उत्साह का माहौल था।” शेयरों में निवेश में बढ़ोतरी की वजह से बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) के संवेदी सूचकांक सेंसेक्स में पिछले 10 दिनों के दौरान गिरावट का रुझान देखा जा रहा था। वित्त वर्ष 2014-15 का अंत लगभग 25 प्रतिशत की वृद्धि के साथ हुआ। इसका श्रेय नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा सृजित सकारात्मक रुझान को जाता है। 31 मार्च, 2015 (मंगलवार) को सेंसेक्स 27,957.49 पर बंद हुआ। 31 मार्च, 2014 को सेंसेक्स 22,386.27 पर बंद हुआ था। वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान सेंसेक्स में कुल 24.88 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इस दौरान सेंसेक्स ने 30,000 के मनोवैज्ञानिक स्तर को भी पार कर लिया। पिछले पांच सालों में सेंसेक्स का यह सर्वोत्तम प्रदर्शन रहा।
बिजनेस
जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई
नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।
बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।
बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।
ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।
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