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प्रादेशिक

बेनूर ज़िंदगी को नूर बाँट रही है नूरजहाँ

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रायबरेली। दो जून की रोटी के लिए ज़द्दोज़हद करते गरीबों के बच्चे शिक्षा से महरूम होते है। क्योंकि उनके पास पेट भरने के लिए पैसे ही बमुश्किल जुट पाते है। देश और प्रदेश में गरीब बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए तमाम सरकारी योजनाये चलायी जा रही हैं। बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए सुबह को फ्री में दूध,दोपहर में खाने के लिए मिडडे मील और फ्री काँपी किताबे,स्कूल ड्रेस जैसी महंगी योजनाओ को चलाया जा रहा है। शिक्षक बड़ी बड़ी तनखाह ले रहे है फिर भी बच्चों को स्कूलों तक लाने में असमर्थ हो जा रहे हैं। लेकिन सरकार और सरकारी कर्मचारियों के गाल पर करारा तमाचा जड़ा है रायबरेली की नूरज़हाँ ने। जिसको ना तो कोई मोटी सेलरी मिलती है और ना ही सरकारी मदद फिर भी अपनी लगन और कड़ी मेहनत के बल पर गरीब बच्चों को ना केवल स्कूल तक लाने में सफल हुई बल्कि उन्हें पढ़ाई की वो सभी चीजें  भी उपलब्ध करायी जिसकी जरुरत थी। हालांकि शुरुआत में नूरज़हाँ को खासी दिक्कतो का सामना करना पड़ा लेकिन उसने हार नहीं मानी और आखिरकार सफलता ने उसके कदमो को चूम लिया।
हालांकि नूरजहाँ ने अपनी जिंदगी मुफलिसी में जी थी, लेकिन कम संसाधनो में पढ़ाई पूरी करने वाली नूरज़हाँ ने इस दर्द को समझा और चल दी गरीब बच्चों को स्कूल तक लाने और उन्हें शिक्षित करने के लिए। हालांकि पहले उसके रास्ते में कई अड़चने आई। जिसके झोपड़े में जाती वो उसे शक की नज़रों से देखते। कुछ लोगों ने तो उसे किडनैपर तक कह दिया।
 फिर भी वो किसी तरह बच्चों के माता पिता को समझा कर और उन्हें भरोषे की कसौटी पर उतारकर नूरज़हाँ बच्चों को शिक्षा के मुहाने तक ली आई लेकिन मुश्किल फिर से सामने खड़ी थी की आखिरकार बच्चो को पढ़ाएगी तो कहाँ। ऐसे में उसने कालोनी के एक पार्क में ही अपनी पाठशाला खोल ली और बच्चों को ज्ञान देने लगी। हालांकि पार्क में जानवरो की वजह से खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
नूरज़हाँ के इस इरादे का पहले तो घरवालों ने विरोध किया लेकिन आखिरकार उसकी ज़िद के सामने घरवालों को भी झुकना पड़ा। और अब उसकी सफलता को देखते और उसका इज़हार करते हुए बरबस ही उनके गले भर आते हैं।बहन अफरोजजहाँ का कहना है की पहले तो उन्हें ये सब अच्छा नहीं लगा लेकिन अब वो अब वो काफी खुश है और अपनी बहन नूरजहाँ का साथ दे रही हैं।
 नूरज़हाँ के ज़ज्बे और काम को देख कर मजाज़ साहब की वो पंक्तियाँ याद आती हैं की….. (मुझे आज साहिल पे रोने दो.…कि तूफ़ान में मुस्कुराना है। ज़माने से आगे तो बढ़िये ‘मजाज़’…. ज़माने को आगे बढ़ाना है) और नूरज़हाँ गरीब बच्चों को शिक्षित करके ज़माने को सही में आगे बढ़ाने का काम कर रही है।
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उत्तर प्रदेश

संभल हिंसा: 2500 लोगों पर केस, शहर में बाहरी की एंट्री पर रोक, इंटरनेट कल तक बंद

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संभल। संभल में जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान रविवार को भड़की हिंसा के बाद सोमवार सुबह से पूरे शहर में तनाव का माहौल है। हिंसा प्रभावित इलाकों में कर्फ्यू जैसे हालात हैं। प्रशासन ने स्थिति नियंत्रण में लाने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। डीआईजी मुनिराज जी के नेतृत्व में पुलिस बल ने हिंसा प्रभावित इलाकों में फ्लैग मार्च किया। शहर के सभी प्रमुख चौराहों पर बैरिकेडिंग की गई है, और प्रवेश मार्गों पर पुलिस तैनात है। पुलिस ने अभी तक 25 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। इसमें दो महिलाएं भी शामिल हैं। इंटरनेट अब कल तक बंद रहेगा।

इसके अलावा कोई भी बाहरी व्यक्ति, अन्य सामाजिक संगठन अथवा जनप्रतिनिधि जनपद संभल की सीमा में सक्षम अधिकारी की अनुमति के बिना एक दिसंबर तक प्रवेश नहीं करेगा। ये आदेश तत्काल प्रभाव से लागू होगा। इस आदेश का उल्लंघन भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 223 के अंतर्गत दंडनीय अपराध होगा। इसके अलावा संभल और आसपास के क्षेत्रों में इंटरनेट बंद कर दिया गया है। साथ ही स्कूलों को बंद करने का भी आदेश जारी किया गया है। हिंसा मामले में 25 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इनके साथ 2500 लोगों पर भी केस दर्ज किया गया है। साथ ही पुलिस की तरफ से दुकानों को बंद नहीं किया गया है।

इसके साथ ही संभल पुलिस ने समाजवादी पार्टी के सांसद जियाउर्रहमान बर्क और विधायक नवाब इकबाल महमूद के बेटे सुहैल इकबाल पर एफआईआर दर्ज की है। दोनों नेताओं पर संभल में हिंसा भड़काने के मामले में एफआईआर दर्ज की गई है। उल्लेखनीय है कि रविवार (24 नवंबर) की सुबह संभल की शाही जामा मस्जिद का सर्वेक्षण किया गया था। इस दौरान मस्जिद के पास अराजक तत्वों ने सर्वेक्षण टीम पर पथराव कर दिया। देखते ही देखते माहौल बिगड़ता चला गया। पुलिस ने हालात को काबू करने के लिए आंसू गैसे के गोले छोड़े और अराजक तत्वों को चेतावनी भी दी। हालांकि, हिंसा के दौरान चार लोगों की मौत हो गई।

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