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अन्तर्राष्ट्रीय

कोरोना : लोगों को ठीक करने वाली दवा हुई जानलेवा, ज़्यादातर मरीजों की हुई मौत!

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नई दिल्ली। कोरोना वायरस विश्व में हर दिन हज़ारों की संख्या में लोगों की जान ले रहा है। कोविड-19 नाम के इस करोना वायरस ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका को भी बेबस कर दिया है।

अब तक अमेरिका में इस वायरस की वजह से सबसे ज़्यादा मौत हुई हैं। यह आंकड़ा अब 40 हज़ार के पार चला गया है।
पूरी दुनिया में कोरोना महामारी की वजह से लोग परेशान हैं। सबसे ज्यादा चिंता इलाज को लेकर है।

इस बीच कोरोना के इलाज में सहायक हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को लेकर एक हैरान कर देने वाला खुलासा हुआ है। अमेरिका से ही एक नई स्टडी सामने आई है जिसमें कहा गया है कि सामान्य इलाज की तुलना में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा लेने वाले मरीजों की मौत ज्यादा हो रही है।

अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) और यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के शोधकर्ताओं ने पाया है कि जिन कोरोना मरीजों का इलाज सामान्य तरीकों से हो रहा है, उनके मरने की आशंका कम रहती है। जबकि, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा का उपयोग करने पर मरीजों की ज्यादा मौत हुई है। इस स्टडी में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा से करीब 28 फीसदी कोरोना मरीजों की मौत हो रही है। जबकि, सामान्य प्रक्रिया से इलाज करते हैं तो सिर्फ 11 प्रतिशत मरीज ही अपनी जान गवां रहे हैं।

इस स्टडी से सामने आई रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा कोरोना मरीज को अकेले दी जाए या एजिथ्रोमाइसिन के साथ दी जाए। मरीज के ठीक होने के चांस कम रहते हैं। जबकि, उसकी हालत बिगड़ने और मरने की आशंका ज्यादा रहती है।

NIH और यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के वैज्ञानिकों की टीम ने 368 कोरोना मरीजों के ट्रीटमेंट प्रक्रिया की जांच की इनमें से कई मरीज या तो मर चुके थे, या फिर ठीक होकर अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिए गए थे।
इस जांच में पता चला कि 97 मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दी गई। 113 मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के साथ एजिथ्रोमाइसिन दी गई। जबकि, 158 मरीजों का इलाज सामान्य तरीके से किया गया। उन्हें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा नहीं दी गई।

जिन 97 मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा दी गई थी, उसमें से 27.8% मरीजों की मौत हो गई। जिन 113 मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा के साथ एजिथ्रोमाइसिन की दवा दी गई थी उनमें से 22.1% मरीजों की मौत हो गई. जबकि, उन 158 मरीजों की बात करें तो जिन्हें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा नहीं दी गई, उनमें सिर्फ 11.4% मरीज ही मारे गए।

इस स्टडी रिपोर्ट से ये बात तो स्पष्ट होती नजर आ रही है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मलेरिया के लिए उपयोग में लाई जाने वाली दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के लिए जितनी पैरवी की, उतनी ये कारगर नहीं है।
सिर्फ अमेरिका में ही डॉक्टर इस दवा के उपयोग से बच रहे हैं। ब्राजील में भी डॉक्टरों ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा का उपयोग कोरोना मरीजों पर करने से मना कर दिया है। क्योंकि दवा देते ही मरीज को दिल और सांस संबंधी दिक्कतें बढ़ जाती हैं।
अगर मरीज पहले से ही दिल या सांस संबंधी बीमारियों से जूझ रहा होता है तो उसके लिए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा कहर बनकर टूटती है। अमेरिका में NIH ने डॉक्टरों के लिए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और एजिथ्रोमाइसिन को लेकर नई गाइडलाइंस जारी की हैं। जिसमें कहा गया है कि इसका उपयोग न करें।
न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार अगर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को दुनियाभर में कोरोना के इलाज के लिए अनुमति मिलती है तो उससे ये दवा बनाने वाली कंपनियों को बहुत फायदा होगा। ऐसी ही एक कंपनी में डोनाल्ड ट्रंप का शेयर है। साथ ही उस कंपनी के बड़े अधिकारियों के साथ डोनाल्ड ट्रंप के गहरे रिश्ते हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय

हिजबुल्लाह ने इजरायल पर दागे लगभग 250 रॉकेट, 7 लोग घायल

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बेरूत। हिजबुल्लाह ने एक बार फिर इजरायल पर बड़ा हमला किया है। रविवार को हिजबुल्लाह ने इजरायल पर लगभग 250 रॉकेट और अन्य हथियारों से हमला किया। इस हमले में कम से कम सात लोग घायल हो गए है। हिजबुल्लाह का यह हमला पिछले कई महीनों में किया गया सबसे भीषण हमला है, क्योंकि कुछ रॉकेट इजरायल के मध्य में स्थित तेल अवीव इलाके तक पहुंच गए।

इजराइल की ‘मैगन डेविड एडोम’ बचाव सेवा ने कहा कि उसने हिजबुल्लाह द्वारा इजराइल पर दागे गए हमलों में घायल हुए सात लोगों का इलाज किया. युद्ध विराम के लिए वार्ताकारों की ओर से दबाव बनाए जाने के बीच हिजबुल्लाह ने ये हमले बेरूत में घातक इजराइली हमले के जवाब में किये

सेना का अभियान चरमपंथियों के खिलाफ

इसी बीच लेबनान की सेना ने कहा कि इजराइल के हमले में रविवार को लेबनान के एक सैनिक की मौत हो गई जबकि 18 अन्य घायल हो गए. इस घटना पर इजराइल की सेना ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह हमला हिजबुल्लाह के विरुद्ध युद्ध क्षेत्र में किया गया और सेना का अभियान केवल चरमपंथियों के खिलाफ हैं.

 

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